हालात

उत्तर प्रदेश डायरी: सांप्रदायिकता को सिरे चढ़ा रहा भगवा ब्रिगेड, मुस्लिम विरोधी बयानबाजी को दिया जा रहा बढ़ावा!

लोकसभा चुनावों में अपेक्षा के मुताबिक सीटें न आने का नतीजा रहा कि बीजेपी फिर से कट्टर हिन्दुत्व की भूमिका में आ गई है। उसने हाशिये के तत्वों को फिर से सक्रिय कर दिया है। दूसरी ओर तीसरी पंक्ति के नेताओं को बेलगाम भड़काऊ बयानबाजी की छूट दे दी गई है।

सांप्रदायिकता को सिरे चढ़ा रहा भगवा ब्रिगेड।
सांप्रदायिकता को सिरे चढ़ा रहा भगवा ब्रिगेड। 

डासना मंदिर के कुख्यात मुख्य पुजारी यति नरसिंहानंद सरस्वती के बिगड़े बोल पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन जनाब ने पहली बार विवादित बोल नहीं कहे हैं। कई सालों से वह न केवल मुसलमानों के खिलाफ नफरती बातें करते रहे हैं, बल्कि उनके नरसंहार तक की अपील करते रहे हैं। चूंकि कभी उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उनकी आदत सुधरी नहीं।

उम्मीद के मुताबिक ही नरसिंहानंद की बातों से मुसलमान भड़क उठे और उनके वीडियो के वायरल होने के साथ ही न केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एफआईआर दर्ज कराई और मांग की कि सरस्वती के खिलाफ यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) और भारतीय राष्ट्रद्रोह अधिनियम के नए कठोर प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया जाए। इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस, मुख्यधारा के मीडिया और बीजेपी और आरएसएस के नेताओं के व्यवहार भी उम्मीद के मुताबिक, ही रहे- रोजमर्रा के काम में लगे रहे और नफरती बयान को नजरअंदाज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश को भी उम्मीद के मुताबिक, ही ताक पर डाल दिया गया कि नफरत भरे बोल पर पुलिस को खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए।

यही कारण है कि 5 अक्तूबर को जब पुलिस ने गाजियाबाद में नरसिंहानंद की कार को रोका और उन्हें लोगों से बचाते हुए निकाल ले गई, तो यह सब उनके लिए एक नया अनुभव रहा होगा। दरअसल, देश-विदेश में इस मामले में भड़के गुस्से ने आखिरकार योगी आदित्यनाथ और यूपी पुलिस को हरकत में ला दिया। मुख्यमंत्री ने 7 अक्तूबर को कानून-व्यवस्था की स्थिति का आकलन करने के लिए समीक्षा बैठक की और देर से ही सही, उन्हें कहना पड़ा कि किसी भी धर्म के पैगंबर या ईश्वर का अपमान सही नहीं है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि सरकार विरोध के बहाने किसी तरह की अराजकता को भी बर्दाश्त नहीं करेगी। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। साथ ही नरसिंहानंद की सहयोगी उदिता त्यागी की शिकायत पर फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई। उदिता का आरोप था कि जुबैर ने नरसिंहानंद के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए एक पुराना क्लिप पोस्ट किया था।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक अन्य क्लिप में नरसिंहानंद बड़े रुआब के साथ पुलिस से पूछते दिखाई दे रहे हैं कि उन्होंने उसे सड़क पर रोकने की हिम्मत कैसे की? उन्होंने गुस्से में कहा कि जब मुलायम सिंह यादव, मायावती या अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब यूपी पुलिस ने ऐसा करने की हिम्मत नहीं की। अब जब उनका ‘अपना आदमी’ लखनऊ का दफ्तर संभाल रहा है, तो उन्हें रोकने की हिम्मत कैसे हुई? तीखा प्रहार यहीं नहीं रुका। नरसिंहानंद ने बड़े अहंकार के साथ पुलिस इंस्पेक्टर से कहा कि वह मुख्यमंत्री को बता दे कि सत्ता हमेशा के लिए नहीं रहती। इंस्पेक्टर चुपचाप उनकी बातें सुनता रहा और उसने नरसिंहानंद को साथ चलने का इशारा किया। आखिर, नरसिंहानंद ने मौके की नजकात समझी और इंस्पेक्टर की बात मानते हुए सवाल किया कि उसे किससे मिलाने ले जाया जा रहा है- डीसीपी से या फिर पुलिस कमिश्नर से?

