देश के निजी अस्पतालों ने कोरोना वैक्सीन की कितनी डोज खरीदी हैं, इसका कोई आंकड़ा मोदी सरकार के पास नहीं है। सरकार की तरफ से यह बात केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में कही है। ध्यान रहे कि सरकार ने ही नियम बनाया था कि देश में बनी कुल वैक्सीन का 25 फीसदी निजी अस्पताल खरीद सकते हैं. बाकी 75 फीसदी वैक्सीन सरकार खरीदेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार द्वारा वैक्सीन खरीद के नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
आरटीआई एक्टिवसिट कन्हैया कुमार ने सूचना के अधिकार कानून के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से इस बाबत जानकारी मांगी थी। ध्यान रहे कि हाल ही में सरकार ने एक प्रेस रिलीज में आंकड़ा जारी किया है कि देश में अब तक कोरोना वैक्सीन की 49.64 करोड़ डोज राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मुहैया कराई गई हैं। इसके अलावा करीब 3.14 करोड़ वैक्सीन डोज अभी भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और निजी अस्पतालों के पास उपलब्ध हैं।
ध्यान रहे कि सरकार की संशोधित नियमावली के मुताबिक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश बड़े और छोटे निजी अस्पतालों और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए समान वितरण के आधार पर वैक्सीन की मांग रखेंगे। इस समग्र मांग के आधार पर, भारत सरकार निजी अस्पतालों को इन टीकों की आपूर्ति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से उनके भुगतान की सुविधा प्रदान करेगी। ऐसा इसलिए क्या गया है ताकि दूरदराज के इलाकों में बने छोटे निजी अस्पतालों को भी वैक्सीन की समय पर आपूर्ति हो और इसकी समान पहुंच हो।
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केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि वह देश में बनाई जा रही कुल वैक्सीन का 75 फीसदी खरीदेगी और राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को मुफ्त मुहैया कराएगी। ये सारी डोज राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सभी नागरिकों को सरकारी टीकाकरण केंद्रों के माध्यम से प्राथमिकता के अनुसार निःशुल्क दी जाएगी।
सभी निजी अस्पतालों को वैक्सीन की खरीद के लिए कोविन वेबसाइट पर एक निजी कोविड टीकाकरण केंद्र (पीसीवीसी) के रूप में पंजीकरण करना होगा। ऐसे में सरकार का यह कहना कि उसके पास निजी अस्पतालों द्वारा खरीदी वैक्सीन का आंड़ा नहीं है, खोखला साबित होता है। सरकार ने किसी भी निजी अस्पताल द्वारा वैक्सीन की संख्या पर सीमा निर्धारित की है, जिसमें कहा गया है कि कोई निजी अस्पताल में खपत का अनुमान पिछले महीने में हुई वैक्सीन खपत के आधार पर लगाया जाएगा। इसके बाद कोविन एप पर ही निजी अस्पताल को वैक्सीन का नया स्टॉक खरीदने की मंजूरी मिल जाएगी। वैक्सीन खरीद के लिए भुगतान इलेक्ट्रिक माध्यम से नेशनल हेल्थ अथॉरिटी पोर्टल से किया जाएगा।
इस समय करीब 47,979 केंद्रों पर वैक्सीनेसन किया जा रहा है। इनमें से 2,485 केंद्र निजी अस्पतालों और क्लीनिक द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। लेकिन हाल ही में स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा था कि कई निजी वैक्सीनेशन केंदों ने उनके लिए निर्धारित 25 फीसदी वैक्सीन का ऑर्डर नहीं दिया है। उन्होंने निजी केंद्रों में वैक्सीनेशन की धीमी गति को चिंता का कारण बताया था।
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अभी 14 जुलाई को ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक प्रेस नोट में कहा था कि निजी वैक्सीनेशन केंद्रों द्वारा जितनी डोज खरीदी गई हैं उससे कम संख्या में लोगों को वैक्सीन दी गई है। साथ ही जिनती डोज के लिए भुगतान किया गया है उतनी डोज निजी केंद्रों और राज्यों ने नहीं नहीं उठाई हैं।
निजी क्षेत्र द्वारा कोरोना वैक्सीन डोज की खरीद पर डेटाऔर पारदर्शिता की कमी चिंता का कारण है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में टीकों की कमी है, जहां टीके मुफ्त में दिए जा रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि राज्यों को वैक्सीन आपूर्ति के मामले में भी असमानता है क्योंकि कुछ निजी अस्पतालों में अन्य की तुलना में अधिक हिस्सेदारी है, जिससे राज्यों के बीच वैक्सीन आवंटन में असंतुलन पैदा होता है।
जरूरत यह है कि देश को पता हो कि निजी अस्पतालों को कितनी डोज मिली हैं क्योंकि अभी तक देश में 6 फीसदी से कम आबादी को ही पूरी तरह वैक्सीनेट किया गया है।
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कई जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि निजी अस्पतालों में वैक्सीनेशन की गति धीमी होने का कारण यही है कि वैक्सीन के दाम अधिक हैं, वह भी ऐसे समय में जब करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई है, कारोबार बंद हो गए हैं और आमदनी में कमी आई है।
कांग्रेस ने जून में ही सरकार से मांग की थी कि देश के सभी नागरिकों को सरकारी और निजी दोनों ही वैक्सीनेशन केंद्रों पर मुफ्त वैक्सीन दी जानी चाहिए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार की वैक्सीनेशन नीति पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सरकार को वैक्सीन वितरण का एक पारदर्शी फार्मूला अपनाना चाहिए ताकि वैक्सीनेशन में भेदभाव न हो।
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