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यूपी चुनाव : वर्चुअल प्रचार में सीना फुलाए बीजेपी के पैर आखिर कांप क्यों रहे हैं !

बेहिसाब पैसे खर्च कर बीजेपी अनाप-शनाप वर्चुअल प्रचार में आगे दिखती है। लेकिन वोटर के पास जाना नेताओं की मजबूरी है। यही बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है। मुजफ्फरनगर में खतौली के विधायक विक्रम सैनी को एक गांव में जिस तरह दौड़ाया गया वह एक संकेत तो है ही।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बीजेपी 365 दिन 24x7 चुनाव मोड में रहती है। कोरोना की तीसरी लहर की वजह से रैलियों की मनाही हुई, तो वर्चुअल तथा पारंपरिक डोर-टु-डोर कैम्पेन के जरिये वह बढ़त बनाने की कोशिश में है।

गाजियाबाद के एक पार्षद संजय सिंह बताते हैं कि उनके इलाके से उम्मीदवार की घोषणा से पहले ही पार्टी निर्देश पर डोर-टु-डोर प्रचार आरंभ कर दिया गया क्योंकि ‘हम योगी आदित्यनाथ-नरेंद्र मोदी के कामों को सामने रखकर जनता के सामने जा रहे हैं।’ वैसे भी, सोशल मीडिया में जरूरत से ज्यादा सक्रियता की वजह से बीजेपी ने जिस तरह कम-से-कम यूपी और उत्तराखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की है, उससे समझा जा सकता है कि उसका इरादा क्या है।

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बीजेपी ने पिछले महीने ही कार्यकर्ताओं को निर्देश दे दिया था कि वे उम्मीदवार के नाम की प्रतीक्षा न करें, डोर-टु-डोर प्रचार आरंभ कर दें। व्हाट्सएप ग्रुपों के जरिये फैलाए गए तरह-तरह के जहरीले मैसेज के जरिये वह हर मुहल्ले के कुछ-न-कुछ लोगों के पास अपनी बात सालों भर पहुंचाती रही है, इसलिए पार्टी स्टैंड को लेकर किसी को कोई भ्रम भी नहीं है। सो, पार्टी की एक टोली जब ओमिक्रॉन की मार के दौरान सुबह के वक्त मेरठ शहर के एक हिस्से में चाय की दुकान के पास पहुंची, तो वहां काफी सारे लोग मिल भी गए।

बात यहीं से शुरू हुई कि ‘भैया, चाचा, बाबा, आपके नाम वोटर लिस्ट में हैं या नहीं।‘ अधिकांश, बल्कि सबने हां ही बताया। शौचालय, आवास, उज्जवला, राशन वगैरह के बारे में जानकारी जुटाई और दी जाने लगी। तब ही किसी के मोबाइल पर भक् से मनोज तिवारी और मनोज मित्तल के गाए गाने का एक वीडियो चल गया- ‘मंदिर अब बनने लगा है, भगवा रंग चढ़ने लगा है..’। टोली के लोग मुस्कुराने लगे, तो वह आदमी जिसके हाथ में मोबाइल था, बोल पड़ा, ‘काहे देंगे आप लोगों को वोट? मंदिर-मंदिर के अलावा कुछ किया भी है आप लोगों ने?’ और वह उठकर बगल की गली में चला गया। एक आदमी ने फुसफुसाकर कहा, ‘आज रहने दीजिए इस ओर। बाद में आएंगे हम लोग।’ दरअसल, अनजाने में यह टोली उस इलाके में चली आई थी जहां मिश्रित आबादी है।

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मुजफ्फरनगर के एक गांव में लोगों ने बीजेपी उम्मीदवार को ही दौड़ा दिया था

यही हालत बीजेपी को डराने वाली है। शहरी इलाकों की गरीब बस्तियों में भी स्मार्ट फोन वाले काफी लोग मिल जाते हैं, पर ग्रामीण इलाकों में ऐसा नहीं है। शाहजहांपुर जिले की पुवायां सीट के हरदुआ गांव के प्रवीण कुमार कहते हैं कि ‘मैं न इंटरनेट से जुड़ा हूं और न ही फोन चलाना जानता हूं। वोट चाहिए, तो नेताओं को यहां आना होगा, तब पूछेंगे कि अब तक किया क्या? मेरे गांव की सड़क पांच साल से उखड़ी पड़ी है। रोज कोई-न-कोई गिरकर घायल हो जाता है। छुट्टा जानवरों ने किसानों की नींद हराम कर रखी है। गांव में एक गौशाला तो होनी चाहिए जिसमें आवारा मवेशियों को रखा जा सके।’

