कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि देश में ‘अनियंत्रित वायु प्रदूषण’ से पैदा हुआ सार्वजनिक स्वास्थ्य का संकट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की विफलताओं का परिणाम है क्योंकि इसने भारत के लोगों के स्वास्थ्य से बढ़कर प्रधानमंत्री के मित्रों के मुनाफ़े को प्राथमिकता दी है।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि भारत के 10 शहरों में हर साल वायु प्रदूषण से लगभग 34,000 मौतें हो रही हैं।
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रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘अनियंत्रित वायु प्रदूषण के कारण हर साल हज़ारों भारतीयों की जान जा रही है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल "द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ" में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक भारत में होने वाली सभी मौतों में से 7.2 प्रतिशत वायु प्रदूषण से सम्बंधित हैं। केवल 10 शहरों में हर साल लगभग 34,000 मौतें हो रही हैं।’’
उन्होंने कहा कि दिल्ली सबसे अधिक प्रभावित है, जहां हर साल 12,000 मौतें होती हैं तथा पुणे, चेन्नई और हैदराबाद जैसे कम प्रदूषण वाले शहरों में भी हज़ारों मौतें होती हैं।
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कांग्रेस नेता के अनुसार, अध्ययन में पाया गया कि पीएम 2.5 प्रदूषण का निम्न स्तर भी कई मौतों का कारण बन सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का यह संकट ‘‘नॉन-बायलॉजिकल प्रधानमंत्री’’ की सरकार की विफलताओं का प्रत्यक्ष परिणाम है, जिसने भारत के लोगों के स्वास्थ्य से बढ़कर प्रधानमंत्री के मित्रों के मुनाफ़े को प्राथमिकता दी है।
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रमेश ने दावा किया कि 2017 के बाद से मोदी सरकार ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए प्रदूषण-नियंत्रण एफजीडी उपकरण स्थापित करने की समय सीमा को लगातार बढाया है जिसके कारण हज़ारों मौतें हुई हैं तथा यह सब संयंत्र के मालिकों के लाभ के लिए हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘एलपीजी सिलेंडर की कीमतें आसमान छू रही हैं। इस वजह से आम परिवार रसोई गैस के बजाय चूल्हे पर खाना बनाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। नतीजा घर के अंदर वायु प्रदूषण की स्थिति बदतर हो गई है।’’
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उनका कहना है कि वायु प्रदूषण (नियंत्रण और रोकथाम) अधिनियम, 1981 में अस्तित्व में आया और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) नवंबर, 2009 में लागू किया गया। लेकिन, पिछले दशक में वायु प्रदूषण के सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम रोगों की संख्या और मृत्यु दर, दोनों ही मामले में बिलकुल स्पष्ट है।
रमेश ने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि अधिनियम और एनएएक्यूएस दोनों पर दोबारा गौर किया जाए और इसमें पूर्ण रूप से सुधार किया जाए।
पीटीआई के इनपुट के साथ
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