इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या और मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय कर देने पर इतना बवेला हुआ। पर यूपी सरकार को कुछ फर्क नही पड़ा। अब योगी आदित्यनाथ शासन में कस्बे और मोहल्लों के नाम तक बदल दिए गए हैं।
गोरखपुर हो या फिर अयोध्या, लखनऊ हो या फिर रामपुर- यहां वार्डों के नाम ऐसे ‘महापुरुषों’ के नाम पर रख दिए गए हैं जो भाजपा-संघ के प्रिय हैं। लखनऊ नगर निगम में आठ में से दो वार्ड भगवान परशुराम और बुद्श्धे्वर महादेव के नाम पर कर दिए गए हैं। फैजुल्ललागंज वार्ड का नाम भारतीय जनसंघ के पहले महासचिव पंडित दीन दयाल उपाध्याय पर कर दिया गया है, तो वही विद्यावती प्रथम वार्ड का नाम दूसरे सर संघचालक माधव सदाशिव राव गोलवरकर के नाम पर हुआ है। अयोध्या में 60 वार्डों का नामकरण बीजेपी के पसंदीदा महापुरुषों के नाम पर किए गए हैं। नए वार्डों के नाम अशोक सिंघल, कल्याण सिंह, महंत अवैद्यनाथ, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, परमहंस रामचंद्र दास, आचार्य नरेन्द्र देव, सावरकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, मंगल पांडेय, शिवाजी आदि के नाम पर रखे गए हैं। इसके संकेत और संदेश बिल्ककुल साफ हैं और संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।
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गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कर्म क्षेत्र है। यहां नगर निगम में 32 गांव शामिल होने के बाद परिसीमन नहीं हो सका है। लेकिन टाउन एरिया में वार्डों के नाम से साफ है कि अधिकारी किस किस्म के दिशा-निर्देश में काम कर रहे हैं। गोरखपुर के नवगठित टाउन एरिया- पीपीगंज के 19 नवसृजित वार्डों के नाम अटल से लेकर कल्याण सिंह के नाम पर हैं। वैसे, यहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरबहादुर सिंह के नाम को भी एक वार्ड में जगह मिल गई है। लेकिन इसकी वजह शायद यह अधिक है कि वीरबहादुर के बेटे फतेह बहादुर सिंह इन दिनों बीजेपी से विधायक हैं।
इसी तरह गोरखपुर के ही मुंडेरा बाजार टाउन एरिया में दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से वार्ड बनाए गए हैं। अन्य 14 वार्डों के नाम महापुरुषों और भगवान के नाम पर ही हैं। इसी तरह कैम्पियरगंज (चौमुखा) टाउन एरिया में दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह की पत्नी चंपा देवी के नाम से एक वार्ड का नाम रखा गया है। समाजवादी पार्टी नेता भोला यादव कहते हैं कि ‘अखबारों में जारी विज्ञापन के आधार पर नामों को लेकर आपत्ति दर्ज कराई गई है लेकिन मालूम है कि होगा कुछ नहीं। क्षेत्र के लिए काम करने वालों के बजाय राष्ट्रीय चेहरों पर वार्डों का नाम ठीक नही है।’ महराजगंज के चौक टाउन एरिया में गोरक्षपीठ की सैकड़ों एकड़ जमीन और मंदिर है। ऐसे में, यहां भी गुरु गोरक्षनाथ नगर, महंत अवैद्यनाथ, दिग्विजयनाथ के नाम पर वार्ड गठित किए गए हैं। वैसे, यहां भी अटल बिहारी वाजपेयी और दीन दयाल उपाध्याय नगर के नाम वार्डों का गठन हुआ है।
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गोरखपुर तो, पहले से ही, पूरी तहर योगीमय हो चुका है। गोरखपुर में प्रवेश करते समय नगर निगम के छह मार्गों पर बने सभी भव्य प्रवेश द्वारों के नाम नाथ योगियों के नाम पर रखने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सहमति दे दी है। ये प्रवेश द्वार महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ, बाबा गंभीरनाथ, गुरु गोरक्षनाथ, महंत बालक नाथ और महंत चौरंगीनाथ के नाम पर होंगे। इन सब जगहों पर नाथ योगियों की भव्य प्रतिमाएं लगाई जाएंगी। इसके पहले रामगढ़ झील के सामने बने पार्क को महंत दिग्विजयनाथ पार्क के नाम पर किया गया। गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने यहां महंत दिग्विजयनाथ की प्रतिमा लगाई है। नगर निगम के नए सदन के सामने भी महंत अवैद्यनाथ की भव्य प्रतिमा लगाई गई है। राप्ती नदी के तट का सुंदरीकरण किया गया है। इस घाट का नाम गोरक्षनाथ के नाम पर रखा गया है।
