हालात

पत्रकारों के लिए खतरनाक बने उत्तर प्रदेश के हालात, दबदबा कायम करने के लिए सरकारी उत्पीड़न चरम पर

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न का सबसे ताजा मामला पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी उनके गोद लिए गांव के लोगों को लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों की खबर करने वाली दिल्ली की पत्रकार सुप्रिया शर्मा का है। उनके खिलाफ कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
फोटोः आस मोहम्मद कैफ 

पिछले तीन महीनों के लॉकडाउन के दौरान पूरे उत्तर प्रदेश से पत्रकारों के उत्पीड़न की असंख्य घटनाएं सामने आई हैं। एक संस्था द्वारा जुटाई गई जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान 55 पत्रकारों के विरुद्ध मुकदमा लिखा गया और कइयों को जेल भेज दिया गया है।

मुजफ्फरनगर के एक अखबार के संपादक वसीम अहमद अपने साथ हुई घटना को बताते हुए कहते हैं, “रिपोर्टिंग के लिए हालत बिल्कुल साजगार नहीं हैं। लॉकडाउन के दौरान आम आदमी सड़क पर घूमता मिल गया तो उसे डांटकर घर भेज दिया जाता, मगर पत्रकार को सीधे थाने भेज दिया जाता था और और उसके तमाम कागज देखे जा रहे थे।”

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

उन्होंने कहा, “आज एक सिपाही और दरोगा भी पत्रकार का आईडी कार्ड मांग रहे हैं, जोकि बेहद अपमानित करने वाला है। कुछ सरकारी अफसर विशेष पत्रकारों के प्रति दुर्भावना से भरे हुए हैं। एक विशेष शैली के पत्रकारों को अफसरशाही बगलगीर रखती है। जनता की बात लिखने वाले पत्रकार आंखों को नहीं सुहा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान मुझे पुलिस के एक दरोगा ने अपमानित किया और रिपोर्टिंग करने से रोक दिया। मैंने उच्चाधिकारियों से शिकायत की और पत्रकार इकट्ठा हुए तो दरोगा को समझाकर बिना किसी कार्रवाई के जाने दिया गया।"

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीड़न का सबसे सनसनीखेज मामला पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की रिपोर्टिंग करने वाली दिल्ली की पत्रकार सुप्रिया शर्मा का है। वह देशभर में लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों पर रिपोर्टिंग करना चाहती थी और उन्हें लगा कि इसे समझने के लिए देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। सुप्रिया वहां जून के पहले सप्ताह तक रहीं और उन्होंने 8 ग्राउंड रिपोर्ट लिखी।

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

इन रिपोर्ट्स में उन्होंने विविधताओं के आधार पर लोगों की समस्याओं को उजागर किया। इसमें मंदिर के पुजारी, फूल बेचने वाले, बुनकर, महिलाएं, मजदूर, बच्चों और समाज के अलग-अलग वर्ग से उन्होंने बातचीत की। दिल्ली में रहने वाली सुप्रिया सातवें दिन प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए हुए गांव डुमरी पहुंचीं और वहां के लोगों से बातचीत की। उन्होंने गांव के लोगों की तकलीफ को लिखा, जिसमें उन्होंने एक महिला माला देवी से बातचीत का वर्णन किया। रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने उन्हें बताया कि "लॉकडाउन के दौरान वो चाय और रोटी खाकर सो रही थी और कई बार भूखी ही सो गई।”

रिपोर्ट के पब्लिश होने के एक सप्ताह बाद 18 जून को उक्त महिला माला देवी स्थानीय रामनगर थाने पहुंची और उन्होंने दावा किया कि रिपोर्ट में उनकी तरफ से लिखी गई बात सच नहीं है। वो तो नगर निगम में काम (आउटसोर्सिंग) करती हैं। उन्होंने दावा किया कि उन्हें लॉकडाउन में एक भी दिन भूखा नहीं सोना पड़ा और उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं हुई। इसी थाने में सुप्रिया शर्मा के खिलाफ विभिन्न धाराओं में तत्काल मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इतना ही नहीं, इसके साथ ही सुप्रिया के विरुद्ध एससी/एसटी उत्पीड़न की धाराओं में भी केस दर्ज किया गया है।

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

वहीं, सुप्रिया शर्मा ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वो अपने स्टैंड पर क़ायम हैं। उन्होंने खबर में जो भी लिखा है, वो सही है। माया देवी के हवाले से जो लिखा गया है वो माया देवी ने ही बताया था। वहीं इस मामले में माया देवी से बात करने की कोशिश की गई, पर अब उनसे बात नहीं हो पा रही है।

इससे पहले 8 जून को एक और घटना हुई। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के दर्जनों पत्रकार हाथों में पत्रकार उत्पीड़न की तख्ती लेकर नदी में नाभि की गहराई तक पानी मे नग्न खड़े हो गए। ये सभी स्थानीय जिलाधिकारी को हटाए जाने की मांग कर रहे थे। इनका कहना था कि यहां पत्रकारों में डर पैदा करने की कवायद की जा रही है और इसी परिपेक्ष्य में अजय भदौरिया नामक एक वरिष्ठ पत्रकार के विरुद्ध केस दर्ज कर लिया गया।

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

एक अलग घटनाक्रम में 4 जून को मुजफ्फरनगर के सैकड़ों पत्रकार केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के घर पहुंचकर धरने पर बैठ गए। केंद्रीय मंत्री महोदय वहां नही थे तो उन्होंने राज्य सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल और विधायक उमेश मलिक को उन्हें सुनने के लिए भेजा। पत्रकारों ने स्थानीय प्रशासन पर उत्पीड़न का आरोप लगाया, जो एक पखवाड़े में दर्जनों पत्रकारों के विरुद्ध मुकदमे दर्ज कर चुका था। कइयों के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। पत्रकार सबसे ज्यादा इसलिए नाराज थे, क्योंकि एक न्यूज चैनल के पत्रकार पंकज बालियान को भी पुलिस ने जेल भेज दिया था, जिसकी बहन की दो दिन बाद शादी थी।

इसके अलावा 8 अप्रैल को सहारनपुर के देवबंद में एक पत्रकार को पुलिस द्वारा सरेआम लाठी से पीटे जाने जैसे मामलेे अलग हैं। इसके अलावा मेरठ में भी पत्रकारों में डर पैदा करने के लिए कुछ युवकों को फर्जी पत्रकार बताकर कार्रवाई कर दी गई। यहां तक कि खबर लिखने वाले इस पत्रकार के साले के विरुद्ध ङी मुकदमा लिखकर जेल भेज दिया गया है।

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

इन सारी घटनाओं पर उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के प्रदेश सचिव मनोज भाटिया कहते हैं कि हालात चिंताजनक हैं। पत्रकारों को निर्भीक होकर अपना काम करना चाहिए। निश्चित तौर पर इस समय सच बयां करना बेहद मुश्किल काम हो गया है। हमारे संगठन के लोग इससे चिंतित हैं। हमने सरकार से कहा है कि पत्रकारों के प्रति इस तरह की कार्रवाई से आमजन में बहुत गलत संदेश जा रहा है। हमें स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि यह पत्रकारों पर दबदबा कायम करने की कवायद है। उन्हें नियंत्रित किया जा रहा है। यह 'मीठा मीठा, गप गप' और कड़वा कड़वा, थू थू' जैसी स्थिति है। हम भयभीत नहीं होंगे।

Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST

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Published: 22 Jun 2020, 4:10 PM IST