हालात

धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की विशेष रिपोर्ट में मोदी और अमित शाह का नाम शामिल

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के एक विशेष अपडेट में केंद्र सरकार और कई बीजेपी नेताओं पर धार्मिक समुदायों के ‘दमन और प्रतिबंध’ ​​जारी रखने का आरोप लगाया गया है। इस आयोग की स्थापना 1998 में एक अमेरिका के एक संघीय अधिनियम द्वारा की गई थी।

इस साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान वाराणसी में नामांकन दाखिल करने जाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य बीजेपी नेता (फोटो : Getty Images)
इस साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान वाराणसी में नामांकन दाखिल करने जाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य बीजेपी नेता (फोटो : Getty Images) RITESH SHUKLA

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के 2 अक्टूबर 2024 को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर जारी एक विशेष अपडेट कई मायनों में असाधारण है। वह इस मायनों में कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी अमेरिका यात्रा पूरी कर देश लौटें हैं, और आयोग अपनी सालाना रिपोर्ट पहले ही जारी कर चुका है। इसके अलावा यह अपडेट ऐसे समय में जारी हुआ है जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अभी भी अमेरिका में ही हैं।

आयोग ने भारत के बारे में अपनी 2024 की सालाना रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया था कि, किस तरह 2024 के दौरान “विजिलांते ग्रुप यानी जोर-जबरदस्ती कर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और कामकाज में दखल देने वाले लोगों के कथित निगरानी समूहों ने लोगों के साथ मारपीट की, उनकी हत्या की और भीड़ ने उनके साथ जोरजबरदस्ती की। इसके अलावा धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ़्तार किया गया और घरों और इबादत/पूजा की जगहों को ध्वस्त कर दिया गया।” रिपोर्ट में धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों के खिलाफ़ हिंसक हमलों को भड़काने के लिए सरकारी अधिकारियों द्वारा अभद्र भाषा के साथ ही भ्रामक सूचनाएं और नफरती बयान दिए गए।

Published: undefined

इसके साथ ही रिपोर्ट में भारत में बदले गए कानूनी मापदंडों का जिक्र किया गया जिसके जरिए धार्मिक अल्पसंख्यकों के भेदभाव और पक्षपात, जिनमें सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) भी शामिल है, समान नागरिक संहिता (यूनीफार्म सिविल कोड) और कई राज्य सरकारों द्वारा धर्मांतरण कानूनों को लागू करना और गौहत्या से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल करना शामिल है। अमेरिकी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि अमेरिका का विदेश विभाग भारत को “विशेष चिंतनीय स्थिति” वाले देश के रूप में चिह्नित करे और धार्मिक आजादी पर हो रहे हमलों के बारे में सरकार से बात करे।

इस रिपोर्ट को इस लिंक में देखा जा सकता है: www.uscirf.gov/news-room/releases-statements/uscirf-releases-report-indias-collapsing-religious-freedom-conditions

लेकिन अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस यानी 2 अक्टूबर को जारी अपडेट में आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और महाराष्ट्र के दो बीजेपी विधायक नितेश राणे और गीता जैन और तेलंगाना के एक विधायक टी राजा सिंह पर मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच के आरोप लगाए हैं।

Published: undefined

इस अपडेट के कुछ मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं:

  • जून 2024 में खत्म हुए चुनावों से पहले, राजनीतिक नेताओं ने मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभद्र भाषा और भेदभावपूर्ण बयानबाजी का खुलकर इस्तेमाल किया

  • प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार दावा किया कि विपक्षी पार्टी “देश से हिंदू धर्म को मिटा देगी” और हिंदुओं को “अपने ही देश में दूसरे दर्जे का नागरिक” बनाने की योजना बना रही है। उन्होंने मुसलमानों के बारे में घृणित रूढ़िवादिता से जुड़े बयान दिए, उन्हें “घुसपैठिए” कहा

  • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन बयानों को दोहराया और झूठे ढंग से जोर देते हुए कहा कि विपक्षी नेता चुने जाने के बाद शरिया कानून लागू कर देंगे। उन्होंने ऐसा इस तथ्य के बावजूद कहा जबकि विपक्ष के चुनावी घोषणापत्र में शरिया या मुसलमानों का कोई उल्लेख नहीं था।

  • जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद मुंबई के मीरा रोड में मुसलमानों के खिलाफ हमले विधान सभा के दो सदस्यों (विधायकों) नितेश राणे और गीता जैन के भड़काऊ भाषणों के बाद भड़के। कथित तौर पर राणे ने मुस्लिम समुदाय को खुलेआम धमकाया, आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया और हिंदू समुदाय को “आग भड़काने और जवाबी कार्रवाई करने” के लिए उकसाया

