केंद्र की मोदी सरकार ने भले ही अपने सात साल के शासन की उपलब्धियां गिनाने वाले दस्तावेज में किसानों की समृद्धि को देश की समृद्धि का मंत्र बताया हो, लेकिन हकीकत यह है कि बीते तीन साल के दौरान किसानों के आंदोलन में 5 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। यह दावा सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) ने किया है।
सीएसई द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 के दौरान भारत के 15 राज्यों में किसानों के कुल 34 आंदोलन दर्ज हुए थे, जबकि अब यह 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैलकर इनकी संख्या 165 पहुंच गई है। सीएसई का कहना है कि देश में हर दिन 28 खेतिहर मजदूर और किसान आत्महत्या करते हैं। अकेले 2019 में ही 5,957 किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं 4,324 खेतिहर मजदूरों ने भी जान दी है।
सीएसई का कहना है कि, “भारत में किसानों से ज्यादा खेतिहर मजदूर हैं जिससे देश के कृषि क्षेत्र की बदहाली का पता चलता है।” सीएसई ने कहा है कि “भारत कृषि संकट और किसानों की नाराजगी के एक बहुत बड़े टाइम बम पर बैठा है और समय धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।”
सीएसई की डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण ने कहा है कि, “आंकड़ों में एक नाटकीयता दिखती है, इन आंकड़ों से एक ट्रेंड का पता चलता है कि हालात कितने खराब होते जा रहे हैं। अगर इन आंकड़ों को और रुझान को संकट को समझने के लिए इस्तेमाल करते हैं तो इसका फायदा मिल सकता है। इसमें अवसर और चुनौती दोनों ही हैं।”
सुनीता नारायण ने आगे कहा कि, “आंकड़े जमा करना महत्वपूर्ण है, और यह शासन का हिस्सा है, लेकिन इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि इन आंकड़ों को साझा किया जाए और काम किया जाए ताकि संकट को संभालने और हालात को बेहतर बनाने का काम हो सके।”
वहीं सीएसई द्वारा प्रकाशित पत्रिका डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्र ने कहा कि, “अगर आप जमीनों के रिकॉर्ड की हालात देखेंगे तो स्थिति और साफ हो जाएगी कि किस तरह इनका रखरखाव हो रहा है।” उन्होंने कहा कि उनके विश्लेषण में सामने आया है कि देश के कम से कम 14 राज्यों में जमीनों के रिकॉर्ड्स की हालत धीरे-धीरे खस्ता होती जा रही है।
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