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लोकसभा चुनाव: बदला-बदला सा मिजाज है इस बार उत्तराखंड का

उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर पहले चरण में मतदान होना है। प्रचार तो खूब हो रहा है, लेकिन इस बार हवा का रुख बीजेपी के खिलाफ दिख रहा है। वजह है कि सत्ता विरोधी लहर इतनी तेज है कि विपक्षी उम्मीदवारों को बिना खास कोशिश किए ही लोगों का समर्थन मिल रहा है।

उत्तराखंड की सभी 5 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होगा
उत्तराखंड की सभी 5 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होगा 

उत्तराखंड की सभी पांच लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होगा। वैसे, उत्तराखंड की स्थिति इस मायने में देश के अन्य हिस्सों से अलग नहीं है कि यह लोकसभा चुनाव मोटे तौर पर बीजेपी बनाम आम जनता के मुकाबले में तब्दील होता दिख रहा है। इसका असर यह है कि बीजेपी से दो-दो हाथ कर रहे विपक्षी उम्मीदवारों को बिना कुछ खास किए ही जन समर्थन मिल रहा है। 

बीजेपी दस सालों से राज्य में सत्ता में है और उसने 2019 के साथ-साथ 2014 में भी सभी पांच लोकसभा सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई नजर आती है। बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर ने जकड़ रखा है। राज्य की आबादी लगभग एक करोड़ है और इस हिन्दू बहुल राज्य में अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी 18 फीसदी से भी कम है जिसमें मुसलमान 14 फीसदी हैं।

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निशाने पर मुसलमान

वैसे, बीजेपी के लिए यह करो या मरो का चुनाव है। पुष्कर सिंह धामी के शासन में उत्तराखंड गुजरात के बाद हिन्दुत्व की दूसरी प्रयोगशाला बनता नजर आया है। धामी ने मुस्लिमों को निशाना बनाने वाले तमाम कदम उठाए हैं जिनमें लव जिहाद बिल लाना शामिल है। कथित सरकारी भूमि पर बने मजारों और मस्जिदों को तोड़ दिया गया, जबकि मंदिरों के खिलाफ ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। समान नागरिक संहिता को भी ऐसा ही एक और कदम माना जाता है लेकिन यह एक लोकप्रिय चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है। 

प्रचार को देखें तो कटआउट, पोस्टर और होर्डिंग के साथ बीजेपी हर जगह दिखाई देती है। कांग्रेस समेत अन्य दलों के प्रचार वाहन शायद ही नजर आते हों और स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक में विपक्ष काफी हद तक गायब है। फिर भी, जमीनी स्तर पर असंतोष साफ दिखता है और इससे बीजेपी में अंदरूनी बेचैनी है।

उत्तराखंड में पांच लोकसभा क्षेत्र हैं- हरिद्वार, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोडा और नैनीताल-उधम सिंह नगर। 

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अग्निवीर योजना पर नाराजगी

उत्तराखंड में शहीदों की 50 हजार विधवाओं समेत 1.9 लाख से ज्यादा पूर्व रक्षाकर्मियों का घर है। किसी भी चुनाव में ‘फौजी वोट’ एक अहम भूमिका निभाता है। इस बार अग्निवीर योजना के खिलाफ गुस्सा साफ देखा जा सकता है और राज्य भर के पूर्व सैनिक इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

पूर्व सैनिकों का एक बड़ा दल 13 अप्रैल को देहरादून में जनरल वीके सिंह (सेवानिवृत्त) से मिलने गया और उनसे अग्निवीर योजना को वापस लेने को कहा क्योंकि इससे राज्य के हर दूसरे परिवार पर प्रभाव पड़ा है। केंद्र ने सिंह को उनके साथ बातचीत करने और उनके गुस्से को शांत करने के लिए भेजा था। लेकिन लोगों की आवाज अनसुनी कर दी गई।

