पुलवामा फिदायीन हमले को चार साल हो गए हैं, लेकिन इसका जिन्न शांत होने का नाम नहीं ले रहा। यह एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। अकेले फिदायीन हमलावर ने तब आरडीएएक्स से भरी गाड़ी को सीआरपीएफ के काफिले में ले जाकर उड़ा दिया था, जिससे 40 जवान शहीद हो गए थे।
यह हमला 2019 के आम चुनाव से बमुश्किल दो महीने पहले हुआ था और बीजेपी ने इसका भरपूर फायदा उठाया था। हमले के दो सप्ताह बाद भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट के आतंकवादी शिविर पर बमबारी की। तब एक पूर्ण युद्ध का खतरा मंडरा रहा था, क्योंकि पाकिस्तान के विमान भी भारतीय हवाई क्षेत्र में घुस गए और इसी दौरान भारतीय वायु सेना ने चूक से अपने ही एक हेलीकॉप्टर को मार गिराया, जिसमें छह सैनिक थे।
जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने पुलवामी की सच्चाई को लेकर उठे विवाद को फिर से हवा दे दी है। उन्होंने सीआरपीएफ काफिले की सुरक्षा में हुई चूक और खुफिया विफलता के बारे में उस समय उठाए गए कई संदेहों को दोहराया है। उन्होंने हाल के साक्षात्कारों में दावा किया है कि उन्हें उस समय इस सब पर चुप रहने को कहा गया था।
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सत्यपाल मलिक ने कहा कि उस फिदायीन हमले जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों की जान चली गई, को टाला जा सकता था, बशर्ते तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जवानों को ले जाने के लिए विमान उपलब्ध कराने के अनुरोध को ठुकराया नहीं होता। मलिक ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे घटना के बारे में जानकारी लेने के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाहर एक ढाबे से फोन किया था और जब मलिक ने कहा कि हमारी चूक के कारण जवानों की जान गई है, तो उनसे कहा गया- ‘तुम अभी चुप रहो’। उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी ऐसी ही सलाह मिली थी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा भारी भरकम चार्जशीट दाखिल किए जाने के बावजूद पुलवामा हमले से जुड़े रहस्य से पूरी तरह पर्दा नहीं उठ सका है। सरकार ने चुप्पी की चादर तान रखी है लेकिन तमाम सवाल हैं जो चीख-चीखकर जवाब मांग रहे हैं।
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ये हैं वे कुछ सवाल जिनके जवाब देश मांग रहा है"
आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार ही नहीं बल्कि अन्य सभी संदिग्ध मुठभेड़ में मारे गए। अगर एक भी जिंदा पकड़ा जाता तो साजिश का पर्दाफाश हो सकता था। दो मुख्य संदिग्ध- कथित रूप से विस्फोटक का इंतजाम करने वाला मुदासिर अहमद खान और सज्जाद भट क्रमशः मार्च और जून, 2019 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए। कारी मुफ्ती यासिर जनवरी, 2020 में एक मुठभेड़ में मारा गया। संदिग्ध कामरान मार्च, 2019 में मार गिराया गया। 29 मार्च, 2019 को मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक मोहम्मद उमर फारूक (24) भी मारा गया। फारूक को मसूद अजहर का भतीजा बताया जाता है। मीडिया को बताया गया कि उसका पिता इब्राहिम अतहर 1999 के आईसी-814 कंधार अपहरण मामले के मुख्य अभियुक्तों में से एक था और अफगानिस्तान में अल कायदा-जैश के संयुक्त प्रशिक्षण शिविर का प्रभारी था।
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इस पुलिस अधिकारी को दो हिज्ब-उल-मुजाहिदीन आतंकवादियों के साथ अपनी कार में यात्रा करते समय गिरफ्तार किया गया था। मजे की बात यह है कि इस अधिकारी के खिलाफ ‘राष्ट्रीय हित में’ आरोप नहीं लगाए गए। हालांकि सत्यपाल मलिक ने हमले में डीएसपी के शामिल होने के संदेह को खारिज कर दिया लेकिन यह नहीं बताया कि क्यों। उन्होंने इतना ही कहा, ‘वह उस तरह के राष्ट्र-विरोधी नहीं थे’ जबकि उस अधिकारी की भूमिका के बारे में कभी भी संतोषजनक जानकारी नहीं दी गई। राहुल गांधी ने तब ट्वीट किया था, ‘#हू वांट्स टेररिस्ट दविंदर साइलेंटेड एंड व्हाई (कौन चाहता है कि दविंदर अपना मुंह नहीं खोले और क्यों)?? ’ एनआईए को डीएसपी की भूमिका की जांच का काम सौंपा गया। राहुल गांधी ने ट्वीट किया था: ‘डीएसपी दविंदर को चुप कराने का सबसे अच्छा तरीका है कि मामले को एनआईए को सौंप दो। एनआईए का नेतृत्व एक अन्य मोदी, वाईके कर रहे हैं जिन्होंने गुजरात दंगों और हरेन पांड्या की हत्या की जांच की थी। वाईके की निगरानी में यह मामला तो खत्म ही है।’
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हमले के चार साल बाद भी इसका जवाब नहीं है। यह माना जाता है कि विस्फोटक पाकिस्तान से लाया गया लेकिन कैसे? मलिक कहते हैं कि ‘यह सामूहिक विफलता थी। 300 किलोग्राम आरडीएक्स से लदी जिस कार का इस्तेमाल सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के लिए किया गया, वह 10-15 दिनों तक कश्मीर में मंडराती रही और किसी को भनक तक नहीं पड़ी।’ लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमा के ज्यादातर हिस्से की निगरानी करने वाली बीएसएफ ने क्या इसकी जांच कराई और अगर कराई तो उसमें क्या निकला या फिर एनआईए को पड़ताल में क्या मिला, यह पब्लिक डोमेन में नहीं है।