पास के मीरपुर गांव के रामभजन लाल भी कहते हैं कि ‘हमारे इलाके के बीजेपी विधायक मेरी ही बिरादरी के हैं लेकिन जीतने के बाद कभी दिखाई ही नहीं पड़े। प्रधानमंत्री की शाहजहांपुर रैली में भीड़ बढ़ाने के लिए मुझे भी ले जाया गया था। इस बार प्रत्याशी गांव आएं तो उन्हें हालात दिखाएंगे, फिर वोट की बात करेंगे।’

सच्ची बात तो यह है कि पश्चिमी यूपी और रूहेलखंड के कई गांव ऐसे हैं जो अपने नेताओं की बाट जोह रहे हैं। ग्रामीणों का सीधा कहना है कि गांव आएंगे, तो वोट मिलेंगे; नहीं आएंगे, तो वोट नहीं मिलेंगे।

इसीलिए बीजेपी विरोधी पार्टियां आयोग के ताजा निर्देश के बहाने जमीन पर कुछ ज्यादा मजबूती से पैर टिकाने की कोशिश में हैं। समाजवादी पार्टी से जुड़े बरेली जिले के सेंथल कस्बे के निवासी अली अब्बास कहते हैं कि ‘हमारी पार्टी ने भी वर्चुअल प्रचार पर फोकस किया हुआ है लेकिन हम यह मान रहे हैं कि जीत के लिए हर आदमी तक पहुंचना ही होगा। बीजेपी का आईटी सेल गलत तथ्यों को लोगों के सामने रख रहा है। उसका यही तोड़ भी होगा।’

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सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले पीलीभीत जिले में बीसलपुर सीट के करेली गांव के अभिषेक कुमार खुद ही कहते हैं कि ‘हम भी जानते हैं कि इन पर मिलने वाले वीडियो, मैसेज भरोसे लायक नहीं हैं। हमारे विधायक बीजेपी के हैं लेकिन जीतने के बाद कभी सुध लेने नहीं आए। इस बार हम पार्टी नहीं बल्कि दावेदार देखेंगे।’

रूहेलखंड विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर डॉ. मनोज सिंह इसे दूसरे परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। वह कहते हैं कि ‘देखना यह होगा कि कौन-सी पार्टी कौन-सा मुद्दा किस तरह खड़ा करती है। कांग्रेस ने इस बार अलग-अलग क्षेत्रों के अराजनीतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दिया है। ज्यादातर व्यवस्था पीड़ित, दलित, शोषित, हाशिये के लोग हैं। शाहजहांपुर से जिन महिला को उसने उतारा है, उन्हें मुख्यमंत्री के सामने अपनी समस्या रखने के लिए प्रताड़ित किया गया था। ऐसे उम्मीदवार जनता के बीच जाएंगे तो पहचान, नीयत, मंशा बताने की जरूरत नहीं होगी।’

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इसी वजह से समझा जा सकता है कि ‘यूपी में का बा’-जैसे गाने के लिए नेहा सिंह राठौर की तुरंत ट्रोलिंग क्यों शुरू हो जाती है जबकि सांसद रवि किशन शुक्ला का रैप सॉन्ग ‘जे कब्बो ना रहे, यूपी में सब बा’ लॉन्च हो चुकी होती है। दो बातों की ओर खास तौर से ध्यान दें- इस गाने की शुरुआत ‘हर हर महादेव’ से होती है और आपने भोजपुरी स्टार रवि किशन को अपने नाम के साथ या किसी को इनके नाम के साथ ‘शुक्ला’ लगाते शायद ही सुना हो। दरअसल, नेहा के गाने की ये पंक्तियां ‘जनता नेताजी से पूछिहअ केने बड़ुए विकास’ और ‘देह नोचवन के बाटे खदिए में बास’ सत्ता पक्ष को चुभेंगी ही।

दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी समेत बीजेपी की सभी सामग्रियों में अयोध्या, मथुरा, काशी, भगवा, बुलडोजर आदि शब्दों के साथ सांप्रदायिकता उभारने के खयाल से नेताओं के चित्रों, वीडियो का इस्तेमाल किया गया है जबकि विपक्ष की प्रचार सामग्रियों में विकास और घोटालों की परतें उघारी गई हैं। बिलाल सहारनपुरी के लिखे और बॉलीवुड सिंगर अल्तमश फरीदी के अखिलेश यादव पर केन्द्रित गाए गाने को हिट्स मिलने लगे और लोग उसे शेयर करने लगे, तो बीजेपी की परेशानी समझी जा सकती है। अभी तो आयोग ने बड़े कार्यक्रमों पर रोक लगा रखी है लेकिन कांग्रेस के ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ रैलियों में जिस तरह भीड़ उमड़ी, उससे भी बीजेपी में व्यग्रता बढ़ ही गई थी।

(पंकज मिश्र और उमेश के इनपुट के साथ)

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