बिलकीस बानो के अपराधियों को रिहा करने की खबर से मैं इतनी सकते में थी कि कई दिन तक तो इस पर कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। लेकिन अब जब मैं सोच रही हूं तो ये सोचकर शर्मिंदा हूं कि आखिर आज देश में उच्च जाति हिंदुओं के पुरुषों और महिलाओं के लिए इसका क्या अर्थ है। गौर करो तो सामने आता है कि बिलकीस बानो तो दोहरी मार की शिकार हुई है। वह मुस्लिम है और वह महिला है। आज जो हालात हैं वह स्पष्ट हैं कि आज के न्यू इंडिया में मुस्लिम होने का क्या अर्थ है। लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि महिलाएं, उच्च जाति हिंदू महिलाओं समेत, आरएसएस शासित देश में इस घटना का क्या अर्थ निकलाती होंगी।
क्या आरएसएस के पूर्व प्रमुख के सुदर्शन ने नहीं कहा था कि महिलाओं का काम तो सिर्फ बच्चे पैदा करना और अपने पति के लिए भोजन तैयार करना है? वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ साल पहले इसी किस्म की बातें की थीं, उन्होंने ग्रामीण और शहरी इलाकों की महिलाओं में अंतर के रेखांकित किया था कि शहरी भारत यानी इंडिया की महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं अधिक होती हैं जबकि भारत की यानी ग्रामीण इलाकों की महिलाएं तुलनात्मक रूप से अधिक सुरक्षित हैं।
लेकिन हम जानते हैं कि असलियत यह नहीं है। शहर में हरेक निर्भया के साथ ही हाथरस में आशा है तो गुजरात में बिलकीस। हमें यह भी पता होना चाहिए कि महिला किसी भी धर्म, जाति की हो, आरएसएस की सोच वाले लोगों के लिए महज खिलौना भर है। सुदर्शन की इच्छा थी कि हिंदू महिलाएं अधिक बच्चे, कम से कम पांच बच्चे पैदा करें ताकि देश में मुस्लिम आबादी से मुकाबला किया जा सके (मानो कह रहे हों कि हिंदुओं की संख्या खतरे में है), और शायद इसीलिए वे लोग महिलाओं (उच्च जाति की महिलाओं समेत) को नंगे पैर रखते हैं, उन्हें गर्भवती करते हैं और रसोई में व्यस्त रखते हैं ताकि वे समाज में कोई और भूमिका न निभा सकें।
निचली जाति की हिंदू और मुस्लिम महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब है और शायद ऐसा समय भी आ जाएगा जब ‘संस्कारी’ उच्च जातियों के पुरुष महिलाओं के साथ क्या कुछ कर रहे हैं इसकी कोई परवाह ही नहीं करेगा।
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यही कुछ कारण हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और डॉ बी आर आम्बेडकर को लेकर मेरे मन में अत्यधिक सम्मान है। दोनों की पृष्ठभूमि में जमीन आसमान का फर्क था। नेहरू उच्च जाति वर्ग से आते थे जबकि डॉ आम्बेडकर को शिक्षा हासिल करने के लिए कई सामाजिक संघर्षों से दो-चार होना पड़ा। इसके बावजूद दोनों ही समाज और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका के महत्व को समझते थे और इसीलिए दोनों ने महिलाओं को हिंदू कोड बिल के जरिए पर्याप्त अधिकार देने का काम किया। हम जानते हैं कि इस बिल का कांग्रेस में ही उच्च जाति हिंदुओं ने कितना तीखा विरोध किया, जबकि कांग्रेस उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी। यहां तक कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी इस बिल का विरोध किया था। लेकिन पंडित नेहरू और डॉ आम्बेडकर पीछे नहीं हटे और नतीजतन सभी महिलाएं, वह भी जो आज नेहरू के लिए अपशब्द बोलती हैं और आम्बेडकर को आरक्षण के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं, उन्हें भी चार अहम अधिकार मिले हैं। यह हैं व्यस्क होने पर अपनी इच्छा से विवाह का अधिकार (बाल विवाह पर प्रतिबंध लग गया था और अंतरधार्मिक विवाह की छूट दी गई थी), तलाक का अधिकार (पहले महिलाओं अपने अत्याचारी पति को सहन करने को मजबूर थीं, जबकि पति को छूट थी किअगर उसे अपनी पहली पत्नी से संतुष्टि नहीं है तो वह बिना किसी सामाजिक बंधन के अन्य महिला से विवाह कर सकता था), एक ही पति का नियम (बहुविवाह पर रोक) और साथ ही माता-पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा। पहले महिलाओं को कुछ दहेज देकर उनके पतियों के रहमो करम पर छोड़ दिया जाता था।