पूर्व सैनिकों के निशाने पर सबसे आगे राज्य के गृहमंत्री गणेश जोशी हैं जो सैनिक कल्याण मंत्री भी हैं। जोशी की सार्वजनिक बैठकों का बहिष्कार किया जा रहा है और कुछ मौकों पर माहौल इतना खराब हो गया कि वह अपनी कार से भी बाहर नहीं निकल सके। 

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गुस्सा झेल रहे हैं बीजेपी उम्मीदवार

लोगों के गुस्से का सामना करने वाले गणेश जोशी अकेले बीजेपी उम्मीदवार नहीं हैं। इस महीने के शुरू में लगातार तीन संसदीय चुनावों में बीजेपी के लिए टिहरी लोकसभा सीट जीतने वाली महारानी राजलक्ष्मी शाह नेपाली मूल के लोगों से बातचीत करने देहरादून के गढ़ी छावनी पहुंची थीं। जोशी उनके साथ थे। लोगों ने दोनों को घेर लिया और उन्हें बैठक को संबोधित करने नहीं दिया। महारानी के खिलाफ यह गुस्सा उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में भी साफ दिखता है क्योंकि लोगों को शिकायत है कि बार-बार कहने के बाद भी उनकी कोई भी समस्या दूर नहीं हुई। 

शाह को चुनौती कांग्रेस के जोत सिंह गुनसोला से नहीं बल्कि उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार से मिल रही है। पंवार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं और युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं क्योंकि वह शिक्षा और नौकरियों के लिए लड़ने का वादा करते हैं।

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सामाजिक रिश्तों पर 'अग्निवीर' का साया

अग्निवीर योजना की छाया सामाजिक रिश्तों पर भी पड़ रही है। नेपाल की सीमा से लगे जिले पिथौरागढ़ के रमन सिंह कहते हैं, ‘हमारे यहां से सेना में शामिल होने वाले युवकों को नेपाल से वैवाहिक रिश्ते आते थे, उन्हें वहां दुल्हन ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन अब कोई भी अपनी बेटी की शादी ‘अग्निवीरों’ से नहीं करना चाहता क्योंकि इसमें नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है और न ही वे पेंशन समेत अन्य लाभ के हकदार हैं।’

अग्निवीर अकेला मुद्दा नहीं है जिसने जनता को सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ कर दिया है। पौड़ी गढ़वाल निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी उम्मीदवार अनिल बलूनी को एक बाहरी व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो मोदी सरकार के मीडिया सलाहकार के रूप में कार्य कर चुके हैं। बलूनी पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के खिलाफ मैदान में हैं। बलूनी ‘मोदी की तीसरी लहर’ को भुनाने की उम्मीद कर रहे हैं। वह मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए चार धाम परयोजना का जिक्र करते हैं जिससे घरेलू पर्यटन को बढ़ावा मिला है। 

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अंकिता कांड की छाया

पौड़ी गढ़वाल एक बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है जो श्रीनगर, जोशीमठ, कोटद्वार और लैंड्सडाउन को कवर करता है। लेकिन पौड़ी गढ़वाल में माहौल बीजेपी के पक्ष में नहीं दिखता। श्रीनगर में माहौल इसलिए भी खिलाफ है क्योंकि राज्य सरकार अंकिता भंडारी हत्या मामले में मुख्य अपराधी को पकड़ने में नाकाम रही है। जोशीमठ के साथ-साथ पूरे चमोली जिले में भूमि धंसाव के मुद्दे पर धामी सरकार द्वारा उचित हस्तक्षेप नहीं करने को लेकर लोगों में नाराजगी है। 

राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ जैसे कई बीजेपी दिग्गजों ने बलूनी के लिए प्रचार किया है। बलूनी ने लोगों से कहा भी है कि वे एक ‘मंत्री’ (मुख्यमंत्री पढ़ें) के लिए मतदान करेंगे, न कि एक सांसद के लिए। यह एक दोधारी तलवार है क्योंकि अन्य बीजेपी नेता बलूनी को अपने राजनीतिक भविष्य के लिए खतरा मान रहे हैं। आरएसएस में भी बलूनी को लेकर कोई उत्साह का माहौल नहीं है। 

