पाकिस्तान ने 27 फरवरी की सुबह भारतीय नियंत्रण रेखा पार कर भारत की सैन्य सुविधाओं और ठिकानों पर बमबारी की। खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में भारतीय एयर स्ट्राइक का जवाब देने के लिए पाकिस्तन ने इस हमले में अपने लड़ाकू विमानों एफ-16 का इस्तेमाल किया। इससे अमेरिका बेहद खफा है। अमेरिकी विदेश विभाग के सूत्रों ने नेशनल हेरल्ड को बताया कि ट्र्म्प प्रशासन जल्द ही इस बारे में कोई दंडात्मक कदम उठा सकता है।
पुणे स्थित थिंक टैंक ग्लोबल स्ट्रैटजिक पॉलिसी फाउंडेशन के सचिव डॉ अनंत भागवत ने नेशनल हेरल्ड से बातचीत में कहा कि, “पाकिस्तान के पास इस समय एफ-16 लड़ाकू विमानों का बड़ा बेड़ा है, जिसमें 76 विमान हैं। इनमें से 40 एफ-16 अत्याधुनिक हैं और दृष्टि से दूर (बियॉंड विजुअल रेंज) मारक क्षमता से सुसज्जित है और इनमें एआईएम 120 सी-5 एमरॉम मिसाइल लगी हैं।”
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते के तहत एमरॉम बीवीआर मिसाइलों का इस्तेमाल सिर्फ आंतकवाद विरोधी ऑपरेशंस में किया जा सकता है, वह भी खासतौर से पाकिस्तान की सीमा से लगी अफगानिस्तान सीमा पर आंतकी शिविरों को नष्ट करने के लिए।
डॉ भागवत ने बताया कि, “पाकिस्तान को एफ-16 सौदे की शर्तों का उल्लंघन करने का खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।”
संभावना इस बात की जताई जा रही है कि अमेरिका जल्द ही पाकिस्तान के पूरे एफ-16 बेड़े के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दे। यूं भी अमेरिकी कांग्रेस में इस बात को लेकर काफी चिंता है कि पाकिस्तान चोरी-छिपे अफगानिस्तान और भारत में सक्रिय आतंकी गुटों की मदद करता है।
गौरतलब है कि इसी साल पहली जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट में कहा था कि सैन्य मदद के नाम पर पाकिस्तान पिछले 15 साल से अमेरिका की हर सरकार को मूर्ख बनाता रहा है। उन्होंने लिखा था कि, “अमेरिका मूर्खतापूर्ण तरीके से बीते 15 वर्षों में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर की मदद दे चुका है, और बदले में पाकिस्तान ने हमारे नेताओं को मूर्ख समझते हुए सिवाए झूठ और धोखे के कुछ नहीं दिया है।”
ट्रम्प ने एक और ट्वीट में कहा था कि, “जिन आतंकियों की हमें अफगानिस्तान में तलाश होती है, उन्होंने (पाकिस्तान ने) इन आतंकियों को पनाह दे रखी है। अब बस और नहीं।” ध्यान रहे कि अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद में 300 मिलियन डॉलर की कटौती की थी, जिससे यह कयास लगे थे कि पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते बेहद खराब दौर में पहुंच चुके हैं।
हालांकि अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने पाकिस्तान को एफ-16 विमानों की बिक्री 1980 के दशक में शुरु की थी। इन विमानों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर आने वाले वर्षों में सोवियत-अफगान युद्ध में किया गया था। इसलिए पाकिस्तान को एफ-16 दिए जाने को लेकर अमेरिका में अकसर सवाल उठते रहे हैं। यहां ध्यान रखना होगा कि करगिल युद्ध के समय पाकिस्तान ने एफ-16 विमानों का इस्तेमाल सिर्फ पेट्रोलिंग यानी चौकसी के लिए किया था, ऐसा ही 26/11 के मुंबई हमले के बाद भी किया गया था।
लेकिन, 27 फरवरी के पहली बार पाकिस्तान ने एफ-16 विमानों का इस्तेमाल भारतीय सेना के खिलाफ किया, वह भी ऐसे समय में जब भारत के अमेरिका के साथ रिश्तों में काफी गर्माहट देखी जा रही है।
अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद भी 2005 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में नए सिरे से अपना दखल देना शुरु किया था तो एक बार फिर इन लड़ाकू विमानों का मुद्दा अमेरिका में उठा था।
माना जा रहा है कि पाकिस्तान को नए एफ-16 लड़ाकू विमानों की खेप जब मिली तो इसके साथ कई शर्तें जोड़ी गई थीं। पाकिस्तान के पास इस समय जो नए एफ-16 हैं उनमें ऐसी डिवाइस लगी हैं जिससे काफी दूर से भी इस विमान में लगीं कई अहम सिस्टम को रिमोट के जरिए बेकार किया जा सकता है। यह भी सूचनाएं हैं कि इस सबके चलते पाकिस्तान को इन विमानों की मेंटेनेंस के लिए अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता है।
नेशनल हेरल्ड ने लॉकही मार्टिन से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उसने एफ-16 विमानों की बिक्री से जुड़ी शर्तें बताने से इनकार कर दिया।
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