सत्ताधारी दल जिन परियोजनाओं को गिनाकर वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, उसके लिए बजट में जो रकम सुरक्षित की गई है, उतने में रसोई गैस का सिलेंडर मिलना भी मुश्किल है। पूर्वाचल में वोटरों को प्रभावित करने वाली चार बड़ी परियोजनाओं के लिए वित्त मंत्री ने बजट में सिर्फ 1,000-1,000 रुपये का प्रावधान किया है। ये परियोजनाएं चुनावी पटरी पर वर्षों से दौड़ रही हैं। ये कब हकीकत में जमीन पर उतरेगीं, यह तो राम ही जानें।
महराजगंज में गोरक्ष पीठ की छावनी है। महराजगंज से ही सांसद पंकज चौधरी अभी केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री हैं। पहली फरवरी को वह टेलीविजन पर वित्त मंत्री के साथ दिखे, तो उम्मीद बंधी कि डेढ़ दशक से चुनावी मुद्दा बन रहे आनंदनगर-घुघली रेल लाइन के लिए खजाना खुलेगा। लेकिन पूर्वोत्तर रेलवे के अफसरों ने पिंक बुक में बजट की डिटेल निकाली तो पता चला कि परियोजना के लिए 1,000 रुपये की टोकन राशि ही सुरक्षित की गई है। यूपी से बिहार को जोड़ने वाली 50 किलोमीटर लंबी इस नई रेल लाइन को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मंजूरी मिली थी। 2019 में पंकज की जीत के पीछे इस परियोजना की मंजूरी का ढिंढोरा भी पीटा गया था। इस मसले पर पंकज ने अब खामोशी ओढ़ ली है।
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धार्मिक स्थलों के विकास को लेकर भी खूब ढिंढोरा पीटा जा रहा। भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर को रेल लाइन से गोरखपुर तक जोड़ने का मुद्दा पिछले दो दशक से उठ रहा है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई। 1,476 करोड़ की इस योजना के लिए प्रदेश सरकार को भी 50 फीसदी का अंशदान करना है। भूमि अधिग्रहण के लिए सर्वे को लेकर एक करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान हुआ। लेकिन सब कुछ ठंडे बस्ते में है। इस बार बजट में इस रेल लाइन के लिए भी सिर्फ हजार रुपये की टोकन राशि सुरक्षित की गई है।
इसी तरह नेपाल बॉर्डर तक जाने वाली बस्ती-बांसी-कपिलवस्तु रेल लाइन को वित्तीय वर्ष 2014-15 में ही मंजूरी मिल गई। 91 किलोमीटर लंबे प्रोजेक्ट पर 643 करोड़ रुपये खर्च होने हैं। लेकिन बजट में इसके लिए सिर्फ एक रुपये की टोकन राशि रखी गई है। भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल 2009 से सिद्धार्थनगर के वोटरों को 91 किलोमीटर लंबे इस रेल लाइन को लेकर सपने दिखाकर चुनाव जीत रहे हैं।
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इसी तरह एटा से कासगंज तक 29 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के लिए भी बजट में हजार रुपये सुरक्षित किया गया है। बजट में बहराइच-नानपारा-नेपालगंज तक 56 किलोमीटर लंबे रेल दोहरीकरण के लिए भी सिर्फ हजार रुपये मिले हैं। पूर्वांचल से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी तक चुनाव लड़ते हैं। उसी क्षेत्र के रेलवे जोन पूर्वोत्तर रेलवे की प्रस्तावित केन्द्रीयकृत यातायात नियंत्रण प्रणाली के लिए भी महज 1,100 रुपये ही मिले हैं।
सहजनवा-दोहरीघाट रेल लाइन बिछाने के लिए 1320.75 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होनी है। इसके लिए 535 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना है। इसके लिए दिसंबर में सिर्फ 20 करोड़ रुपये का बजट जारी हुआ है। इसी परियोजना को बांसगांव के वोटरों को बताकर भाजपा सांसद कमलेश पासवान जीत की फसल काट रहे हैं। सपा से पूर्व सांसद अखिलेश सिंह कहते हैं कि ‘डबल इंजन की सरकार में पूर्वांचल की परियोजनाओं के लिए सिर्फ 1,000-1,000 रुपये की टोकन राशि वोटरों की उम्मीदों के साथ मजाक है। साल-दर-साल सिर्फ 1,000-1,000 रुपये की चुनावी राशि सरकार की मंशा पर सवाल है।’
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चुनावी परियोजनाओं को सरकार चुनावों में किस तरह इस्तेमाल करती है, इसका ताजा उदाहरण खलीलाबाद-बहराइच रेल लाइन है। 4,940 करोड़ में प्रस्तावित 240 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के जमीन अधिग्रहण के लिए रेलवे ने फरवरी के पहले सप्ताह में अधिसूचना जारी की है। अब संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती से लेकर बहराइच जिलों की विधानसभा सीटों पर परियोजना के नाम पर भाजपाई उम्मीदवार वोट मांग रहे हैं। सिद्धार्थनगर में प्राइवेट फार्मेसी कॉलेज में शिक्षक अर्पिता श्रीवास्तव कहती हैं कि ‘रेल लाइन और फोरलेन को लेकर बातें नेताओं के भाषण में सुनने को मिलती हैं या फिर बजट बाद अखबारों में उम्मीद जगाने की खबरें दिखती हैं। लेकिन हकीकत की धरातल पर पूर्वांचल की योजनाएं कब दौड़ेंगी, इसका जवाब नेता नहीं देते हैं।’
एनई रेलवे मेन्स कांग्रेस के सरंक्षक सुभाष दूबे कहते हैं कि ‘रेलवे के जिम्मेदारों को रेल लाइन को लेकर संजीदगी होती तो पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा 434 लोको पायलट के पोस्ट सरेंडर नहीं होते। सहजनवा-बड़हलगंज रेल लाइन परियोजना दो दशक से चुनावों के दौरान चर्चा में आता है। इसकी हकीकत नागरिकों को समझनी चाहिए।’
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योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार गोरखपुर आए थे, तभी उन्होंने मेट्रो को लेकर घोषणा की थी। पांच साल में प्रगति के नाम पर डीपीआर की मंजूरी हुई। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी लाइट मेट्रो चलाने की योजना है। गोरखपुर मेट्रो को यूपी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है लेकिन वाराणसी मेट्रो को लेकर खास प्रगति नहीं दिख रही है। दोनों शहरों में मेट्रो के लिए यूपी बजट में 100 करोड़ का प्रावधान तो हुआ है लेकिन चुनाव में इसे लेकर योगी भी कुछ नहीं बोल रहे हैं। गोरखपुर मेट्रो पर 4,600 करोड़ से अधिक खर्च होने हैं। वहीं प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि 2024 से पहले काशी में मेट्रो का संचालन शुरू हो जाएगा। लेकिन जमीन पर काम होता नहीं दिख रहा है।
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