Published: undefined

  • मुंबई पुलिस ने जुलाई में तर्क दिया था कि “जिहादी”, “रोहिंग्या” और “बांग्लादेशी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं किया गया और इसलिए ये दंड संहिता की धारा 295 ए के अंतर्गत नहीं आते।

  • तेलंगाना के बीजेपी विधायक टी. राजा सिंह ने फरवरी में धार्मिक तनाव को बढ़ावा देते हुए 40 मिनट का भाषण दिया, जिसमें उन्होंने खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और काशी और मथुरा में मस्जिदों को ध्वस्त करने का आह्वान किया। सिंह ने दावा किया कि मुसलमान हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन में मदद कर रहे हैं और बार-बार रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को "अवैध" बताया। उन्होंने अपने समर्थकों को "अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए लड़ने के लिए तैयार रहने" और "लव जिहाद", जबरन धर्म परिवर्तन और गोहत्या के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाया।

  • मार्च में, संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के एक समूह ने भारत के आम चुनावों से पहले धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा और हेट क्राइम के स्तर के बारे में चिंता जताई थी, जिसमें भीड़ द्वारा हिंसा, लक्षित और मनमाने ढंग से हत्याएं, संपत्ति को नष्ट करना और उत्पीड़न शामिल थे।

Published: undefined

  • जनवरी से मार्च तक भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 161 घटनाएं दर्ज की गईं- जिनमें से 47 छत्तीसगढ़ में हुईं। ऐसी घटनाओं में चर्चों और प्रार्थना सभाओं पर हिंसक हमलों से लेकर शारीरिक हमले, उत्पीड़न और जबरन धर्म परिवर्तन के झूठे आरोप शामिल थे।

  • मार्च में, गुजरात में हिंदुओं के एक समूह ने विश्वविद्यालय के विदेशी मुस्लिम छात्रों पर उस समय हिंसक हमला किया, जब वे रमजान के दौरान इबादत के लिए जमा हुए थे। इसके बाद विश्वविद्यालय ने नए दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें छात्रों को आम जगहों पर इबादत न करने का निर्देश दिया गया।

  • चुनाव नतीजों के बाद जून से अगस्त तक मुसलमानों के खिलाफ कम से कम 28 हमले हुए। धार्मिक शिक्षण संस्थानों को भी परेशान किया गया और निशाना बनाया गया।

  • फरवरी में, हिंदू संगठनों ने असम के एक कैथोलिक स्कूल में प्रवेश किया और शिक्षकों से ईसाई चित्रों और प्रतीकों का उपयोग बंद करने की मांग की।

  • मार्च में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मदरसों के संचालन पर एक पहले के फैसले को निरस्त करते हुए राज्य में इस्लामी स्कूलों पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगा दिया था तथा उन छात्रों को सरकारी स्कूलों में दाखिला देने का आदेश दिया था, जिन पर मदरसों के बंद होने का असर पड़ा था।

Published: undefined

  • भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघनों का रिकॉर्ड रखने वाले पत्रकारों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज संगठनों ने बताया है कि उन्हें दूतावास सेवाएं देने से मना किया गया है, जिनमें ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड रद्द करना, साथ ही हिंसा और निगरानी की धमकियां शामिल हैं।

  • भारत सरकार ने नागरिक समाज संगठनों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार रक्षकों और धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर नकेल कसने के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) सहित आतंकवाद विरोधी और वित्तपोषण कानूनों का दुरुपयोग जारी रखा है। यूएपीए 1967 में बना था, लेकिन 2019 में इसमें संशोधन किया गया, जिससे सरकार को बिना किसी उचित प्रक्रिया के व्यक्तियों को "आतंकवादी" के रूप में नामित करने की छूट मिल गई।

  • सरकार ने नागरिक समाज संगठनों के काम में रुकावट डालने के लिए भारत के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) का इस्तेमाल किया है। एफसीआरए व्यक्तियों और संगठनों के लिए विदेशी धन तक पहुंच को नियंत्रित करता है और भारत के "राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक किसी भी गतिविधि" के लिए विदेशी धन प्राप्त करने पर रोक लगाता है।

  • अप्रैल में, भारत के गृह मंत्रालय ने चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई), सिनोडिकल बोर्ड ऑफ सोशल सर्विस, चर्च की सहायक संस्था फॉर सोशल एक्शन और इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया सहित पांच गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए।

  • कुल मिलाकर, भारत सरकार ने 2012 से 20,000 से अधिक एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिए हैं।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined