विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने और किसानों की ओर से आंदोलन वापस लिये जाने के बाद कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों को 'भारत भाग्य विधाता' बताया है। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन से केंद्र सरकार की साख गिरी है और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा कृषि और किसानों से जुड़ी सभी मांगों पर सहमति देने के बाद एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को किसानों ने गुरुवार को खत्म करने का ऐलान कर दिया था। संयुक्त किसान मोर्चा ने एक अहम बैठक के बाद ऐलान किया कि वे 11 दिसंबर को दिल्ली के बॉर्डर से चले जायेंगे। इसी घटना के बाद चौथी बार सांसद चुने गए कांग्रेस के नेता दीपेंद्र हुड्डा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि बीजेपी को अपनी दूरदर्शी नीति पर ठहर कर काम करना होगा।
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पेश है बातचीत के कुछ अंश-
सवाल- एक साल के प्रदर्शन और संघर्ष के बाद किसानों ने अपना आंदोलन खत्म कर दिया है, इसे कैसे देखते हैं आप ?
जवाब- ये एक ऐतिहासिक जीत है। आज आप हमारे चेहरे पर एक मुस्कान भी देखेंगे और हमारी आंख में पानी भी देखेंगे। नम आंखों के साथ मुस्कान। यह हमारा भाव है। क्योंकि बहुत कुर्बानियां किसान ने दी। बहुत अग्निपरीक्षा सर्दी-गर्मी, केंद्र की हठधर्मी, बॉर्डर पर कीलें, सब झेली हैं किसानों ने। आज का दिन देखने के लिए बहुत कुछ सहा है। ये एक ऐसे आंदोलन की जीत है। जो शांतिपूर्ण रहा, जो अनुशासित रहा, जबकि चौतरफा हमला इस आंदोलन पर बोला गया। एक ऐसा आंदोलन जो पूरे विश्व भर में चर्चित हुआ। आज उसने किसान की साख हमारे देश में पूरे विश्व के अंदर स्थापित करने काम किया है। हम बारीकी से देखेंगे और उम्मीद करते हैं कि सरकार ने किसानों को गुरुवार को जो लिखित रूप में दिया है। सरकार उनकी बातें जल्द से जल्द माने।
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सवाल- आप किसानों की बातें उठाते रहे हैं एमएसपी का मुद्दा उठाया, आप की तरफ से सरकार से क्या मांग की जाएगी ? जबकि आंदोलन खत्म हो गया है।
जवाब- एक ओर तो हम किसानों को बधाई देते हैं, दूसरी तरफ सरकार ने मौखिक और लिखित रूप से जो कहा है एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने के लिए एक प्रक्रिया समिति बने और कानून का मसौदा तैयार किया जाए। उस पर आगे काम आरंभ हो, साथ ही जो 700 किसान मारे गए हैं उन परिवारों को आर्थिक मदद, रोजगार और मुआवजा दिया जाए। जो हजारों किसानों पर मुकदमे बने हैं, उन मुकदमों को जिस तरीके से सरकार ने कहा, जल्द से जल्द वापस लिया जाए। हम यह आशा और उम्मीद करते हैं कि सरकार इन तीनों बातों को क्रियान्वित करेगी। हम बारीकी से इसको देखेंगे। हम ये मानते हैं कि सरकार ने इस प्रकरण से बहुत बड़ा सबक लिया होगा कि किसान एक ऐसा वर्ग है, जिस से टकराने का किसी को लाभ नहीं। न देश को, न प्रदेश को, न सरकार को और न किसान को। 1 साल में बहुत खामियाजा सबने भुक्ता, इस सरकार की जिद्द का, आज सबसे ज्यादा सरकार ने भुक्ता । उनका 'लॉस ऑफ फेस' हुआ, उनकी कहीं ना कहीं गरिमा और साथ ही लोगों में लोकप्रियता का ग्राफ बहुत ज्यादा गिरा है।
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सवाल- बीजेपी कहती है कि उनकी हमेशा से दूरदर्शी नीति रही है इसी वजह से ये कानून वापस लिया है, कांग्रेस इसी तरीके के आरोप लगाती रहेगी?
जवाब- बीजेपी की दूरदर्शी नीति की वजह से यह कानून लाए गए थे और बीजेपी की ही दूरदर्शी नीति की वजह से यह कानून वापस लिए गए। कहीं ना कहीं मुझे लगता है कि बीजेपी को दूरदर्शिता में एक बड़े नंबर वाले चश्मे की आवश्यकता पड़ेगी। प्लस की भी और माइनस की भी। एक आंख में प्लस की और दूसरी आँख में माइनस की क्योंकि दोनों बातें नहीं हो सकती। किस लिये बीजेपी ये कानून लाई थी ये बताए। मगर एक साल तक बीजेपी ने इस कानून को वापस नहीं लिया और आज देश के अंदर अपने गिरते ग्राफ को देखकर भाजपा ने उनको वापस लिया है, मैं समझता हूं कि आज देशवासियों को पता है।
सवाल- आप कह रहे हैं कि बीजेपी का ग्राफ गिर रहा है! अब क्या मानते हैं आप कि चुनाव में बीजेपी को इससे फायदा होगा या नुकसान होगा और कांग्रेस के लिए यह कैसा रहेगा?
जवाब- बीजेपी, कांग्रेस की बात नहीं थी, यह सरकार बनाम किसान की लड़ाई थी। इसमें कोई राजनीति की बात में नहीं लाना चाहता लेकिन निश्चित तौर पर इससे सरकार का नुकसान तो हुआ ही है। सरकार की साख गिरी है और सरकार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।
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