विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने वर्ष 2016 में दुनिया के सबसे प्रदूषित 20 शहरों की सूची जारी की है, जिसमें भारत के 14 शहर शामिल हैं। गौर करने वाली बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में सिर्फ 32 भारतीय शहरों के आंकड़ों को शामिल किया गया था।
सबसे बड़ी बात यह है कि कुछ महीनों पहले पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम के भीतर 100 अयोग्य शहरों को चिन्हित किया था जहां के प्रदूषण स्तर में सुधार लाने के लिए कई तरह के उपाय किए जाने हैं। लेकिन इस कार्यक्रम में डब्लूएचओ रिपोर्ट में शामिल सबसे प्रदूषित 14 भारतीय शहरों में से तीन शहरों के नाम नहीं हैं। इसका मतलब यह हुआ कि भारत में मौजूद दुनिया के तीन सबसे प्रदूषित शहरों में सुधार लाने के लिए सरकार की तरफ से कोई बड़ी पहल नहीं की जा रही है।
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ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया ने कहा, "डब्लूएचओ की रिपोर्ट अपने आप में पूरी नहीं है क्योंकि उसमें कई साल के पुराने आंकड़ों को मिला दिया गया है जबकि वास्तव में भारत में स्थिति और भी खराब है। इसलिए यह जरूरी है कि राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में प्रदूषण को कम करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य और निश्चित समय सीमा को शामिल किया जाए।"
उन्होंने कहा, "अगर हम कुछ साल पहले के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 2013 में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में चीन के कई शहरों का नाम थे, लेकिन पिछले सालों में चीन के शहरों ने कार्ययोजना बनाकर, समयसीमा निर्धारित करके और अलग-अलग प्रदूषण कारकों से निपटने के लिये स्पष्ट योजना बनाकर वायु गुणवत्ता में काफी सुधार कर लिया है।"
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व के 859 शहरों की वायु गुणवत्ता के आंकड़ों का विश्लेषण किया था। इस साल के शुरू में ग्रीनपीस इंडिया ने अपनी रिपोर्ट एयरपोकैल्पिस-2 जारी की थी, जिसमें भारत के 280 शहरों के आंकड़ों को शामिल किया गया था। इस रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि अध्ययन किए गए कुल शहरों में से 80 प्रतिशत में हवा सांस लेने योग्य नहीं है।रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि विश्व में 70 लाख लोगों की मौत बाहरी और भीतर वायु प्रदूषण की वजह से होती है। वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों में 90 प्रतिशत निम्न और मध्य आयवर्ग के देश हैं जिनमें एशिया और अफ्रीकी देश शामिल हैं।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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