पिछले दो महीनों से देश में प्याज की आसमान छूती कीमतों को लेकर हाय-तौबा मची है। तमाम हिस्सों में प्याज की कीमत सौ रुपये प्रति किलो को पार कर गई है, तो महानगरों में यह 150 रुपये प्रति किलो के स्तर को छूने लगी है। सरकार ने इसके लिए आयात का रास्ता अपनाया है, लेकिन यह कदम कारगर नहीं होने वाला। कारण, अब तक कुल 1.5 लाख टन आयात के लिए समझौता हुआ है और देश में प्रति दिन प्याज की खपत ही तकरीबन 50 हजार टन है। यानी तीन दिन में सारा स्टॉक खत्म। जाहिर है, इससे तो समस्या हल होने से रही।
प्याज की कीमतें जैसे ही काबू से बाहर होने लगीं, सरकार तत्काल सक्रिय हुई, लेकिन उसने वही घिसे-पिटे उपाय किए। सबसे पहले निर्यात की न्यूनतम कीमत बढ़ाकर 850 डॉलर प्रति टन कर दिया। जब इससे भी बात नहीं बनी और कीमत बढ़ती रही तो प्याज के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी। इसके साथ ही थोक और खुदरा विक्रेताओं के लिए प्याज के भंडारण की सीमा भी घटा दी, लेकिन इन सबसे भी कोई खास लाभ नहीं हुआ। इसके साथ ही सरकार ने मिस्र से 6090 टन, तुर्की से 11,000 टन आयात के ऑर्डर के अलावा एमएमटीसी को एक लाख टन आयात करने का भी निर्देश दिया। इस बीच, अफगानिस्तान से प्याज का आना शुरू हो गया है। सोमवार को प्याज लदे 110 ट्रक पंजाब की अटारी सीमा पर पहुंचे और आने वाले समय में इस तरह की और भी खेपें आती रहेंगी।
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इस बात से इनकार नहीं कि आयात से बाजार के गर्माए मिजाज पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा, लेकिन इससे जमीनी स्थिति में बहुत असर नहीं पड़ेगा। देश में महाराष्ट्र और कर्नाटक प्याज का 50 फीसदी उत्पादन करते हैं और इन दोनों राज्यों में पहले तो वर्षा हुई नहीं और प्याज को निकालने के समय से पहले ही अचानक भारी वर्षा हो गई और वर्षा का यह दौर लंबे समय तक रह गया। इसके कारण इन दोनों राज्यों में प्याज का उत्पादन एकदम गिर गया।
महाराष्ट्र में अक्टूबर के शुरू से लेकर नवंबर के शुरू तक प्याज की पैदावार होती है और इस दौरान वहां 1.5 गुना अधिक बारिश हुई। वहीं कर्नाटक में 45 फीसदी प्याज के खेत असमय वर्षा की भेंट चढ़ गए। असमय बारिश के कारण प्याज उत्पादन के सरकारी अनुमान में 18 लाख टन की कमी आ गई और बाजार में अफरातफरी मचाने के लिए इतना ही काफी था। इसी कारण, प्याज की कीमतें आसमान छूने लगीं। वैसे, इस बार प्याज का उत्पादन एक चौथाई जरूर घटा है, लेकिन कीमतों में इस तरह आग लगने की कोई वजह नहीं और खास तौर पर जब आसमान छूती कीमतों का कोई लाभ किसानों को नहीं मिल रहा।
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कुछ समय पहले 8 रुपये किलो प्याज बेचते महाराष्ट्र के एक किसान का वीडियो वायरल हुआ था और उसे आज भी जब बाजार में आग लगी है, कोई फायदा नहीं मिल रहा। दिसंबर के शुरू में शोलापुर मंडी में प्याज की कीमत 60-70 रुपये प्रति किलो थी और जाहिर है व्यापारियों ने ही चांदी काटी। सोचने वाली बात यह भी है कि जब प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती हैं, तभी मीडिया में हो-हल्ला क्यों मचता है? जब किसान बोरे के पैसे भी नहीं निकलने की सूरत में प्याज फेंकने को मजबूर हो जाते हैं, तब मीडिया कहां सोया रहता है?
दो राय नहीं कि सरकार को किसानों के लिए भंडारण की और व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन समस्या केवल इतनी नहीं है। अगर भंडारण ही समस्या की जड़ होती तो अमेरिका के फ्लोरिडा में किसानों को 3 पाउंड की बोरी का प्याज ढाई डॉलर में नहीं बेचना पड़ता जो उत्पादन लागत से भी कम है। वहां की एक प्याज उत्पादक ने ट्वीट किया कि उसे 30 साल पहले की कीमत पर प्याज बेचना पड़ रहा है।
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दरअसल, भारत में व्यापारी तो अमेरिका में सुपर मार्केट प्याज किसानों के हिस्से का मुनाफा हड़प रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि किसानों के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष हो। अभी 500 करोड़ का कोष तो है, लेकिन इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को उचित दर पर प्याज उपलब्ध कराना है। ऐसी व्यवस्था करनी होगी जो उपभोक्ताओं के साथ उत्पादकों को भी राहत पहुंचाए। इसके लिए टमाटर, आलू और प्याज का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए अमूल सहकारिता की तर्ज पर एक ढांचा खड़ा किया जाना होगा। डॉ. वर्गीज कुरियन ने जिस तरह मदर डेयरी के आउटलेट पर सब्जियां उपलब्ध कराने का अभिनव उपाय शुरू किया था, उसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। यही एक उपाय है जिससे उत्पादकों और उपभोक्ताओं, दोनों को राहत पहुंचाया जा सकता है।
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