दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री एम.जे. अकबर के आपराधिक मानहानि मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को बरी कर दिया। रमानी ने अकबर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायतों को रखने का अधिकार है। प्रतिष्ठा का अधिकार गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता है। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने कहा कि महिला को अपनी पसंद के किसी भी मंच पर और दशकों बाद भी अपनी शिकायतें रखने का अधिकार है।
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अदालत ने आगे कहा कि प्रतिष्ठा का अधिकार गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता है। "महिलाओं को मानहानि की शिकायत के बहाने यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।"
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने कार्यस्थल पर प्रणालीगत दुरुपयोग पर भी विचार किया। उन्होंने कहा कि समाज को यौन उत्पीड़न के निहितार्थ को समझने का समय आ गया है।
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रमानी ने 2018 में हैशटैग मीटू आंदोलन के मद्देनजर, अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसके बाद अकबर ने रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था और केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
मुकदमा 2019 में शुरू हुआ और लगभग दो साल तक चला।
2017 में, रमानी ने वोग के लिए एक लेख लिखा, जहां उन्होंने नौकरी के साक्षात्कार के दौरान एक पूर्व बॉस द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के बारे में बताया।
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एक साल बाद, उसने खुलासा किया कि लेख में उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति एमजे अकबर था।
अकबर ने अदालत को बताया कि रमानी के आरोप काल्पनिक थे और इससे उनकी प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंची। दूसरी ओर, प्रिया रमानी ने इन दावों का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने ये आरोप सार्वजनिक हित में लगाए हैं।
मामले में यह निर्णय महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इसी तरह के समान मामलों के लिए एक मिसाल कायम करता है, जो मीटू आंदोलन से उत्पन्न हुआ है।
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