प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस का प्रकोप शुरु होने के बाद से अपने पांचवें राष्ट्र के नाम संबोधन में मंगलवार को कहा ऐलान किया कि उनकी सरकार आत्म निर्भर भारत अभियान के नाम से 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज लेकर आ रही है। इस पैकेज से देश की अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई होगी, गरीबों, मजदूरों, मध्यम वर्ग, किसानों, छोटे और मझोले उद्योगों और टैक्स पेयर्स यानी कर दाताओं को मदद दी जाएगी। अपने भाषण के दौरान पीएम याद दिलाया कि पैकेज री रकम देश की जीडीपी के करीब 10 फीसदी के आसपास है। 2019-20 में देश की जीडीपी का आकार करीब 200 लाख करोड़ का था।
पीएम ने लोकल उत्पाद खरीदने की अपील की और साथ ही लोकल उत्पादों के प्रचार का भी आह्वान किया। उन्होंने बताया कि पैकेज में क्या-क्या होगा इस बारे में देश की वित्त मंत्री आने वाले दिनों में विस्तार से बताएंगी।
Published: undefined
यह तो रही एक बात। लेकिन लोगों में इस बात को लेकर जिज्ञासा है और मन में सवाल की आखिर इस पैकेज में होगा क्या? पीएम ने तो साफ कह दिया कि आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए,इस पैकेज में भूमि, श्रम, नकदी और कानून सभी पर बल दिया गया है। यानी सिर्फ नकदी नहीं होगी, कुछ भूमि होगी, कुछ कानून होंगे और कुछ नकदी होगी।
हालांकि पीएम ने सबकुछ तो नहीं बताया लेकिन इतना जरूर कह दिया कि “हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थीं, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे, और आज जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो ये करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपए का है। ये पैकेज भारत की GDP का करीब-करीब 10 प्रतिशत है।” इसका सीधा सा अर्थ है कि पीएम ने जिस 20 लाख करोड़ के पैकेज की बात की है, वह इतनी रकम का नहीं होगा, बल्कि इससे करीब 25-30 फीसदी कम होगा।
Published: undefined
वह ऐसे कि पीएम ने साफ कहा कि आरबीआई जो भी वित्तीय फैसले ले चुका है वह भी इस पैकेज का हिस्सा होंगे। यहां ध्यान देना होगा कि रिजर्व बैंक सिर्फ मौद्रिक नीति का फैसला लेता है और वित्तीय नीति का फैसला पूरी तरह सरकार का होता है, ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक व्यवस्था के लिए घोषित उपायों को पैकेज का हिस्सा बनाना चौंकाता है।
अर्थशास्त्री और विशेषज्ञों का साफ कहना है कि सरकार के खर्च और वित्तीय फैसले और आरबीआई द्वारा उठाए गए कदम न तो कभी एक जैसे होते हैं और न ही इस तरह कभी एक दूसरे से जोड़े गए हैं।
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अमेरिका ने कोरोना वायरस संक्रमण के बाद हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए 3 खरब डॉलर यानी 225 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। यह वह पैसा है जो अमेरिकी सरकार खर्च करेगी और इसमें अमेरिका के फेडरल रिजर्व के उपायों का कोई लेना-देना नहीं है।
Published: undefined
इसका सीधा अर्थ है कि जिस 20 लाख करोड़ का जो राग देश के सामने प्रधानमंत्री ने रखा वह दरअसल 20 लाख करोड़ का तो नहीं होगा। तो फिर कितना होगा। इसे समझने के लिए कोरोना वायरस का संकट शुरु होने के बाद से रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए कदमों या उपायों को जानना जरूरी है। मोटे अनुमान के मुताबिक रिजर्व बैंक अब तक 5 से 6 लाख करोड़ रुपए के उपाय कर चुका है। इसके अलावा सरकार ने भी 26 मार्च को एक राहत पैकेज का ऐलान किया था जिसे 1.70 लाख करोड़ का बताया गया था। उन दोनों को मिला लें तो करीब 8 लाख करोड़ या 20 लाख करोड़ के करीब 40 फीसदी का ऐलान तो पहले ही हो चुका है। इस तरह अब बचते हैं सिर्फ 12 लाख करोड़।
और अगर सरकार ने आरबीआई के मौद्रिक तरलता यानी लिक्विडिटी उपायों को भी शामिल कर लिया तो सरकार की तरफ से खर्च होने वाला पैसा 12 लाख करोड़ से भ कम हो सकता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि आरबीआई ने हाल ही में लांग टर्म बांड की बात की, यानी करीब एक लाख करोड़ रुपए के लांग टर्म रेपो ऑपरेशन -एलटीआरओ की बात की थी जिससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता आएगा। आरबीआई इसी तरह के एक लाख करोडे के एक और एलटीआरओ की बात कर रहा है।
Published: undefined
तो एक सवाल यह भी बनता है कि आखिर आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों या उपायों को ओवरऑल आर्थिक पैकेज का हिस्सा क्यों नहीं माना जाना चाहिए?
इस जवाब है कि सरकार द्वारा सीधे खर्च को, वह दिहाड़ी या वेतन की सब्सिडी के रूप में हो या डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर हो या किसी अस्पताल या सड़क या फैक्टरी जैसे किसी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में लगे निर्माण मजदूरों को वेतन देने का खर्च हो, उससे अर्थव्यवस्था में गति आती है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पैसा किसी न किसी रूप में लोगों तक पहुंचता है या तो वेतन के रूप में या फिर उसके द्वारा खरीदारी करने पर।
लेकिन रिजर्व बैंक द्वारा कर्ज की शर्तों में नर्मी करना, यानी बैंकों को अधिक पैसा उपलब्ध कराना, ताकि वे अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने के लिए कर्ज दे सकें, उसे सरकारी खर्च नहीं माना जाता है। वह इसलिए क्योंकि संकट के समय में बैंक आरबीआई या किसी अन्य स्त्रोत से पैसे लेते हैं, और इसे कर्ज में देने के बजाय आरबीआई के पास रख देते हैं। इस समय भी ऐसा ही हो रहा है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि बैंकों ने रिजर्व बैंक के पास 8 लाख करोड़ रुपए रखे हुए हैं। इस तरह अगर सही मायनों में देखें तो रिजर्व बैंक ने राहत तो 6 लाख करोड़ की दी, लेकिन बदले में उसके पास 8 लाख करोड़ रुपए आ गए।
Published: undefined
इस तरह आरबीआई और बैंकों के बीच तो पैसा तो इधर उधर हो रहा है, लेकिन इससे अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाने के लिए खर्च नहीं किया जा रहा। ऐसे में सरकार के आर्थिक पैकेज का करीब आधा हिस्सा तो पहले ही सामने आ चुका है। अब सारी नजरें वित्त मंत्रालय पर हैं कि वह इस पैकेज का क्या खाका देश के सामने रखता है, और इससे किसे और कितनी और किस तरह की राहत मिलती है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined