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पूर्वांचल के रण को भेदने के लिए मोदी, अखिलेश, राहुल-प्रियंका उतरे काशी की सड़कों पर, किसके हाथ लगेगी बाजी

कहते है कि लखनऊ की सत्ता का रास्ता काशी और पूर्वांचल से होकर जाता है। ऐसे में मोदी के अलावा अखिलेश यादव एवं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी ने काशी से होकर गुजरने वाले जीत के रास्ते पर चलने से कोई गुरेज नहीं किया।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए अंतिम चरण में होने वाले चुनाव को लेकर सुबह-ए-बनारस के मौसम में सियासी धुंध छाई हुई है। जिंदादिली एवं बेल्लौसपन मिजाज के साथ जीने वाले इस शहर की दिनचर्या चाय-पान की दुकान से ही शुरू होती है। वहीं पर देश-दुनिया में चल रही सियासत पर गर्मागर्म बहस भी छिड़ी हुई है। रोजाना की तरह कमच्छा स्थित गोविंद सरदार की दुकान पर सुबह आठ बजे बनारसी कचैडी-सब्जी खाने के लिए आसपास के लोग एवं तमाम खबरिया चैनलों के रिपोर्टर मौजूद थे।

जलेबी के इंतजार में खडे कुछ लुंगीधारी युवकों को देख एक रिपोर्टर ने उत्सुकताबस पूछ लिया, 'मोदी के रोड शो के बाद से का माहौल है...', युवक ने तपाक से जवाब दिया, 'अभ्भी तक तो ईहां एक्कै माहौल रहते रहे, मगर अबकी दिखत हौ कि बीजेपी के लोग परेशान हयन...' यानी अभी तक बनारस में बीजेपी का माहौल रहा है लेकिन इस बार बीजेपी के लोग परेशान हैं। रिपोर्टर ने मोदी के रोड शो में हुई भीड़ का हवाला दिया तभी कचौड़ी छान रहे गोविंद सरदार बोले, 'इहा सब कुछ मोदिए पर हौ, नाही त प्रत्याशी लोगन के अबकी कोई पूछत भी नाही...' (सभी को मोदी पर विश्वास है वरना इस बार प्रत्याशियों को कोई पूछता भी नहीं)

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शायद बनारस की राजनीति का एक कड़वा सच यह भी है। अंतिम चरण के चुनावी चक्रव्यूह का अंतिम द्वार भेदने के लिए सभी दलों की उम्मीद अब काशी पर टिकी है। दलों को लगता है कि बनारस समेत पूर्वांचल की 54 सीटें यदि झोली में आ गई तो लखनऊ की सत्ता के द्वार खुलने तय है। यही कारण है कि अंतिम चरण के मतदान के 48 घंटे पहले सभी दलों के सियासी दिग्गजों ने काशी में डेरा डाल दिया और रोड शो, रैली व सभा के जरिए समर्थकों, कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाकर यह संदेश देने की कोशिश कि सत्ता में आने के बाद वह वाराणसी समेत पूर्वांचल की तकदीर बदलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।

सातवें चरण के चुनाव को बीजेपी किस तरह गंभीरता से ले रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रणनीति को अपने हाथ में ले लिया और अंतिम चरण की 54 सीटों पर होने वाले सियासी संग्राम मिशन 54 के लिए उन्होंने 54 घंटे तक बनारस में ही गुजारेे।

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कहते है कि लखनऊ की सत्ता का रास्ता काशी व पूर्वांचल से होकर गुजरता है। ऐसे में विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव एवं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी वाड्रा ने काशी से होकर गुजरने वाले जीत के रास्ते पर चलने से कोई गुरेज नहीं किया। अखिलेश यादव ने मोदी के गढ़ में अपने सभी सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बड़ी जनसभा कर डाली। इस रैली में ममता बनर्जी, रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव के अलावा सहयोगी दलों के नेता जयंत चैधरी, ओमप्रकाश राजभर, कष्णा पटेल की मौजूदगी ने यह संदेश दे दिया कि बनारस समेत पूर्वांचल में बीजेपी की राह आसान नहीं होगी।

पूर्वांचल की सियासी राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले विजय नारायण कहते हैं कि वर्ष 2014, 2017 और 2019 में बीजेपी की जीत का सेहरा पीएम मोदी के सिर ही बंधा था। मिशन 2022 को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री अब तक छह चरणों में हर इलाके में चुनावी रैलियां कर चुके हैं। इस बार सपा, बसपा एवं कांग्रेस के चुनावी चक्रव्यूह को पार करने की कवायद में सीएम योगी उनके साथ हैं। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि काशी माॅडल कितना कारगर रहा। क्योंकि काशी माॅडल को बीजेपी चुनाव के पहले ही शानदार तरीके से पूरे प्रदेश में पेश करती रही है। इसे अयोध्या के बाद काशी , मथुरा के एजेंडे में पार्टी के आगे बढ़ने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना गया।