यह वह अधिकार और बातें हैं जो संघ विचारकों को विचलित करती हैं। संघ की सोच है कि सभी महिलाएं सिर्फ और सिर्फ अपने पति की दासी और उसकी यौन इच्छाओं की पूर्ति का साधन मात्र बनकर रह जाएं। लेकिन विडंबना है कि बिलकीस को अपराधियों का माला पहनाकर स्वागत करने वाली उच्च जाति की महिलाएं हैं और उन्हीं पर सर्वाधिक खतरा है कि वे फिर से पुरुषों की दासी बन जाएं और उनके पास मनुस्मृति से बचने का कोई रास्ता नहीं है।
निचली जाति की महिलाओं के पास बचने का एक रास्ता है कि वे डॉ आम्बेडकर की तरह बौद्ध धर्म का रास्ता चुनें और समाज में बराबरी के हक पा लें। मुस्लिम महिलाओं के पास भी कुरआन के जरिए काफी कुछ अधिकार हैं जो मनुस्मृति के अनुसार हिंदू महिलाओं के पास नहीं हैं। विशेष रूप से तीन तलाक का मामला है जोकि सिर्फ सुन्नी मुस्लिम में ही मोटे तौर पर प्रचलित है, और सुन्नियों में भी उस तबके पर जो हनफी मसलक के हैं, न कि मलिकी, शाफी या हंबली तबके पर। (मुस्लमों में इस्लामी कानून मानने के चार तबके है) लेकिन इस मामले को तीन तलाक को अपराध घोषित कर सुलझा दिया गया है हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऐसा कर चुका था।
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ऐसे में अगर सर्वाधिक असुरक्षित और खतरे में हैं तो वे हैं उच्च जाति की महिलाएं जो आरएसएस की द्वेषपूर्ण और महिला विरोधी नीतियों के निशाने पर हैं। अगर इनके नियम लागू हो गए तो चरक शपथ के आधार पर कोई भी महिला डॉक्टर नहीं बन पाएगी क्योंकि चरक शपथ की शर्त है कि डॉक्टर के दाढ़ी होना चाहिए, महिलाओं को संपत्ति में अधिकार मिलना बंद हो जाएगा क्योंकि संघ विचारक समय-समय पर कहते रहे हैं कि संपत्ति में महिलाओं को अधिकार देने से उनका अपने भाइयों से झगड़ा होगा, उन्हें दिया जाने वाले दहेज (जिसे महिलाओं की सुरक्षा के लिए स्त्रीधन के तौर पर दिया जाना था) पर उनके पतियों का अधिकार होगा और ऐसे में महिलाएं आर्थिक और सामाजिक तौर पर साधनहीन और कमजोर बन जाएगा। इतना ही नहीं उच्च जाति की महिलाएं अपने शयनकक्ष को अन्य महिलाओं के साथ साझा करें क्योंकि उनके पति अनंत संख्या में अपनी पसंद की अन्य महिलाओं से विवाह कर सकते हैं। (इस्लाम में तो अधिकतम 4 विवाह की ही अनुमति है)
हममें से कुछ, निश्चित रूप से आरएसएस द्वारा निर्धारित इस सांचे में फिट नहीं होते हैं। मुझे पत्रकारिता में अपने शुरुआती दिनों की एक बात याद आती है, जब एक बड़े बीजेपी नेता ने मुझे बुलाया था क्योंकि मैं लगातार उसकी नीतियों के खिलाफ लिख रही थी। लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था। उस नेता ने मुझसे कहा, "तुम कैसी भारतीय हिंदू लड़की हो (उसने मेरी कल्पित जाति का उल्लेख किया) जो अल्पसंख्यकों का समर्थन कर रही है?" मैं उन दिनों बहुत बेपरवाह होती थी, इसलिए मैंने जवाब दिया कि इसमें मेरा लड़की या भारतीय होना मायने नहीं रखता। वह मेरी बात से चौंक गया था और उसने मान लिया था कि या तो मैं कम्यूनिस्ट हूं या फिर ईसाई, क्यंकि हिंदू महिलाएं तो पुरुषों की बातों को बहुत ही अनुशासित तरीके से सुन-मान लेती हैं, और मैं ऐसी नहीं थी।
संघ की इसी सोच से बीजेपी और कट्टरपंथियों के हौसले बढ़े हुए हैं। बिलकीस बानो के अपराधियों की रिहाई अन्य समुदायों के मुकाबले हिंदू उच्च जाति की महिलाओं के लिए कहीं अधिक बड़ा खतरे का संकेत है।
सावधान रहना महिलाओं और साथी नागरिकों!
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