देश के नए संसद भवन की छत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विशालकाय अशोक स्तंभ के किए गए अनावरण के बाद जो विवाद खड़ा हुआ है, वो थम नहीं रहा है। अशोक स्तंभ के शेरों के आकार और उनकी मुद्राओं को लेकर अभी भी सरकार सवालों के घेरे में है। विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है, हालांकि 'नए भारत के शेर हैं दहाड़ेंगे ही' कहकर सवालों से सत्ता पक्ष बचने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है।
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बहरहाल, ये अब देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों को मालूम हो गया है कि भारत में अशोक स्तंभ के शेरों को लेकर शोर हो रहा है, इसलिए इस शोर के बारे में हम आज जिक्र ना करते हुए इसके थमने को लेकर क्या रास्ता है उस पर बात करेंगे।
बात करेंगे आखिर इस पूरे विवाद पर कानून क्या कहता है? क्या सही में भारत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव कर सकती है? या सिर्फ उसे डिजाइन में बदलाव करने की छूट है? इन तमाम सवालों का जवाब इससे जुडे एक कानून से ढूंढने की कोशिश करते हैं।
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इस विवाद का जवाब भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह(दुरूपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 से जुड़ा हुआ।
एक्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को आधिकारिक मुहर के रूप में उपयोग करने के लिए अनुसूची में वर्णित किया गया है।
एक्ट में ये बताया गया है कि भारत का जो राष्ट्रीय प्रतीक है वो सारनाथ के Lion Capital of Asoka से प्रेरणा लेता है।
एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।
सेक्शन 6(2)(f) में कहा गया है कि जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार के पास हर वो परिवर्तन करने की ताकत है जिसे वो जरूरी समझती है। इसमें राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव वाली बात भी शामिल है।
वैसे एक्ट के तहत सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है, कभी भी पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को नहीं बदला जा सकता।
इस सेक्शन में 'प्रतीक के उपयोग को विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार की सामान्य शक्तियों' का जिक्र मिलता है। हालांकि बाद में साल 2007 में इस कानून को अपडेट कर दिया गया था।
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अब एक्ट की मानें तो सिर्फ डिजाइन में सरकार बदलाव कर सकती है, अब सवाल ये है कि डिजाइन के अलावा क्या पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को भी बदला जा सकता है? इसका जवाब एडवोकेट राधिका रॉय ने बेहतर तरीके से दिया।
एक हिंदी वेबसाइट ने राधिका रॉय के हवाले से बताया है कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन में बदलाव करने की ताकत नहीं है बल्कि वो पूरा राष्ट्रीय प्रतीक भी बदल सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सरकार को ऐसे बदलाव करने से रोक सके। ऐसे में कानून में संशोधन कर और फिर दोनों सदनों से उसे पारित करवाकर पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को भी बदला जा सकता है।
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नई संसद की छत पर लगे अशोक स्तंभ को 9,500 किलो तांबा से डिजाइन करने वाले कलाकार सुनील देवरे कहते हैं कि “इसे अधिकतम अशोक स्तंभ पर अंकित कृति जैसा ही रखा गया है। यह 99 प्रतिशत मूल कृति की तरह ही है। प्रतिकृति में बने शेरों को देखने के एंगल के कारण विवाद हो रहा है।“ यानी एक तरह से माना जाए कि एक प्रतिशत की त्रुटि तो है ही।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुनील देवरे ने कहा कि प्रतिकृति का आकार बड़ा होने के कारण इससे जुड़ी छोटी-छोटी चीजों की तरफ भी लोगों का ध्यान जा रहा है। वैसे उन्होंने माना कि मूल कृति में कुछ क्षति होने के कारण छोटे बदलाव हो सकते हैं, लेकिन हमने प्रतिकृति को अधिकतम मूल कृति के जैसा ही तैयार किया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक शेरों की मुद्रा पर विवाद को लेकर देवरे ने कहा कि जो फोटो इंटरनेट मीडिया पर वायरल है, वह जूम से बाहर है। फोटो नीचे से खींचने के एंगिल के कारण शेरों की मुद्रा में बदलाव दिख रहा है। उन्होंने कहा कि, “प्रतिकृति तैयार करने से पहले हमने संग्रहालय जाकर इस पर शोध किया। हमने केवल ढाई फीट की मूल कृति के आकार को बड़ा किया है। जब आप ऐसा करते हैं तो मूल कृति के सभी डिटेल विशालता के कारण साफ दिखते हैं।“
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए बने संसद भवन के द्वार पर लगाई गई अशोक स्तंभ के शेरों की प्रतिकृति का अनावरण किया। जैसा कि अपेक्षित था मीडिया में इसका जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी हुआ। तस्वीरें सामने आईं। पहले तो इसी बात पर विवाद हो गया कि आखिर बौद्ध धर्म मानने वाले अशोक के स्तंभ की प्रतिकृति के अनावरण के मौके पर वैदिक विद्या से क्यों पूजा-अर्चना हुई। लेकिन हम इस मुद्दे को छोड़ देते हैं।
असली मुद्दा या विवाद शुरु हुआ इस स्तंभ के शेरों की भाव-भंगिमा पर। अलग-अलग ऐंगल से खींची गई तस्वीरें सामने आने लगीं और दावे किए गए कि इन शेरों की भाव-भंगिमा आक्रामक है, यह वह मुद्रा नहीं है जो असली अशोक स्तंभ में है।
विवाद बढ़ने लगा और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का तूफान सा आ गया। विपक्षी नेता भी इसमें कूदे और कई ने तो अशोक की लाट के शांत और सौम्य शेरों की तुलना में इस प्रतिकृति का स्वरूप आक्रामक करने के आरोप लगाए। कुछ ने इन्हें हटाने की मांग की तो कुछ ने कानूनी कार्रवाई करने को कहा।
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