इस सांप्रदायिक बयानबाजी की आग में घी डालने वाले और भी लोग शामिल हो गए हैं। पुलिस के यह कहने के बावजूद कि डासना मंदिर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला नहीं किया, लोनी से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर ने गुस्से में कहा कि पुलिस को वहां 10-20 लोगों का एनकाउंटर कर देना चाहिए था। देवरिया से बीजेपी विधायक ने कहा कि अगर प्रदर्शनकारियों ने उन्मादी नारे लगाए, तो उन्हें ‘इजरायल वाला मजा’ मिलना चाहिए।

जून में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ‘सबका साथ-सबका विकास’, मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय और पसमांदा या पिछड़े मुसलमानों की भलाई को केन्द्र में रखकर की जा रही राजनीतिक बयानबाजी की जगह तीखी और बांटने वाले नफरती बोलों ने ले ली है। बीजेपी फिर से कट्टर हिन्दुत्व की भूमिका में आ गई है, हाशिये के तत्वों को फिर से सक्रिय कर दिया गया है और बीजेपी की दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को बेलगाम होकर भड़काऊ बयानबाजी की छूट दे दी गई है। नंद किशोर गुर्जर, गुलाब देवी, गौरव भाटिया, सतीश गौतम सांप्रदायिक नफरत की नई आवाज बनकर उभर रहे हैं। कई टीवी एंकरों को भी नफरत फैलाने का लाइसेंस मिला हुआ है। मस्जिदों के सामने नाचते डीजे, कांवड़ियों पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाना और मांसाहारी भोजन बेचने वाले छोटे मुस्लिम व्यापारियों और भोजनालयों के खिलाफ एक सोचा-समझा अभियान फिर शुरू हो गया है।

हालांकि, जैसा कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में दोहराया, ‘हिन्दू खतरे में हैं- हिन्दू खतरे में हैं’ और यहां तक कि यति नरसिंहानंद जैसे व्यक्ति को भी खुली छूट दे दी गई है जिसने एक बार यहां तक कह दिया था कि बीजेपी में हर महिला किसी-न-किसी की रखैल है।

Published: 12 Oct 2024, 6:59 PM IST

बरेली में लव जिहाद

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर जिन्होंने पहले न्यायिक फैसलों में योगी आदित्यनाथ को ‘दार्शनिक राजा’ कहकर सराहा था और ज्ञानवापी मस्जिद के एक हिस्से को सील करने का आदेश दिया था, एक बीजेपी नेता के दामाद निकले हैं। अक्तूबर के पहले हफ्ते में अपने एक ताजा फैसले में उन्होंने 24 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उसे लव जिहाद का दोषी ठहराया। अपने 42 पन्नों के आदेश में जज ने अन्य बातों के अलावा कहा, ‘लव जिहाद का मुख्य उद्देश्य जनसांख्यिकीय युद्ध और एक विशेष धर्म के कुछ अराजक तत्वों द्वारा अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत भारत पर प्रभुत्व स्थापित करना है।’ आरोपी की साथी की इस दलील को खारिज करते हुए कि उस पर उसके माता-पिता और दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा उस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए दबाव डाला गया था, न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि यह दलील विश्वसनीय नहीं है क्योंकि वह एक पढ़ी-लिखी महिला थी। उन्होंने कहा, ‘इस अदालत के मुताबिक पीड़िता अपने माता-पिता के साथ नहीं रहकर किराये के घर में अकेली रह रही है और वह जब अदालत में आती है तो उसके हाथ में  एंड्रॉइड फोन होता है। यह हैरानी की बात है कि उसके पास अकेले रहने, खाने-पीने, कपड़े पहनने और मोबाइल पर बात करने के पैसे कहां से मिलते हैं।’

अवैध धर्मांतरण को देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा बताते हुए न्यायाधीश ने अपनी धारणा दर्ज की कि लव जिहाद को विदेशी धन से वित्त पोषित किया जा रहा है। वकीलों और कानून के छात्रों के संगठन ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस ने बरेली के जज के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है जिन्होंने बलात्कार के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है जबकि शिकायतकर्ता ने अपनी गवाही वापस ले ली थी।

