आखिर देश के 22वें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थावन (एम्स ) का रेवाड़ी में शिलान्या स हो गया। वह भी लोकसभा चुनाव ऐेलान के चंद दिन पहले। मोदी सरकार के वादों और इरादों की एक झलक के लिए इस एम्सद के शिलान्यासस तक का सफर लाजवाब है। 2015 में रेवाड़ी एम्सल का ऐलान हुआ था। 2019 में लोकसभा चुनाव के ऐेलान से ठीक पहले इस एम्सए के लिए बजट का प्रावधान किया गया। इसके बाद इसके शिलान्याठस का सफर अब जाकर 16 फरवरी को तय हो पाया। शायद यही मोदी जी की गारंटी है। ऐलान से शिलान्या स तक का सफर तय करने में जब 8 साल से अधिक लग गए तो आगे के सफर का अंदाजा आप खुद-ब-खुद लगा सकते हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को दोपहर 1 बजे रेवाड़ी पहुंचे। अपने चिर-परिचित अंदाज में उन्होंने बोलना शुरू किया, लेकिन भाषण खत्म होने से पहले ही मैदान छोड़कर भागते लोग भी कुछ कहानी कह रहे थे। लोकसभा चुनाव के ऐलान से चंद दिनों पहले हुए एम्स के शिलान्यास के साथ ही 9750 करोड़ रुपए की 5 परियोजनाओं का भी शिलान्यास और उद्घाटन उन्होंने किया। दक्षिण हरियाणा की 14 विधानसभा सीटों रेवाड़ी, बावल, कोसली, महेंद्रगढ़, नारनौल, नांगल चौधरी, गुरुग्राम, सोहना, बादशाहपुर, पटौदी, नूंह, फिरोजपुर-झिरका और पुन्हाना को साधने की कवायद में आनन-फानन आयोजित की गई इस रैली के लिए रेवाड़ी-जैसलमेर हाईवे से सटे गांव माजरा में 89 एकड़ जमीन पर विशाल पंडाल बनाया गया था।
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रेवाड़ी वही भूमि है, जहां से 2014 लोकसभा चुनाव को प्रचार का आगाज करते हुए मोदी ने वन रैंक वन पेंशन का ऐलान किया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। सवाल यह कि हमेशा चुनाव के पहले ही मोदी जी को रेवाड़ी की याद क्यों आती है। एम्स के साथ भी यही हुआ है। कस्बा बावल में जुलाई 2015 में आयोजित रैली के दौरान हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मनेठी गांव में एम्स बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए मनेठी की पंचायत की तरफ से 210 एकड़ से ज्यादा जमीन दी गई थी। कई साल यह घोषणा फाइलों में ही अटकी रही। करीब 1 साल तक मनेठी के ग्रामीणों ने एम्स के लिए संघर्ष किया। उस वक्त हालत यह हो गई थी कि यह मुद्दा हरियाणा सरकार के गले की फांस बन गया था।
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लिहाजा, दक्षिण हरियाणा को साधने की कवायद में 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में मनेठी में एम्स बनाने की घोषणा कर दी। लेकिन इसी बीच वन सलाहकार समिति की तरफ से मनेठी की जमीन को वन क्षेत्र बताते हुए उस पर आपत्ति लगा दी गई। पर्यावरण विभाग की आपत्ति के चलते इस जमीन को निरस्त कर दिया गया। इसके बाद साथ लगते माजरा गांव के ग्रामीणों ने एम्स के लिए जमीन की पेशकश कर दी। 210 एकड़ जमीन भी मिल गई। फिर भी मामला अटका रहा।
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हरियाणा विधानसभा में भी यह मुद्दा तकरीबन हर सत्र में गूंजता रहा। 8 साल के अंतराल में इस बड़े प्रोजेक्ट की राह में सिर्फ रोड़े ही बिछते नजर आए हैं। पहले जमीन को लेकर पेच फंसा, फिर टेंडर प्रक्रिया पूरी होने में समय लगा। 3 माह पहले हुआ टेंडर कंपनी के तय मानक पूरे नहीं करने के कारण रद्द हो गया। मनेठी स्थित पुरानी उप तहसील में एम्स संघर्ष समिति भी लंबे समय से शिलान्यास करके निमार्ण कार्य शुरू करवाने की मांग को लेकर धरने पर बैठी थी। लोगों का सवाल था कि जब माजरा एम्स निर्माण की सभी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं तो फिर सरकार शिलान्यास में क्यों देरी कर रही है। लोग मांग कर रहे थे कि सरकार अपने राजनीतिक फायदे को छोड़कर जनता की भलाई के लिए एम्स का शिलान्यास कर निमार्ण कार्य शुरू करवाए, लेकिन मामला अटका हुआ था।
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पिछले कुछ समय से खट्टर सरकार कोशिश कर रही थी कि किसी तरह एम्स का शिलान्यास हो जाए नहीं तो दक्षिण हरियाणा को लोकसभा चुनाव में एक बार फिर जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इस चुनावी शिलान्यास के बाद लोग एक बार फिर सवाल कर रहे हैं कि जब 8 साल में एम्स का सफर यहां तक पहुंच पाया है तो आगे सरकार पर यकीन कैसे करें। लोग कह रहे हैं कि क्या यही मोदी जी की गारंटी है!
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