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अधिकारियों ने दावा किया था कि आतंकवादी हमले को लेकर कोई विशिष्ट इनपुट नहीं था जबकि मलिक ने जोर देकर कहा कि ऐसे इनपुट थे। ‘फ्रंटलाइन’ पत्रिका ने घटना के एक साल बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें साफ कहा गया है कि ‘2 जनवरी, 2019 और 13 फरवरी, 2019 के बीच कम-से-कम 11 खुफिया इनपुट थे जो एक भयानक ‘किसास (बदला) मिशन’ का संकेत कर रहे थे। इसकी परिणति पुलवामा के लेथपोरा में सीआरपीएफ काफिले पर हमले के रूप में हुई।’
फरवरी, 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला कि एजेंसियों को अंदाजा था कि सुरक्षा बलों के रूट पर आतंकी हमला किया जा सकता है। उनके पास यह भी जानकारी थी कि जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) का आतंकी कमांडर मुदासिर अहमद खान जिसे बाद में पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड के रूप में पहचाना गया, जनवरी, 2019 के अंत में मिदूरा और लाम त्राल गांवों में घूम रहा था। फ्रंटलाइन की रिपोर्ट कहती है कि एजेंसियों को यह भी पता था कि मुदासिर अहमद खान चार विदेशी भाड़े के सैनिकों के साथ ‘आने वाले दिनों में एक बड़े फिदायीन हमले’ को अंजाम देने की फिराक में था।
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‘रास्ते को सैनिटाइज नहीं किया गया था। रास्ते से कम से कम 8-10 संपर्क सड़कें जुड़ी हुई हैं और खास तौर पर जहां से संपर्क सड़कें मुख्य रास्ते से मिल रही थीं, वहां सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाने चाहिए थे जिससे कोई भी उन संपर्क सड़कों से होते हुए काफिले के रूट में न आ सके। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।’
मलिक ने राजनाथ सिंह के अधीन सीआरपीएफ और गृह मंत्रालय की ‘अक्षमता’ और ‘लापरवाही’ को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सीआरपीएफ ने जवानों को ले जाने के लिए विमान का अनुरोध किया था लेकिन मंत्रालय ने इस मांग को खारिज कर दिया। किस आधार पर उन्हें विमान उपलब्ध नहीं कराए गए, यह अब भी रहस्य बना हुआ है।
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आम तौर पर काफिले में सैनिकों के आने-जाने के कार्यक्रम को गुप्त रखा जाता है और हमलों और घात लगाकर किए जाने वाले हमलों की आशंका को कम करने के लिए इस बारे में फैसला अंतिम समय में किया जाता है। लेकिन हमले के तुरंत बाद एक अधिकारी को मीडिया में कहते हुए उद्धृत किया गया, ‘काफिले की आवाजाही गुप्त नहीं थी और काफिले को निशाना बनाने के लिए किसी को भी किसी अग्रिम सूचना या खुफिया इनपुट की जरूरत नहीं थी।’ उस अधिकारी का कहना था, ‘हाईवे पर आए दिन काफिले चलते रहते हैं। हालांकि इस हमले को अंजाम देने के लिए आतंकवादियों ने रेकी की होगी, इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।’
सत्यपाल मलिक का दावा है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाहर एक ढाबे से फोन किया था ताकि घटना की जानकारी ले सकें। सवाल यह उठता है कि वह जानकारी के लिए राज्यपाल को क्यों फोन करेंगे और वह भी ढाबे से? क्या एनएसए ने तुरंत उनसे संपर्क नहीं किया होगा और उन्हें जानकारी नहीं दी होगी? क्या डिस्कवरी चैनल के लिए शूट पर गए पीएम और उनके काफिले के पास सैटेलाइट फोन नहीं थे? क्या हमले के बाद तीन घंटे तक पीएमओ का उनसे संपर्क टूट गया था?
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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दावा किया था कि ‘उन्होंने (मोदी ने) शाम 6:45 बजे तक सर्किट हाउस में चाय और नाश्ता किया। इतना ही नहीं, वह डिस्कवरी चैनल के लोगों के साथ कालागढ़ बांध से ढिकाला तक नाव की सवारी का आनंद ले रहे थे जिस दौरान प्रधानमंत्री को फिल्माया जा रहा था।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सांसद मनीष तिवारी ने 14 फरवरी के दूरदर्शन का एक क्लिप चलाया जिसमें मोदी शाम 5:10 बजे अपने मोबाइल फोन के माध्यम से एक जनसभा को संबोधित करते दिख रहे हैं। क्लिप का जिक्र करते हुए तिवारी ने कहा कि मोदी को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि हमले के दिन दोपहर 3.10 बजे से शाम 5.10 बजे के बीच वह क्या कर रहे थे? मनीष ने कहा, ‘...क्योंकि दूरदर्शन क्लिप से पता चलता है कि वह अपने फोन के माध्यम से एक रैली को संबोधित कर रहे थे। …केवल दो संभावनाएं हैं: एक, हमले के बारे में जानने के बाद भी वह हमेशा की तरह काम करते रहे। दूसरी संभावना तो और भी खतरनाक है- दो घंटे तक प्रधानमंत्री बेखबर रहे।’
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