Published: 12 Oct 2024, 6:59 PM IST

इंडियन एक्यूमुलेशन सर्विस

सितंबर में एक प्रमुख हिन्दी दैनिक के गॉसिप कॉलम में एक बात छपी जो जल्द ही चर्चा का विषय बन गई। स्तंभकार ने लिखा कि एक सेवानिवृत्त नौकरशाह के घर से 50 करोड़ रुपये की नकदी ‘चोरी’ करने के संदिग्धों का पता लगाने के लिए गुप्त जांच की जा रही है। स्तंभकार ने उस शक्तिशाली नौकरशाह का नाम नहीं बताते हुए लिखा कि उस अफसर ने इस चोरी को भुला देना उचित समझा जबकि उसकी पत्नी ने इसे दिल पर ले लिया। सोशल मीडिया पर इस गॉसिप को खूब शेयर किया गया और लोग अपने-अपने हिसाब से उस अधिकारी का नाम बताने लगे। जल्द ही उस अधिकारी की पहचान इतनी स्पष्ट हो गई कि उसे खुद ही गुमनामी के अंधेरे से बाहर आकर कानूनी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी। ऐसे लोग भी थे जो अधिकारी के प्रति सहानुभूति रखते थे, और उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों को गलत बताया और दावा किया कि यह पैसा उसकी गायिका पत्नी द्वारा जमा की गई फीस थी। हालांकि संदेह करने वालों का संदेह बना रहा। वे इस बात से हैरान थे कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने आखिर उनके खिलाफ जांच क्यों नहीं की? वहीं, कुछ लोगों ने सवाल किया कि इतनी बड़ी रकम को नकदी में छिपाना कब से सही हो गया?

जबकि मुख्यधारा के मीडिया ने इस विवाद से दूरी बनाए रखी, मीडिया विशेषज्ञ दिलीप चेरियन ने इसे इतनी गंभीरता से लिया कि उन्होंने डेक्कन क्रॉनिकल में अपने कॉलम में पूछा कि पुलिस ने कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की? चेरियन उत्तर प्रदेश के कुछ सबसे कुख्यात आईएएस अधिकारियों की प्रतिष्ठा से स्पष्ट रूप से वाकिफ हैं। एक समय था जब राज्य में आईएएस एसोसिएशन अपने सदस्यों के बीच राज्य के तीन सबसे भ्रष्ट अधिकारियों का चयन करने के लिए वार्षिक गुप्त मतदान कराता था। वह अलग समय था और एसोसिएशन ने नामों का खुलासा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हालांकि उसके केवल 10 से 15 प्रतिशत सदस्य ही मतदान में भाग लेते थे।

राज्य में आर्किटेक्ट्स के बीच एक चुटकुला लोकप्रिय हुआ करता था कि हर आईएएस अधिकारी के पास रिटायर होने तक कम-से-कम चार घर होते हैं। एक लखनऊ में, दूसरा गांव में, तीसरा दिल्ली में और चौथा एनसीआर क्षेत्र में। अब तो उसमें पहाड़ों में पांचवां घर भी जुड़ गया होगा।

Published: 12 Oct 2024, 6:59 PM IST

थेरेपी के नाम पर फ्रॉड

कानपुर में वरिष्ठ नागरिकों को बताया गया कि इजरायल से आई ऑक्सीजन थेरेपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऊर्जा स्तर और उनके चेहरे पर चमक का राज है। राजीव दुबे और उनकी पत्नी रश्मि, जो खुद भी काफी जवान और सुंदर हैं, ने आश्वस्त किया कि इजरायल से आयातित मशीन उन्हें फिर से जवान बना देगी। दंपति ने 60 साल से अधिक के लोगों को वापस 25 साल के दौर में ले जाने के लिए कानपुर में ‘रिवाइवल वर्ल्ड’ नाम से थेरेपी सेंटर खोला। किराये के घर में रहने वाले दंपति ने लोगों को भरोसा दिलाया कि यह क्रांतिकारी मशीन उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को रोक देगी। अनुमान है कि फरार होने से पहले दंपत्ति ने 35 करोड़ रुपये कमाए थे और पुलिस का मानना ​​है कि वे विदेश भाग गए हैं।

Published: 12 Oct 2024, 6:59 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 12 Oct 2024, 6:59 PM IST