अब जातीय क्षत्रपो को उन्हीं के गढ में घेरने के लिए बीजेपी के दिग्गज नेता गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्री स्मति ईरानी, गिरिराज सिंह, उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, भाजपा अध्यक्ष जेपी नडडा, केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान समेत तमाम नेता बनारस में रहकर पूर्वांचल को मथ रहे हैं।

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दरअसल 10 दिन पहले तक बीजेपी प्रत्याशियों की कार्यशैली एवं व्यवहार को लेकर कार्यकर्ताओं एवं जनता में अंदर ही अंदर गहरी नाराजगी थी। करीब 30 सालों से बीजेपी से जुडे किशोर शर्मा कहते हैं कि बड़े नेताओं के सामने भले ही पदाधिकारी या कार्यकर्ता मुखर न हों, लेकिन यहां प्रचार करने पहुंचे नेताओं को यह आभास हो गया कि काशी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। यही कारण रहा कि पिछले एक सप्ताह से बड़े नेताओं को शहर दक्षिणी एवं कैंट विधानसभा क्षेत्र में छोटे-छोटे समूह में संवाद करना पडा। लाख प्रयास के बावजूद कार्यकर्ताओं, समर्थकों के रोष, आक्रोश एवं नाराजगी दूर नहीं हो पाने की स्थिति में पीएम को खुद कमान सभालनी पड़ी।

दशाश्वमेध के राजनाथ तिवारी कहते हैं कि वर्ष 2019 में पीएम मोदी जब लोकसभा चुनाव का नामांकन करने पहुंचे थे तब उन्होंने कहा था कि उनका चुनाव काशी की जनता लड़ेगी। काशी के लोगों ने मोदी को पांच लाख से अधिक मतों से जिताकर उनके विश्वास एवं भरोसे को कायम भी रखा। मगर इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों को लेकर जो नाराजगी थी उसे दूर करने के लिए ही पीएम को रोड शो के जरिए सड़क पर उतरना पड़ा। हर बार की तरह पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया और डमरू बजाकर यह संदेश देने की कोशिश की बीजेपी अपने धार्मिक एजेंडे को पूरा करने के लिए कभी पीछे नहीं हटेगी।

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रामपूरी कालोनी निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता डा पीयूष मिश्र इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं। उनका मानना है कि आठ सालों में प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान बनारस के कार्यकर्ताओं से कई बार सामूहिक रूप से संवाद किए होंगे, सड़क पर उतरकर कार्यकर्ताओं के बीच बैठना एक अच्छा सियासी दांव है। काशी विद्वापीठ के शोध छात्र अमिलेश यादव 2017 व 2019 के रोड शो की याद दिलाते हुए कहते हैं कि यह चुनावी अभियान का सबसे सकारात्मक पक्ष है। बीएचयू राजनीतिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो कौशल किशोर मिश्र कहते हैं अस्सी पर पप्पू की अड़ी पर पीएम मोदी का रोड शो को रोककर चाय पीना और लोगों से आमजन की तरह बात करना यह दर्शाता है कि उन्हें लोगों का मन टटोलना है।

सियासी रण के बीच बाबा विश्वनाथ के दरबार में दिग्गज नेताओं ने दर्शन कर जीत का आर्शीवाद मांगा। प्रधानमंऋी नरेन्द्र मोदी के बाद राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी भी पहुंचे। दोनों नेता गोदौलिया चैराहा से मंदिर तक करीब एक किमी पैदल चलकर बाबा दरबार पूजन किया। रात में रोड शो खत्म करने के बाद अखिलेश यादव भी विश्वनाथ धाम पहुंचे और उन्होंने यूपी में सत्ता वापसी के लिए बाबा विश्वनाथ से आर्शीवाद की कामना की।

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बहरहाल, अंतिम चरण का चुनाव वाराणसी के अलावा चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, भदोही, सोनभद्र, मऊ जिले में होना है। इसी चरण में बाहुबलियों के अलावा आधा दर्जन पूर्व एवं वर्तमान मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। बाहुबली मुख्तार अंसारी का बेटा अब्दुला अंसारी, बाहुबली विजय मिश्र, सुशील सिंह, कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय का राजनीतिक भविष्य तय होगा। इसके अलावा सूबे के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, मंत्री नीलकंठ तिवारी, मंत्री रवीन्द्र जायसवाल, मंत्री संगीता बलवंत, पूर्व मंत्री सुरेन्द्र सिंह पटेल, पूर्व मंऋी ओमप्रकाश सिंह , पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर समेत तमाम दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई हैं। वाराणसी में आठ विधानसभा क्षेत्र है।

पिछली बार बीजेपी एवं उनके सहयोगी दलों ने सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अलग हो गई है। इस चुनाव में अपना दल (एस) एवं निषाद पार्टी की चुनावी दोस्ती का भी इम्तिहान इसी चरण में होना है। वहीं समाजवादी पार्टी के गठबंधन सुभासपा एवं महानदल की परीक्षा भी अंतिम चरण के चुनाव में होने जा रही है।

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