पिछले हफ्ते एकबारगी लगा था कि अमेरिकी सेनाएं ईरान पर हमला बोलने ही वाली हैं। ईरान ने जब एक अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया, तो डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ईरान ने बड़ी गलती कर दी है। अमेरिका की इस धमकी के बाद रूसी प्रतिक्रिया आई किअमेरिका ने लड़ाई छेड़ी, तो भारी तबाही होगी। शायद इसी वजह से अमेरिका ने आखिरी वक्त पर हाथ खींच लिए, लेकिन मामला अभी टला नहीं तनाव बना हुआ है।
इस हमले के बाद अमेरिका ने कुछ नए प्रतिबंध जरूर लगाए हैं, जिनके दायरे में ईरान के प्रमुख नेता अली खमेनेई को भी रखा गया है। ट्रंप ने बाद में कहा, “हम ईरानी ठिकानों पर हमला करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन हमले के दस मिनट पहले हमने अपना फैसला बदल दिया।” पिछले दो महीने से इस इलाके में लगातार तनाव बढ़ रहा है। अमेरिका ने अपने एक विमान वाहक पोत के साथ नौसैनिक बेड़ा यहां तैनात कर रखा है। हाल में उसने ईरान पर एक साइबर हमला भी किया, जिसके बारे में ईरान का कहना है कि उससे हमें कोई नुकसान नहीं हुआ।
Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST
फिलहाल हमला टल जरूर गया, लेकिन फारस की खाड़ी के इलाके में तनाव बना हुआ है। सच यह है कि आज अमेरिका उतनी बड़ी ताकत नहीं है। दूसरे रूस और चीन भले ही बहुत ताकतवर नहीं हैं, पर उतने महत्वहीन भी नहीं हैं। यह तनाव भारत के लिए भी चिंता का कारण है। अमेरिका और ईरान दोनों के साथ हमारे अच्छे रिश्ते हैं। इस झगड़े में सऊदी अरब भी महत्वपूर्ण पार्टी है। हमारे रिश्ते उसके साथ भी अच्छे हैं। हमारे इतने करीब युद्ध की स्थितियों का बनना कतई अच्छा नहीं है।
इन्हीं बातों के मद्देनजर भारत आए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो को भारतीय विदेश मंत्री ने सुझाव दिया कि तनाव को जल्द से जल्द खत्म किया जाए। यह तनाव तब निश्चित रूप से बहुत ज्यादा बढ़ जाता, अगर ईरान ने उस अमेरिकी विमान को मार गिराया होता, जिस पर 35 लोग सवार थे।
Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST
पश्चिम एशिया के सभी महत्वपूर्ण देशों में अमेरिका की दिलचस्पी है। वह सऊदी अरब और ईरान दोनों को अपने दबाव में रखना चाहता है। सऊदी अरब में वह कामयाब है। कुछ साल पहले सीआईए के कुछ दस्तावेजों से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ मिलकर 1953 में ईरान में तख्ला पलट किया था, जिसमें लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसद्देक को सत्ता से हटाया गया था।
अमेरिका की इस भूमिका का जिक्र तत्कालीन विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट ने 2000 में और बराक ओबामा ने 2009 में काहिरा में एक भाषण के दौरान किया था। साल 1979 में जनांदोलनों के कारण अमेरिका परस्त शाह मोहम्मद रजा पहलवी को देश छोड़कर भागना पड़ा और निर्वासन से आयतुल्ला खुमैनी की वापसी हुई। उसके बाद से यह रंजिश और ज्यादा बढ़ गई है।
Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST
अमेरिका की कोशिश है कि ईरान को किसी तरह से अपने काबू में किया जाए। साल 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ईरान को इराक और उत्तरी कोरिया के साथ शैतानी गिरोह का सदस्य बताया था। इसके बाद 2002 में कहा गया कि ईरान परमाणु बम बना रहा है। अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र ने तब से न जाने कितने किस्म के प्रतिबंध ईरान पर लगा रखे हैं। पर ईरानी प्रतिरोध जारी है।
साल 2013 में ईरान में नरमपंथी हसन रूहानी के राष्ट्रपति बनने के बाद ईरान के रिश्ते अमेरिका से कुछ सुधरते से लगे। साल 2015 में पी 5+1 यानी अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी की पहल पर ईरान के साथ एक नाभिकीय समझौता हुआ। पिछले साल डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर यह समझौता तोड़ दिया गया। उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो दोनों ईरान विरोधी हैं। ट्रंप को यह भी लगता है कि ईरान से लगातार पंगा लेने पर राष्ट्रपति पद के आगामी चुनाव में उन्हें फायदा मिलेगा।
Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST
विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप प्रशासन किसी तरह से ईरान को काबू में करना चाहता है। पश्चिम एशिया में हाल के वर्षों में ईरान का प्रभाव बढ़ा है, खासतौर से सीरिया में। यमन में हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है, जो सऊदी अरब को पसंद नहीं है और इसी वजह से अमेरिका को भी नापसंद है।
साल 1979 की ईरानी क्रांति के बाद करीब 400 दिन तक अमेरिकी दूतावास के लोगों को बंधक बनाकर रखा गया था। इससे अमेरिका में ईरान विरोधी भावनाएं बढ़ गईं। उधर इजरायल भी ईरान के खिलाफ है। इजरायल और सऊदी अरब के बीच तो तादात्म्य बैठ गया है, लेकिन ईरान के साथ नहीं बैठ रहा है। साफ बात यह है कि ईरान में सत्ता परिवर्तन और वहां अमेरिका परस्त शासन की स्थापना ही अमेरिकी एजेंडा है। इसका एक ही तरीका है निरंतर संकट पैदा करना ताकि ईरान की जनता अपने नेतृत्व के खिलाफ खड़ी होने लगे।
(नवजीवन के लिए सत्यप्रिय शास्त्री का लेख)
Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST
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Published: 27 Jun 2019, 8:59 PM IST