कोविड-19 के कारण दुनिया के सामने आए तमाम तरह के संकटों पर उम्मीद हावी है। सवाल एक अदद वैक्सीन का है। लेकिन वैक्सीन तैयार करने की दौड़ एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है। इसमें इतनी जल्दबाजी की जा रही है और जिस तरह से नियम-कायदों में ढील दी जा रही है, उससे नई आशंकाएं जन्म ले रही हैं। अगर वैक्सीन में थोड़ी-सी भी चूक रह गई तो लाखों-करोड़ों लोगों को उसके दुष्परिणामों को झेलना पड़ेगा।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
आमतौर पर टीके लोकप्रिय दवाओं की तरह मोटी कमाई करने वाले तो नहीं होते लेकिन एहतियाती उपाय के जरिये ये लंबे समय से कहीं ज्यादा इंसानी जान बचाते रहे हैं। लेकिन कोविड-19 का मामला कुछ अलग है। लगभग 200 देशों के अरबों लोग इससे प्रभावित हैं और इसके संभावित टीके के लिए अरबों डॉलर का कारोबार पलक-पांवड़े बिछाए हुए है। वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया को तेज करने, विनियामक तंत्र को ढीला करने, पूर्व की कठोर वैज्ञानिक प्रक्रियाओं में ढील देने और जिन वैक्सीन की क्षमता अभी पूर्णतः साबित भी नहीं हुई हो, उसके लिए मारामारी की स्थितियां बन गई हैं।
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा करते हैं कि उनके यहां देश में विकसित वैक्सीन (स्पुतनिक वी) को पंजीकृत किया गया है और उसकी पहली खुराक उनकी अपनी बेटी को दी गई। गौरतलब है कि भारत, चीन और तमाम पश्चिमी देशों समेत कई कॉरपोरेट्स वैक्सीन तैयार करने की सदी की इस दौड़ में शामिल हैं और समय-समय पर इसके विकास के बारे में घोषणाएं की जा रही हैं, तेजी से सफलता पाने का दावा किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि अब, बस, एक कदम दूर हैं।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पास कम-से-कम छह वैक्सीन सूचीबद्ध हैं जो तीसरे चरण में मनुष्यों पर परीक्षण करने का काम कर रहे हैं। इनमें ऑक्सफोर्ड ग्रुप, फाइजर, बायोएनटेक, कैन्सिनो और क्योरवैक, मॉडर्ना आगे हैं। उम्मीद की जा रही है कि 2020 के अंत तक टीका तैयार हो जाएगा हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह टीका 2021 में ही तैयार हो सकेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि बेशक तकनीकी प्रगति हुई है और बहुत सारे आंकड़ों के सटीक विश्लेषण की क्षमता काफी बढ़ी है जिसके कारण विकास की प्रक्रिया तेज हो गई है लेकिन यह ऐसा विषय है जिसमें किसी भी शॉर्ट कट या अटकलबाजी की कोई जगह नहीं है।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के पूर्व प्रोफेसर और थिंक टैंक एसीसीस हेल्थ इंटरनेशनल के अध्यक्ष विलियम हैसेल्टाइन ने हाल ही में वाशिंगटन पोस्ट में लिखे एक लेख में कहा कि, "चिकित्सा और विज्ञान पर यकीन भरोसे पर आधारित है लेकिन आज कोविड-19 का मुकाबला करने में वैज्ञानिक प्रगति को साझा करने की हड़बड़ी में उस भरोसे को ही कम किया जा रहा है। निजी कंपनियां, सरकारें और अनुसंधान संस्थान संभावित सफलताओं की जानकारी देने के लिए संवाददाता सम्मेलन बुला रहे हैं लेकिन उनके दावों को जांचा नहीं जा सकता। वे सभी तथ्य जिनके आधार पर ये घोषणाएं की जा रही हैं, उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं जिनसे कि इनकी बातों को कसौटी पर कसा जा सके।”
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
