केंद्र में मोदी सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक की कुर्सी खाली हो रही है। मौजूदा सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा अगले साल की शुरुआत में रिटायर हो जाएंगे। लेकिन रोचक बात यह है कि उनकी कुर्सी पाने के लिए पीएम मोदी की सरकार में सत्ता केंद्र के दो करीबी अधिकारियों में होड़ मच गई है।
इनमें से पहला नाम है योगेश चंद्र मोदी का जो असम और मेघालय कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं और मौजूदा समय में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के महानिदेशक हैं। दूसरे अधिकारी राकेश अस्थाना हैं, जो इन दिनों सीबीआई में ही नंबर दो की कुर्सी पर हैं। वे भी खुद को स्वाभाविक दावेदार के तौर पर देख रहे हैं। इस पद की दौड़ में जो दूसरे प्रमुख नाम शामिल हैं, उनमें सीआईएसएफ महानिदेशक राजेश रंजन, भारत स्काउट एंड गाईड के प्रमुख रजनीकांत मिश्रा, दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और यूपी के डीजीपी ओपी सिंह शामिल हैं।
लेकिन दिल्ली में नौकरशाही के हलकों में योगेश मोदी को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी का विश्वासपात्र माना जाता है। दिलचस्प बात ये भी है कि मोदी और दूसरे दावेदार राकेश अस्थाना दोनों ही 1984 बैच के अधिकारी हैं। वहीं, दूसरी ओर अस्थाना और मौजूदा सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा की तनातनी पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियां बटोर चुका है। कुछ महीने पहले आलोक वर्मा ने अपने जूनियर अधिकारी अस्थाना के खिलाफ लगे कुछ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश देकर इस आग को और हवा दे दी था। माना जा रहा है कि अस्थाना को घेरने की यह कार्रवाई उन्हें सीबीआई प्रमुख बनने से रोकने की कवायद का हिस्सा थी। बता दें कि 2016 में बीएस बस्सी के बाद दिल्ली के पुलिस कमीश्नर का पद संभालने वाले आलोक वर्मा को पिछले साल रिटायर होने से कुछ ही महीने पहले सीबीआई प्रमुख बनाया गया था।
राकेश अस्थाना गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके काफी करीबी रहे। कई विवादों में नाम होने के बावजूद उन्हें दिल्ली में सीबीआई का विशेष निदेशक नियुक्त कर और ताकतवर बना दिया गया। अभी भी पीएमओ के लिए कई अहम मामलों में अस्थाना ही प्रमुख सूत्रधार माने जाते हैं।
दूसरी ओर योगेश चंद्र मोदी को एनआईए की कमान सौंपने के पीछे विपक्षी दलों ने ये भी आरोप लगाए थे कि ऐसे अधिकारियों को उच्च संवेदनशील पदों पर बिठाकर भगवा आंतकवाद के मामलों को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। बता दें कि योगेश मोदी को केंद्र में बीजेपी की सरकार बनते ही दिल्ली लाया गया था। एनआइए मुखिया बनने से पहले वह सीबीआई में अपने कार्यकाल का दो साल बिता चुके हैं। उन्हें 2015 में सीबीआई का अतिरिक्त निदेशक बनाया गया था।
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बता दें कि योगेश मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी की टीम में रखा था। इस टीम ने ही गुजरात दंगों के क्रम में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी थी। उन दंगों में एक पूर्व सांसद समेत सैकड़ों लोगों को मारा गया था और हजारों लोग घायल और बेघर हुए थे। गौरतलब है कि सीबीआई प्रमुख के चयन की प्रक्रिया केंद्रीय कार्मिक विभाग द्वारा शुरू की जाती है, जो सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है।
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