उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 30 अगस्त को फिरोजाबाद के मेडिकल कॉलेज का दौरा किया। वहां उन्होंने संदिग्ध बुखार के चलते बेड नंबर 55 पर जिंदगी और मौत से जूझ रही 14 वर्षीय कोमल के पिता राजकुमार को बेहतर इलाज का भरोसा दिया था। राजकुमार को लगा कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद चिकित्सा कुछ हो नहीं रही, तो वह कुछ घंटे बाद अपनी बेटी को लेकर बेहतर इलाज की उम्मीद में हाथरस के निजी अस्पताल के लिए निकल गए। लेकिन बेटी ने रास्ते में दम तोड़ दिया।
यह सिर्फ राजकुमार की व्यथा-कथा नहीं है। सरकार कोविड की तीसरी लहर का सामना करने की तैयारी का दावा काफी दिनों से कर रही थी। कई विशेषज्ञों ने आशंका जताई थी कि इस लहर में कम उम्र के बच्चे निशाना हो सकते हैं, तो सरकार ने अस्पतालों में शिशु-बाल चिकित्सा वार्डों पर ध्यान देने और उनमें बेहतर व्यवस्था करने का निर्देश दिया था। इसका कोई असर नहीं हुआ क्योंकि अभी तीसरी लहर तो आई नहीं, पर संदिग्ध बुखार से यूपी में रोजाना कई बच्चों की मौत हो रही है। इस रिपोर्ट को फाइल किए जाने तक एक महीने में 155 बच्चे काल के गाल में समा चुके थे।
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ऐसा भी नहीं है कि यह कथित रहस्यमय बुखार अचानक प्रकट हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जुलाई में ही बुखार से पीड़ित बच्चों से सभी अस्पतालों के बेड फुल हो गए थे। कई बच्चों को सांस की दिक्कत देखते हुए ऑक्सीजन भी लगाना पड़ा था। अभी भी यहां के हालात संभले नहीं हैं। यहां के पत्रकार रबीश बताते हैं कि ‘बीएचयू अस्पताल में ही इमरजेंसी के चिल्ड्रेन वार्ड में एक बेड पर दो-दो बच्चों का इलाज हो रहा है। यहां न केवल वाराणसी, बल्कि आसपास के जिलों के साथ ही बिहार तक के बच्चे भर्ती हैं।’
सबसे अधिक कहर फिरोजाबाद के बच्चों पर बरपा है। यहां 85 बच्चों की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य महकमा कभी इसे रहस्यमय, तो कभी विचित्र बीमारी बता रहा है। वह कभी रैट फीवर (लेप्टोस्पायरोसिस), तो कभी इन्सेफेलाइटिस मानकर इलाज में जुटा है। वैसे, लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज के फिजिओलॉजी विभाग के प्रोफसर डॉ. नरसिंह वर्मा का तो कहना है कि ‘मथुरा, फिरोजाबाद आदि जिलों में फैला बुखार न तो मलेरिया है, न डेंगू। न ही यह कोरोना की थर्ड वेव है। यह वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण है। इसमें मरीज को वायरल बुखार वाली दिक्कतें होती हैं। इस मौसम में संक्रामक बीमारियां बढ़ती हैं। इस बुखार में भी कोविड प्रोटोकाल का पालन करने से बीमारी का प्रसार थमेगा।’
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नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीजी) की पांच सदस्यीय टीम ने फिरोजाबाद में कई दिनों की जांच के बाद मुख्य सचिव को बीते 6 सितंबर को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक, फिरोजाबाद के 50 फीसदी घरों में मच्छर जनित रोगी है। इससे सरकार के उस दस्तक अभियान की पोल खुल रही है जिसमें सफाई, छिड़काव और फॉगिंग के नाम पर करोड़ों खर्च होते हैं। रिपोर्ट के बाद यहां के डीएम चंद्र विजय सिंह. नगर आयुक्त की रिपोर्ट को लेकर नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मुकेश कुमार पर ठीकरा फोड़ रहे हैं।
यहां से बीजेपी विधायक मनीष असीजा स्वीकारते हैं कि ‘फिरोजाबाद में घोर गंदगी और जलभराव है। नगर निगम ने अपना काम ठीक तरह से नहीं किया है।’ अब कुछ डॉक्टरों का तबादला कर दिया गया है जबकि कुछ को निलंबित कर दिया गया है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं कि ‘गंदगी, कूड़ा, जलभराव की अव्यवस्था की वजह से फिरोजाबाद, मथुरा, मैनपुरी, कानपुर और फर्रुखाबाद में बुखार से मातम फैला हुआ है। गोरखपुर में सड़कों पर बह रही विकास की गंगा के चलते शहरी इलाकों में लोग नाव से घरों तक पहुंच रहे हैं। इनमें से कई लोग बुखार की चपेट में हैं। अभी यहां पीक आना बाकी है।’
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वैसे, अस्पतालों की जमीनी स्थिति का अंदाजा सरकार को नहीं हो, इसकी कोई वजह नहीं है। कोरोना की तीसरी लहर को लेकर बीते 27 और 28 अगस्त को सूबे के सभी जिलों में व्यवस्थाओं की पड़ताल को लेकर मॉक ड्रिल हुई। खुद मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में ऑक्सीजन प्लांट से लेकर दवाओं को लेकर खामियां दिखीं। 100 करोड़ से अधिक लागत से बने बड़हल गंज के होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में लबालब पानी होने से चिकित्सक और डमी मरीज कैंपस तक पहुंच ही नहीं सके। कैम्पियरगंज में ऑक्सीजन प्लांट का बेड से कनेक्शन ही नहीं हो सका था।
वाराणसी के अस्पतालों में 400 पीडियॉट्रिक बेड तैयार होने को लेकर मॉक ड्रिल हुआ लेकिन हकीकत में 150 बेड भीअभी तैयार नहीं हैं। खैर, अब जब स्थितियां बिगड़ रही हैं तो गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज प्रशासन रैट फीवर (लेप्टोस्पायरोसिस) की जांच के लिए शासन से किट की मांग कर रहा है। उधर, 11 करोड़ रुपये के बकाये की वजह से वाराणसी के सरकारीअस्पतालों में प्रमुख जांच ठप हैं। वाराणसी के माइक्रोबायोलॉजी लैब में वाराणसी समेत आसपास के जिलों की रिसर्च ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर चेन रिएक्शन (आरटीपीसीआर) जांच बंद है। आईएमएस बीएचयू के निदेशक प्रो.बीआर मित्तल का कहना है कि आरटीपीसीआर जांच के मद के बकाया को लेकर कुलपति को पत्र लिखा गया है।
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