करनाल में उमड़े हरियाणा के किसानों के सैलाब ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार को जवाब दे दिया है। खुद मुख्यमंत्री की ओर से किसान आंदोलन में महज बाहरी किसानों की भागीदारी की लगाई जा रही तोहमत का लाखों किसानों ने करनाल में उमड़कर अपने अंदाज में प्रतिकार कर दिया है। हालत यह है कि मुख्यमंत्री खट्टर खुद अपने ही घर में घिर गए हैं। धारा 144, बड़े-बड़े डंपर खड़े कर बनाए गए बेरिकेड और हजारों पुलिस फोर्स की तैनाती भी किसानों को करनाल लघु सचिवालय के धेराव से रोक नहीं पाई।
करनाल के बसताड़ा टोल पर 28 अगस्त को किसानों पर बरपा पुलिसिया कहर खट्टर सरकार को अब भारी पड़ रहा है। किसानों के सिर फोड़ने का फरमान सुनाने वाले एसडीएम पर एक्शन और किसान की मौत को लेकर हत्या का केस दर्ज करने समेत कई मांगों को लेकर दिया गया 6 सितंबर तक का अल्टीमेटम सरकार की कई गलतफहमी दूर होने का सबब बन गया। पिछले कुछ समय से बीजेपी के विधायकों से लेकर मंत्रियों और खुद मुख्यमंत्री तक किसान आंदोलन पर तोहमत मढ़ रहे थे।
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खट्टर सरकार का तंत्र पूरी ताकत से इस बात को उछाल रहा था कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में हरियाणा के किसानों की भागीदारी नगण्य है। बाहर के किसान यहां आकर प्रदेश का माहौल खराब कर रहे हैं। सीएम मनोहर लाल खुद बार-बार दावा कर रहे थे कि सिंघु और टीकरी बार्डर में 85 फीसदी तक किसान बाहर के बैठे हैं। इनमें अधिकतर पंजाब के किसान हैं।
लेकिन 7 सितंबर वह दिन बना जब हरियाणा के किसानों के सैलाब ने खट्टर सरकार के इन आरोपों का अपने अंदाज में जवाब दे दिया। मुजफ्फरनगर में उमड़ी किसानों की तादाद के बाद हरियाणा सरकार के हाथ-पैर पहले ही फूले हुए थे। एक दिन पहले ही सरकार ने इंटरनेट बंद करने के साथ ही करनाल के आसपास के जिलों में भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं। सुरक्षा बलों की तैनाती इतनी तादाद में की गई थी कि हर तरफ खाकी ही नजर आ रही थी। बजरी से भरे डंपर खड़े कर किसानों को रोकने के लिए बैरिकेड बनाए गए थे। वाटर कैनन और ड्रोन की तैनाती थी।
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बीजेपी-जेजेपी सरकार की मंशा साफ थी कि करनाल की अनाज मंडी में पंचायत करने के अलावा लघु सचिवालय घेराव की इजाजत किसानों को कतई नहीं दी जाएगी। लेकिन सरकार की खड़ी की गई हर बाधा नाकाफी साबित हुई। मंगलवार को सुबह से ही लगी ट्रैक्टरों की कतारें इस बात की तस्दीक थीं कि किसान आज करनाल में एक नई इबारत लिखने वाले हैं। जींद, कैथल, दादरी, सोनीपत, अंबाला, पानीपत, यमुनानगर, रोहतक, भिवानी और सिरसा समेत हरियाणा के हर कोने से आ रहे किसानों की कतार नहीं टूट रही थी। मोटरसाइकिलों और कारों की भी लाइन लगी थी। किसान चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि खट्टर देख लो हरियाणा के हर कोने से किसान यहां आया है।
अभी किसान अनाज मंडी में जमा ही हो रहे थे कि संयुक्त मोर्चे के किसान नेताओं को प्रशासन की तरफ से बातचीत का निमंत्रण आ गया। इस पर किसानों का कहना था कि जब हम थोड़े किसान धरने पर बैठे होते हैं तो पुलिस हमें डंडे मारती है और आज जब हम मजबूती से यहां आए हैं तो बात करने के लिए प्रशासन तैयार हो गया। लेकिन राकेश टिकैत, गुरनाम चढ़ूनी, डा. दर्शन पाल और बलबीर सिंह राजेवाल समेत 11 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल की तकरीबन साढ़े तीन घंटे में तीन दौर की प्रशासन से बातचीत बेनतीजा रही।
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इसके बाद किसान नेताओं ने लघु सचिवालय के घेराव का ऐलान कर दिया। साथ ही कहा कि हम कोई बैरिकेड नहीं तोड़ेंगे। प्रशासन जहां रोकेगा, हम वहीं गिरफ्तारी देंगे। लेकिन किसानों का कारवां अनाज मंडी से कूच करते ही यह साफ हो गया कि प्रशासन की खड़ी की गई कोई भी बाधा किसानों को लघु सचिवालय पहुंचने से नहीं रोक पाएगी। प्रशासन ने रास्ते में राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव समेत मोर्चे के नेताओं को हिरासत में भी लिया, लेकिन किसानों के संख्या बल के दबाव में उन्हें रिहा करना पड़ा। किसानों का सैलाब आगे बढ़ता रहा और प्रशासन पीछे हटता रहा। सरकारी तंत्र शायद इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा पाया कि पूरे हरियाणा से इतनी भारी तादाद में किसान उमड़ पड़ेंगे।
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हालांकि, लघु सचिवालय से पहले वाटर कैनन का इस्तेमाल करते हुए किसानों पर पानी की बौछारें की गईं। लघु सचिवालय से पहले खुद एसपी और डीसी किसानों को रोकने के लिए तैनात थे, लेकिन किसान न सिर्फ लघु सचिवालय पहुंचे बल्कि उन्होंने वहां मोर्चा भी लगा लिया। किसानों का इरादा उनकी मांगें पूरी होने तक वहीं डटे रहने का है। किसानों का कहना है कि एसडीएम के वायरल वीडियो को पूरे देश ने देखा है। सारे सबूत सामने हैं। एसडीएम को बर्खास्त करने के साथ ही किसान की मौत के मामले में उस पर हत्या का केस दर्ज किया जाए। पीड़ित परिवार को 25 लाख रु मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी का ऐलान किया जाए।
सबसे खास बात ये है कि करनाल खुद सीएम खट्टर का विधानसभा क्षेत्र है। जाहिर है, किसानों का यह मोर्चा खट्टर सरकार के लिए बड़ी फजीहत का सबब तो बनने वाला है ही। वहीं किसानों को घेर रही सरकार खुद अपने ही बनाए फंदे में फंस गई है।
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