कोविड-19 ने कई देशों में अभूतपूर्व संकट पैदा किया तो देशों का जवाब भी अभूतपूर्व रहा। डब्लूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन के शब्दों में, “वैक्सीन के विकास की दौड़ में 200 से अधिक संस्थान और कंपनियां हैं और उनमें से 27 क्लीनिकल ट्रायल के चरण में हैं। टीके के विकास और वितरण वगैरह के संबंध में एक राष्ट्रवादी रवैया अपनाना ठीक नहीं, यह काम वैश्विक सहयोग से होना चाहिए।” रूस ने 11 अगस्त को स्पुतनिक-वी बनाने की घोषणा की और उसके बाद खास तौर से पश्चिमी देशों की ओर से आलोचनाओं की एक लहर शुरू हो गई। डब्ल्यूएचओ में यह वैक्सीन विकास के शुरुआती चरण के तौर पर सूचीबद्ध है। लेकिन मॉस्को के गेमालेया संस्थान और रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष का कहना है कि टीका मानव परीक्षणों के अंतिम चरण से गुजर रहा है। लेकिन फिर अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और भारत भी अपने स्वयं के सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान संस्थानों और कॉरपोरेटों द्वारा वैक्सीन का उत्पादन करने के प्रयासों में पीछे नहीं हैं। ऐसे समय जब दुनिया इस महामारी से जूझ रही है, इनमें से कुछ देशों का नेतृत्व राजनीतिक-व्यावसायिक-जीवन को बचाने वाली वर्चस्वकारी भूमिका से निर्देशित हो रहा है।
चीन ने अपने यहां एक वैक्सीन को तीसरे चरण के परीक्षणों से गुजारे बिना सैनिकों पर आजमाने की मंजूरी दे दी है। इसने कैनसिनो को पहला वैक्सीन पेटेंट भी दे दिया है। ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी लोगों को सुरक्षित करने की कोशिशों के तहत दुनियाभर की तमाम कंपनियों को पहले से ही अरबों खुराक का ऑर्डर दे रखा है। कुछ ऐसी ही स्थिति ब्रिटेन की है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एस्ट्रा जेनेका के साथ मिलकर टीका विकसित कर रहा है जिसमें पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट प्रमुख निर्माता है।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
अगर संख्या में बात करें तो निश्चित तौर पर वैक्सीन की मांग अरबों खुराक में है। दिक्कत की बात है इसके साइड इफेक्ट्स का जोखिम। अगर यह जोखिम 1-2 प्रतिशत भी रहता है तो इसका मतलब लाखों-करोड़ों लोग हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसी वजह से वैक्सीन के विकास और परीक्षण के विभिन्न चरणों में अत्यधिक सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है। मर्क केन फ्रैजियर के सीईओ कहते हैं, "टीका तैयार करने की कोशिशों का नतीजा इस साल आने की संभावना नहीं है क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया है। हजारों ट्रायल, आंकड़े इकट्ठा करने और इनके विश्लेषण और संभावित दीर्घकालिक प्रभावों तक पहुंचने में वक्त लगता है।”
टीका तैयार करने की दौड़ में भारत भी है। आईसीएमआर ने परीक्षण से जुड़े संस्थानों को जुलाई के शुरू में काम तेज करने को कहा ताकि 15 अगस्त तक कोई सकारात्मक नतीजा आ सके और प्रधानमंत्री लालकिले के प्राचीर से इसकी घोषणा कर सकें। स्वाभाविक ही राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों और संबंधित विशेषज्ञों ने इसका विरोध किया और तब आईसीएमआर यह कहते हुए पीछे हट गई कि यह तो सिर्फ इसलिए कहा गया था कि विकास प्रक्रिया तेज हो सके।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि तीन टीके परीक्षण के विभिन्न चरणों में हैं। उत्पादन और वितरण की तैयारी हो चुकी है और जैसे ही वैज्ञानिक हरी झंडी देंगे, बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हो जाएगा। भारत बायोटेक, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ-साथ जायडस कैडिला समूह द्वारा विकसित टीका परीक्षण के चरण-1 और 2 में है। सीरम इंस्टीट्यूट दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण कर रहा है। भारत बायोटेक के अध्यक्ष ने कहा कि उनके काम का टीका नियामक मंजूरी के बाद 6 महीने से एक साल में तैयार हो सकेगा। हालांकि भारत वर्तमान में दुनिया के आधे से अधिक टीकों का उत्पादन करता है लेकिन उसके लिए भी 1.3 अरब लोगों को वैक्सीन देने का काम दुष्कर है।
Published: 22 Aug 2020, 2:29 PM IST
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