भारतीय जनता पार्टी ने अपने अंदाज में काशी में अन्नपूर्णा मूर्ति स्थापना उत्सव के बहाने फिर दूर का निशाना साधा है। वह यह जानती है कि किसी घटना को करिश्माई उत्सव का रूप कैसे दिया जा सकता है।
1913 में चोरी गई माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा कनाडा से वापस लाकर वाराणसी में प्रतिस्थापित की गई है। पौराणिक कथाओं का आधार लें तो यह मान्यता है कि काशी में माता अन्नपूर्णा के वास करने के कारण यहां कोई भूखा नहीं सोता। ब्रह्मवैवर्त पुराण में चर्चा है कि भगवान शिव ने खुद लोगों का पेट भरने के लिए मां अन्नपूर्णा से अन्न की भिक्षा मांगी थी। अन्नपूर्णा ने शिव को भिक्षा देते हुए यह आश्वासन भी दिया था कि काशी में कोई भूखा नहीं सोएगा। इसलिए इस प्रतिमा को लेकर बनारस के लोगों में उत्साह समझा जा सकता है।
लेकिन इसे लेकर पार्टी और सरकार जिस किस्म का जयघोष कर रही है, वह अतिरंजित ही है। यूनेस्को ने 2011 में ही आकलन कर बताया था कि 1989 तक 50,000 से अधिक प्राचीन कलाकृतियां भारत से चुराई जा चुकी हैं। बाद के वर्षों में भी कई कलाकृतियों की चोरी की घटनाएं सामने आई हैं। अब तक कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है कि कुल कितनी कलाकृतियां चोरी हो चुकी हैं या कहां हैं। कला क्षेत्र में अपराध विज्ञान पर विशेषज्ञ डंकन चैपल ने दि ऑस्ट्रेलियन में एक लेख में कहा था कि दुनिया भर में जैसे-जैसे आतंकी या अन्य किस्म के संघर्ष बढ़ते जाएंगे, मूतियां और प्राचीन कलाकृतियों के गायब होने की घटनाएं बढ़ती जाएंगी।
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2015 में इंटरपोल ने भी एक बैठक कर इस बात पर वृहद चर्चा की थी कि आतंकी संगठन आईएसआईएस किस तरह वैश्विक विरासत स्थलों और प्रतीकों को निशाना बना रहा है। इंटरपोल के महासचिव जरगेन स्टॉक ने इस बैठक में कहा था कि ’कला क्षेत्र का काला बाजार ड्रग्स, हथियारों और प्रतिबंधित सामग्रियों की तरह ही लाभदायक बनता जा रहा है क्योंकि प्राचीन कलाकृतियां आतंकी संगठनों के लिए बड़े धन के लिए संभावनाशील स्रोत होती जा रही हैं।’ यूनेस्को तो पहले से ही मानता रहा है कि सांस्कृतिक धरोहरों की तस्करी ड्रग और हथियार तस्करी के बाद सबसे बड़ा अवैध व्यापार है।
इसलिए अन्नपूर्णा की प्राचीन प्रतिमा की वापसी बड़ा कदम तो है, पर यह भी समझने की जरूरत है कि हमें इस तरह की कलाकृतियों को वापस लाने का प्रयास अभी किस तरह निरंतर करना होगा। यह मूर्ति कनाडा के मैकेंजी आर्ट गैलरी, यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना में रखी गई थी। यह आर्ट गैलरी 1936 में वकीन नार्मन मैकेंजी की वसीयत के अनुरूप बनाई गई है। विनिपेग में रहने वाली भारतीय मूल की कलाकार दिव्या मेहरा को यहां 2019 में प्रदर्शनी के लिए बुलाया गया था जहां उन्हांने इस मूर्ति पर अध्ययन के बाद भारतीय दूतावास को सूचना दी, तो पता चला कि वर्ष 1913 में वाराणसी में गंगा किनारे इस मूर्ति की चोरी हुई थी। उनके प्रयासों के बाद दूतावास की पहल पर यह प्रतिमा कनाडा सरकार ने भारत सरकार को सौंपी।
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दिल्ली में यह प्रतिमा आने के बाद इसे सड़क मार्ग से चार दिनों में वाराणसी ले जाया गया। वहां भी लगभग पूरे शहर में भ्रमण के बाद इस प्रतिमा की मंदिर में 15 नवंबर को विधिवत वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्राण-प्रतिष्ठा की गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में तरह-तरह के आयोजन कर प्रतिमा यात्रा के स्वागत की तैयारी की गई और तोरण तथा वंदनवारों से सजे रास्ते पर कई स्थानों पर द्वार बनाए गए। विश्वनाथ धाम में मुख्य गर्भगृह से ईशान कोण में प्रतिमा को प्रतिष्ठित करने से पहले उन्हें बाबा विश्वनाथ की रजत पालकी पर विराजमान कराया गया। इसके पूर्व दुर्गा कुंड स्थित कुष्मांडा मंदिर से शोभायात्रा निकली। बीजेपी नेताओं ने इस पूरे कार्यक्रम को इस तरह तैयार किया ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में भी इसका पूरा लाभ पार्टी को मिल सके।
काशी के मूर्धन्य विद्वान प्रो. नागेंद्र पांडेय के अनुसार, मूर्ति पूरी तरह से सुरक्षित है और उसके खंडित होने की शंका का कोई सवाल नहीं है। और यदि कोई प्रतिमा खंडित नहीं है तो कभी भी कहीं भी उसे प्रतिस्थापित और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा की जा सकती है। सुरक्षित और संरक्षित प्रतिमा की प्रतिस्थापना और उसकी प्राण-प्रतिष्ठा का शास्त्रों में विधान है।
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