अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई पूरी होने के दिन यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से मध्यस्थता पैनल के जरिए प्रस्ताव देकर भूमि पर दावा छोड़ने की खबरें आने के साथ ही यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर अहमद फारुकी भी चर्चा में आ गए हैं। इसके साथ ही एक न्यूज चैनल ने उनका एक कथित वीडियो भी प्रसारित किया जिसमें वे यह मानत हुए दिख रहे हैं कि भगवान राम का जन्म अयोध्या ही में हुआ था।
लेकिन फारुकी की बातों से यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के दूसरे सदस्य और अधिकारी सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ‘फारुकी साहब कुछ भी कर सकते हैं।’ बोर्ड के एक पदाधिकारी ने बताया कि, “फारुकी हमेशा सत्तारूढ़ पार्टी के साथ नजदीकियां रखना चाहते हैं। मायावती के दौर में भी उनकी चलती थी, लेकिन जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उनके साथ अपनी पैठ बना ली। यहां तक कि बीजेपी की सरकार आने पर भी वे यूपी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बन गए।”
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लेकिन अयोध्या मामले की सुनवाई के आखिरी दिन जिस तरह से वक्फ बोर्ड का रुख सामने आया, उससे मामला संदिग्ध नजर आने लगा। सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों हुई कुछ घटनाओं को जोड़ें तो लगता है कि फारूकी बीजेपी के गेम प्लान में फंसे हुए हैं। अभी कुछ दिन पहले ही योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में वक्फ की जमीनों और संपत्तियों की अनियमित खरीद-फरोख्त और मालिकाना हक हस्तांतरण को लेकर सीबीआई जांच कराने की सिफारिश की है। शनिवार को ही यूपी के गृह मंत्रालय ने कहा था कि इस सिलसिले में कार्मिक मंत्रालय को एक पत्र भेजा गया है।
पत्र में यूपी के शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों में ही संपत्तियों की खरीद-फरोख्त और मालिकाना हक ट्रांसफर में भ्रष्टाचार की जांच की बात की गई है। इसके अलावा इलाहाबाद और लखनऊ में इस सिलसिले में दर्ज दो एफआईआर भी द्रज की गई हैं।
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ये सारी कार्यवाही इस परिप्रेक्ष्य में की जा रही है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दोनों वक्फ बोर्ड को भंग कर एक नया यूपी मुस्लिम वक्फ बोर्ड बनाना चाहती है। सरकार का मानना है कि अलग-अलग बोर्ड होने से धन की बरबादी होती है और कुछ नहीं।
इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश के वक्फ मंत्री मोहसिन रज़ा ने इस संवाददाता को बताया कि दोनों ही बोर्ड (शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड) पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और सरकार जल्द ही दोनों बोर्ड को भंग कर देगी। उन्होंने कहा, “सरकार को तमाम सुझाव और पत्र विभिन्न तबकों से मिले हैं जिसमें दोनों बोर्ड को मिला देने की बात कही गई है। इसके बाद सरकार ने संबंधित विभाग से इस बारे में प्रस्ताव तलब किया है।”
रोचक है कि 1999 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने वक्फ बोर्ड का बंटवारा कर अलग-अलग शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाए थे। इस पर मोहसिन रिज़वी कहते हैं कि, “तब की बात और थी। अब बोर्ड से जुड़े लोग गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं। वक्त आ गया है कि वक्फ बोर्ड की सफाई की जाए।”
तो क्या इस सबके चलते ही वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी बीजेपी के दबाव में हैं? वक्फ बोर्ड की कार्यशैली को करीब से जानने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि, “फारुकी साहब एक पढ़े-लिखे शख्स हैं और उन्होंने धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई है। सीतापुर के बीएसपी विधायक से नजदीकियों का फायदा उठाकर वे मायावती के दौर में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने। लेकिन जब अखिलेश की सरकार बनी तो उन्होंने आजम खान से निकटता बढ़ाई और पद पर बने रहे। इस दौरान में सत्ता से संतुलन साधने की कला सीख चुके हैं और यही वजह है कि बीजेपी सरकार के योगी राज में भी उनका सिक्का चल गया।”
जाहिर है अयोध्या कि विवादित भूमि से दावा वापस लेने का उनका फैसला बीजेपी को पसंद आएगा और इसके बदले उन्हें कुछ न कुछ ईनाम तो मिलेगा ही।
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