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जोशीमठ संघर्ष समिति के प्रमुख अतुल सती कहते हैं, ‘धामी सरकार भूस्खलन के लिए एक व्यापक पुनर्वास पैकेज लाने में विफल रही है। अब तक केवल 112 परिवारों को मदद मिल सकी है। उधर, केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह पर लगी सोने की परत के गायब होने का विवाद कांग्रेस पार्टी द्वारा भी उठाया जा रहा है। 125 करोड़ डॉलर के सोने की धोखाधड़ी के आरोप पिछले साल जून में सामने आए थे। इस विवाद के बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को गायब हुए सोने की जांच के आदेश देने पड़े लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।

केदारनाथ में अनुष्ठान करने वाले तीन हजार पुजारियों ने सोने की परत चढ़ाने का विरोध किया था और चार धाम महापंचायत के उपाध्यक्ष संतोष त्रिवेदी ने खुले तौर पर सवाल उठाया था कि सोने की परत रातों-रात पीतल में कैसे बदल गई। 

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एससी आरक्षित सीट अल्मोड़ा में 2022 के बाद से पांचवीं बार पुराने प्रतिद्वंद्वियों बीजेपी के मौजूदा सांसद अजय टम्टा और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा के बीच मुकाबला है। रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट एक बार फिर नैनीताल-उधम सिंह नगर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं जहां कांग्रेस ने प्रकाश जोशी को मैदान में उतारा है जो उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के सदस्य थे और उन्होंने वन आंदोलन और शराब विरोधी आंदोलन में भाग लिया था। 

इस निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम और सिख किसानों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है। राज्य सरकार ने जिस तरह से हलद्वानी दंगों को गलत तरीके से संभाला, उससे मुसलमान नाखुश हैं जबकि सिख किसान बीजेपी सरकार द्वारा किसानों के विरोध को गलत तरीके से संभालने के खिलाफ मुखर हैं।

एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और शिक्षक डॉ. रवि चोपड़ा ने सिख किसानों और दिवंगत क्रांतिकारी भगत सिंह के भतीजे के बीच बातचीत की एक श्रृंखला का आयोजन किया। उन्होंने बताया कि बाजपुर जिले में औद्योगिक केंद्र स्थापित करने के लिए अधिग्रहीत की जा रही उनकी 8,000 एकड़ जमीन के विरोध में किसान पिछले 275 दिनों से धरने पर बैठे हैं। ऐसा ही एक आंदोलन डोईवाला जिले में शुरू हुआ है जहां राज्य सरकार एयरो सिटी बसाने के लिए जमीन अधिग्रहण करना चाहती है। सरकार का मानना है कि जॉली ग्रांट हवाईअड्डे को ‘अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा’ घोषित करने के बाद एयरो सिटी अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद करेगी।

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कांग्रेस नेता हरीश रावत ने हरिद्वार से चुनाव नहीं लड़कर अपने समर्थकों को निराश किया है, हालांकि उन्होंने अपने बेटे वीरेंद्र रावत जो राजनीतिक लिहाज से नौसिखिया हैं, को हरिद्वार में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी के त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ मैदान में उतारा है। रावत कमजोर मुख्यमंत्री थे और उन्हें 2021 में कुंभ मेले के दौरान तीर्थयात्रियों को क्वारंटीन नहीं करने के अपने घातक निर्णय का बचाव करना मुश्किल हो रहा है जिसमें 90,00 कोविड मामलों वाला राज्य एक सप्ताह के भीतर 2.11 लाख के खतरनाक आंकड़े तक पहुंच गया था। 

हरिद्वार में 30 फीसदी मुस्लिम हैं। इसके बाद दलित और ओबीसी 20-20 फीसदी हैं। शेष 30 फीसदी में ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया समेत तमाम ऊंची जातियां आती हैं। बीएसपी उम्मीदवार जमील अहमद मुस्लिम, दलित और ओबीसी वोटों में सेंध लगा सकते हैं जिससे मुकाबला एकतरफा हो सकता है।

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