वहीं रामगढ़ झील के किनारे 52 करोड़ की लागत से 1,008 लोगों की क्षमता वाले प्रेक्षागृह का नामकरण भी नाथ योगी गंभीरनाथ के नाम से किया गया है। लोकार्पण के समय अपने भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नामकरण की सार्थकता सिद्ध करने का प्रयास करते हुए कहा था कि ‘गंभीरनाथ जी ने अपनी साधना का लंबा समय गोरखपुर और गया में गुजारा था। वह जब वीणा बजाते थे तो आसपास के साधक और जंगल के पशु-पक्षी वीणा सुनने में लीन हो जाते थे।’ गोरखपुर में 52 एकड़ में निर्माणाधीन प्रदेश के पहले आयुष यूनिवर्सिटी का नाम भी गुरु गोरखनाथ के नाम से रखा गया है। वहीं गोरक्षपीठ द्वारा बना गए प्राइवेट आयुष यूनिवर्सिटी का नाम भी नाथपंथ के अधिष्ठाता महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के नाम से है ही। इन दोनों यूनिवर्सिटी का लोकार्पण और शिलान्यास राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने साल भर पहले किया था। जंगल कौड़िया क्षेत्र में 30 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित राजकीय महाविद्यालय का नाम भी महंत अवैद्यनाथ के नाम पर है। यहां महंत अवैद्यनाथ की कांस्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है।
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समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ऐसे कदमों पर तंज कसते हुए कहते हैं कि ‘योगी सरकार जनता के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए नाम बदलने की राजनीति पर जोर दे रही है।’ साहित्यकार कुमार अमित का कहना है कि ‘गोरखपुर का नाम ही आदि गुरु गोरखनाथ के नाम पर है। नाथ योगियों के नाम को लेकर किसी को आपत्ति नही है। लेकिन गोरखपुर शहर की पहचान प्रखयात शायर फिराक गोरखपुरी, साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद, स्वतंत्रता सेनानी और दार्शनिक बाबा राघव दास से लेकर नाट्य समीक्षक और प्रख्यात रंगकर्मी प्रो. गिरीश रस्तोगी से भी है। सिर्फ राजनीतिक नफा के लिए कुछ चेहरों को आगे करना उचित नहीं है।’
वैसे, लखनऊ यूनिवर्सिटी में मानवशास्तत्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. नदीम हसनैन एक दूसरी महत्वपूर्ण बात भी कहते हैः पहले से प्रचलित नाम को बदलने का मतलब इतिहास बदलना होता है। इतिहास हमारा अतीत है, इसे बदला नहीं जा सकता है। विशेष विचारधारा के लोगों को पहले मुस्लिम शासकों और बादशाहों के नाम को लेकर आपत्तियां थीं लेकिन कोई बताने को तैयार नहीं है कि इलाहाबाद या फिर फैजाबाद किन मुस्लिम शासकों के नाम पर था। दरअसल, इन्हें अब उर्दू नाम से ही दिक्कत है। अब सुल्तानपुर का नाम बदलने की कोशिशें हो रही हैं। मुझे तो लखनऊ के नाम बदले जाने का इंतजार है।'
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प्रो. नदीम हसनैन आगे कहते हैं, "मुस्लिमों में इन्हें दो नाम मिल गए हैं, पहला वीर अब्दुल हमीद और दूसरा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम। इनके अलावा किसी मुस्लिम का देश के लिए योगदान नही है। दरअसल, आने वाली पीढ़ी को यह बताने की मानसिकता से काम हो रहा है कि देश के इतिहास में मुस्लिम समुदाय की कोई हिस्सेदारी और भागीदारी नहीं है। पंचायतों, कस्बों और वार्डों के स्तर पर नाम बदलना देश और समाज के लिए ठीक नहीं है। हम कम्पोजिट कल्चर के साथ रहते रहे हैं। वर्तमान में हो रहे नामकरण में स्थानीयता को भी दरकिनार किया जा रहा है।"
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