गड्ढा मुक्ति अभियान को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की खूब फजीहत हुई। उसी का नतीजा है कि अभियान की अवधि अब 15 नवंबरसे बढ़ाकर 30 नवंबर कर दी गयी है। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि सड़कों को गड्ढों से मुक्त करने का काम अभी अधूरा है, अब तक सिर्फ 78 फीसदी सड़कें ही गड्ढा मुक्त हो सकी हैं। पर असल तस्वीर बता रही है कि अब भी इन दावों और आंकड़ों का सच जमीनी हकीकत से जुदा है। सच तो यह है राजधानी लखनऊ सहित सूबे के ज्यादातर इलाकों में सड़कों का बुरा हाल है ओर इन्हें फिर से बनाये जाने की दरकार है, लेकिन सरकार फिलहाल इनके गड्ढे भी नहीं भर पाई है।
आंकड़ों को देखें तो सामने आता है कि उत्तर प्रदेश में 10,973 किलोमीटर सड़कों का नवीनीकरण किया जाना था। पर 12 नवम्बर तक सिर्फ 4,596 किलोमीटर यानि सिर्फ 42 फीसदी सड़कों का ही नवीनीकरण हो सका। शेष सड़कें अभी भी गड्ढों में ही गतिमान है। 11,918 किलोमीटर लम्बाई की सड़कों में से सिर्फ 6142 किलोमीटर यानि करीबन 51 फीसदी सड़कों की ही विशेष मरम्मत हो सकी है। यह आंकड़ें आम जन की भावनाओं को झकझोरने वाले हैं।
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दरअसल नारों और जुमलों पर आधारित दावों और वादों पर चलने वाली यूपी की बीजेपी सरकार ने ऐलान तो कर दिया था कि 15 नवंबर तक पूरे प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त कर दिया जाएगा। लेकिन अब हकीकत सामने है। कई जिलों में सड़कों के नवीनीकरण और मरम्मत के नाम पर जो काम हुए हैं उसकी असलियत उधड़कर सामने आ चुकी है। तमाम तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को बैक फुट पर आना पड़ा।
बीते दिनों पीलीभीत के भगवंतापुर इलाके का एक वीडियो सामने आया जिसमें लोग हाथों से ही सड़क उधाड़कर सरकारी दावों को हकीकत बयान करते नजर आए। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह के वीडियो सामने आए हैं। पहले भी पीलीभीत में लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाई गयी दो सड़कों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करते हुए वीडियो वायरल हुए थे।
जौनपुर के मड़ियाहूं से भदोही के बीच की 24 किलोमीटर सड़क की हालत सबसे ज्यादा खस्ता है। शाहगंज मार्ग के तमाम जगहों पर डामर और गिट्टी उखड़ चुकी है। गाजीपुर की डीएम आर्यका अखौरी ने बीते दिन निरीक्षण के बाद नगर की सड़कों को गड्ढामुक्त करने का निर्देश दिया। पर उस पर अब तक काम ही शुरु नहीं हो सका है।
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राजधानी लखनऊ की कहानी भी अलग नहीं है। लखनऊ और आसपास के जिलों में लोक निर्माण विभाग ने लाखों रुपए खर्च कर सड़कों पर सिर्फ पैचवर्क ही किया है और गड्ढा भराई की रस्म पूरी कर दी है। ऐसी सड़कों की लम्बी फेहरिस्त है। आम जन के लिए यह नजारे सुलभ हैं। हैरानी की बात यह है कि खुद विभागीय मंत्री जितिन प्रसाद को इसकी जानकारी है। अपने बयानों और निर्देशों में वह खुद इस बात को स्वीकार भी चुके हैं। इसके बावजूद सड़कों के पुनर्निमाण के बजाए पैचवर्क का खेल रुक नहीं रहा है। शहर का सबसे पॉश माना जाने वाला इलाका गोमतीनगर भी इन गड्ढों से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है।
शाहजहांपुर में करीब 250 किलोमीटर और बस्ती जिले की करीब 35 फीसदी सड़कों में अभी भी गड्ढे हैं। अमरोहा के स्थानीय लोग बताते हैं कि सरकार के गड्ढामुक्ति अभियान को पूरा करने की कवायद शुरु ही नहीं हुई है। चंदौली में गड्ढों से भरी सड़कों पर आए दिन लोग जख्मी हो रहे हैं। 16 किलोमीटर लम्बाई वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर मुगलसराय चहनिया मार्ग का हाल सबसे बुरा है। यह सड़क पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन मुगलसराय—चहनिया—गाजीपुर और वाराणसी को जोड़ती है। कई वर्षों से 24 घंटे चलने वाली यह सड़क जर्जर हालत में है।
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर का हाल भी कोई अलग नहीं है। बीते दिनों वहां गड्ढा मुक्ति अभियान की राह में ही रोड़े दिखे। स्थानीय ठेकेदारों ने अपनी मांगों को लेकर काम रोक दिया। यहां अभी भी रीबन 50 फीसदी सड़कों में गड्ढे हैं। आस पास के जिलों की हालत ज्यादा खस्ता है। देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर आदि जिलों में सिर्फ कोरम पूरा किया जा रहा है। आलम यह है कि जिन सड़कों पर गडढे भरे गए हैं। उन पर चल रही गाड़ियों के ब्रेक लगाते ही पहियों की रगड़ से सड़कें उखड़ रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की तस्वीर काफी रोचक है। हालिया, जिले के 86 गांव, नगर निगम में शामिल किए गए। उनकी 100 किमी की खस्ता सड़क भी निगम की सीमा में आ गयी। पर किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि उन इलाकों की सड़कें गडेढामुक्त होंगी या नहीं। अब तक इसकी योजना ही बनकर तैयार नहीं हुई है। मंडौली, मंडुवाडीह, रामनगर जैसे कई ग्रामीण इलाके इस जवाब की प्रतीक्षा मे हैं।
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विभागीय जानकारों का कहना है कि योगी सरकार अपने पहले कार्यकाल में भी गड्ढामुक्ति अभियान चला चुकी है और इसी तरह उसकी अवधि 15 दिन के लिए बढ़ाई गयी थी। उसके बावजूद सड़कों पर बने गड्ढों को पैच वर्क के जरिए भरकर अभियान को सच का मुखौटा पहनाने की कोशिश की गयी थी, वही एक बार फिर दोहराया जा रहा है। उन्हें शायद यह नहीं पता कि गढ्ढे भरने के अभियान में सिर्फ गढ्ढे भरते हैं, इससे सड़कें नहीं बनतीं। गड्ढा भरना दरअसल एक ऐसा खेल बन चुका है जो कभी सड़क को अपनी जमीन पाने ही नहीं देता। वह उखड़ने और भरी जाने में ही उलझी रहती है। खामियाजा जनता भुगतती है।
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