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यूपी चुनावः आज जितने दलित मायावती के साथ, उतने ही खिलाफ, अब कागज की कश्ती में सवार हाथी कैसे करेगा दरिया पार

बीजेपी दलितों की उन जातियों पर टारगेट कर रही है जो संख्या के आधार पर तो कम हैं लेकिन गेम चेंजर की भुमिका अदा कर सकती हैंं। दलितों में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो बीजेपी के तो खिलाफ हैं, लेकिन बीएसपी से खुश नहीं हैं। ये लोग चंद्रशेखर का भी समर्थन कर सकते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

जमीन से उठकर अर्श तक का सफर करने वाली मायावती के सामने आज अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाने की बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश मे अगले साल विधांनसभा चुनाव होने हैं। मायवाती चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उस समय बीएसपी की कामयबी की सबसे बड़ी वजह यह थी कि दलित समाज का भरपूर समर्थन मायावती को हासिल था। लेकिन अब दलितो के एक बड़े तबके ने उंनसे मुंह मोड़ लिया है। आज जितने दलित मायावती के साथ हैं, उतने ही उंनके खिलाफ भी हैं।

उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत आबादी दलित समुदाय से है जो बीएसपी समर्थक और गैर बीएसपी समर्थकों में बंटे हुए हैं। या इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि दलित अब जाटव और गैर जाटव में बंट गए हैं। जाटव जहां बीएसपी के कोर वोटर माने जाते हैं, वहीं गैर जाटव की अधिक्तर जातियां बीएसपी के खिलाफ जाती नजर आ रही हैं।

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दरअसल उत्तर प्रदेश के अंदर दलितों की तकरीबन 66 जातियां शामिल हैं। इनमें सबसे बड़ी आबादी जाटव सामाज की है जो दलित आबादी का तकरीबन 56 प्रतिशत है। इसके बाद वाल्मीकी, पासी और धोबी आते हैं जो कि दलित आबादी का 15-15 प्रतिशत के आसपास हैं। बाकि दुसरी दालित जातियों का चुनाव में उतना प्रभाव नहीं है लेकिन अगर ये दुसरी सभी छोटी जातियां एक होकर वोट डालती हैं तो इंनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। 2017 के चुनाव मे बीजेपी की कामयाबी की एक बड़ी वजह यह भी थी कि इन छोटी जातियों ने मिलकर बीजेपी को भरपूर समर्थन किया था।

उत्तर प्रदेश मे दलित समुदाय के लिए 17 लोकसभा और 85 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। 2017 के विधांनसभा चुनाव मे 85 आरक्षित सीटों में 69 सीटें बीजेपी ने जीतीं, वहीं एसपी ने 7 और बीएसपी मात्र 2 ही सीट जीत पाई। इस बार मायावती के लिए रास्ता और भी कठिन हो सकता है। जिसके पीछे बड़ी वजह है चंद्रशेखर। मायवती और चंद्रशेखर दोनों ही जाटव समुदाय से हैं। जाटव समुदाय में चंद्रशेखर की पकड़, विशेषकर वेस्टर्न उत्तर प्रदेश में काफी अधिक हो चुकी है। आगमी विधांनसभा चुनाव में इस बात की पुरी आशंका है कि जाटव समुदाय भी दो खेमों में बंट जाएगा। अगर ऐसा होता है तो मायावती की बची हुई जमीन भी खिसक जाएगी।

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जाटवों के बाद वाल्मिकी, चमार, पासी, धोबी जातियों का प्रभाव काफी रहा है। वाल्मिकी बीजेपी का कोर वोटर माने जाते हैं। वाल्मिकी समाज और जाटव सामज मे अंदुरुनी कलह भी काफी पाई जाती है। पासी जाति का प्रभाव रायबरेली, अमेठी, उन्नाव, प्रतापगढ़ जिलों में काफी है। पासी जाति भी अब बीजेपी की काफी करीब मानी जाती है।

कौरी समुदाय भी बीएसपी की तरफ उस तरह से अब नहीं रह पाया जैसे पहले कभी था। इटावा, जालौन, हामीरपुर, फिरोजाबाद, मैनपुरी, कन्नौज जैसी सीटों पर इस जाति की महत्वपुर्ण भुमिका है। खटीक समुदाय जो बुलंजशहर, बनारस, कानपुर मे काफी महत्व रखता है को अब बीजेपी का हार्डकोर वोट माना जाता है।

कुल मिलाकर यह है कि दलित समाज में बीएसपी के लिए चारों तरफ मुश्किल भरे रास्ते हैं। बीजेपी दलितों की उन जातियों पर टारगेट कर रही है जो संख्या के आधार पर तो कम हैं लेकिन गेम चेंजर की भुमिका अदा कर सकती हैंं। दलितों में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो बीजेपी के तो खिलाफ हैं, लेकिन बीएसपी से खुश नहीं हैं। ये लोग चंद्र्शेखर का समर्थन कर सकते हैं।

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दलित-मुस्लिम एकता का जो नारा कांशीराम लगाते थे, मायावाती ने उसे अब दलित ब्राह्मण में तब्दील कर दिया है। मुस्लिम समाज पर मायावती अब भरोसा करने वाली नहीं हैं। इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार मुस्लिम समाज को बीएसपी में उतनी भागीदारी नहीं मिल पाएगी जितनी पिछ्ले चुनाव में मिली थी। मुस्लिमों की एक बडी आबादी का भी बीएसपी से मोहभंग हो गया है। मुस्लिमों का बहुत ही सीमित समर्थन मायवाती को मिल पाएग।

ब्रहामणों पर जो कार्ड बीएसपी खेल रही है, उसमें उसे कामयाबी आसानी से नहीं मिलने वाली है। ब्राह्मण बीजेपी के कट्टर वोटर माने जाते हैं। सतीश चंद्र मिश्रा पर मायावाती का भरोसा कामयाब होना मुशिकल है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मिश्रा की अपने समाज मे कोई पकड़ नहीं है। उल्टे इसका नुकसान यह हो रहा है कि मिश्रा के बीएसपी मे बढ़ते कद से बहुत सारे दलित नेता दुखी हैं। पिछ्ले कुछ दिनों में कई बड़े नेताओं ने बीएसपी से पल्ला झाड़ लिया है। मिश्रा की बाढ़ती ताकत से बीएसपी को फायदा कम नुकसान होने का खतरा अधिक है।

कुल मिलाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बीएसपी का हाथी कागज की कश्ती पर सवार हो गया है अब देखना यह है कि यह कश्ती दरिया कैसे पार लगाएगी।

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