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पंजाब में सदियों बाद फिर चला ‘गेहूं दान’ का महाअभियान, गरीबों के लंगर के लिए लोगों ने भर दिए गुरुद्वारे

एसजीपीसी प्रधान गोविंद सिंह लोगोंवाल ने बताया कि किसानों और आम लोगों ने दिल खोलकर गेहूं दान किया है और अब तमाम गुरुद्वारों में पूरे साल निर्बाध लंगर का बंदोबस्त हो गया है। उन्होंने कहा कि कोरोना ने भुखमरी के हालात पैदा कर दिए हैं और पंजाब में भी लाखों लोगों को प्रतिदिन मिलने वाले लंगर का ही आसरा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

पंजाब में प्रथम सिख गुरु श्री गुरु नानक देव जी के काल और उनके आदेश से शुरू हुई एक परंपरा फिर से शुरू हुई है। यह परंपरा है, 'गेहूं दान महाअभियान।' सदियों बाद राज्य मेंं इस अभियान का बकायदा एक बार फिर आगाज हो गया है। लंगर चलाने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से की गई गेहूं दान की अपील पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है और लोग बढ़चढ़ कर दान दे रहे हैं।

दरअसल 'लंगर' प्रथा सिख लोकाचार की सबसे बड़ी खसूसियतों में से एक है। कोरोना संकट के इश दौर में भी देश-विदेश के तमाम गुरुद्वारे जरूरतमंदों के लिए दिन-रात लंगर सेवा चला रहे हैं। इन लंगरों के लिए रसद-राशन श्रद्धालुओं द्वारा गुरुघरों की 'गुल्लकों' में डाली जाने वाली 'भेंट' (दान राशि) से खरीदा जाता है। साल 1919 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के गठन के बाद से यह नियम लागू है, जो बदस्तूर जारी है।

लेकिन कोरोना वायरस ने जब समूची दुनिया पर कहर बरपाया तो जिंदगी का हर पहलू संकट में आ गया। इसका नागवार असर 'लंगर' पर भी पड़ा। इसलिए कि लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते श्रद्धालुओं का गुरुद्वारों में जाना बंद हो गया और गुल्लक की दान राशि में एकदम पूरी तरह कटौती हो गई। यानी लंगर की मद पर आकस्मिक रोक लग गई। गुरुद्वारों का संचालन करने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अचानक जबरदस्त आर्थिक अभाव में आ गई। हालांकि उसका सालाना बजट खरबों रुपए का है।

बेशक गुरुद्वारों में दान आना बंद हो गया है, लेकिन वहां लंगर बनना और जरूरतमंदों तक पहुंचाना एक दिन के लिए भी नहीं बंद हुआ। आर्थिक संकट के मद्देनजर और लंगर बंद न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए एसजीपीसी ने अपने गठन के बाद पहली बार गुहार लगाई कि लोग लंगर के लिए ‘गेहूं दान’ करें। यह अपील तब जारी की गई जब गेहूं की फसल कट कर आ गई। इस गुहार को जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ है।

एसजीपीसी के एक पदाधिकारी ने बताया कि एक हफ्ते के दरमियान ही तमाम गुरुद्वारों के लंगर हॉल और गोदाम लकालक भर गए हैं। एसजीपीसी प्रधान गोविंद सिंह लोगोंवाल के मुताबिक, “किसानों और आम लोगों ने दिल खोलकर गेहूं दान किया है और अब तमाम गुरुद्वारा परिसरों में पूरा साल निर्बाध लंगर चलने का बंदोबस्त हो गया है। कोरोना वायरस ने भुखमरी के हालात पैदा कर दिए हैं और पंजाब में भी लाखों लोगों को प्रतिदिन मिलने वाले लंगर का ही आसरा है। अब यह गेहूं के महादान के जरिए संभव हो रहा है।"

एसजीपीसी प्रधान पुष्टि करते हैं कि पहली बार गेहूं दान करने की अपील की गई है। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर, तख्त साहिब श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, दरबार साहिब, मुक्तसर, लुधियाना स्थित गुरुद्वारा श्री आलमगीर साहिब में 'गेहूं दान महाअभियान' के मुख्य भंडार केंद्र बनाए गए हैं। इन केंद्रों से पंजाब और दिल्ली सहित शेष राज्यों में लंगर के लिए सामग्री जा रही है। 24 मई की सुबह तलवंडी साबो से गेहूं से लदे कुछ ट्रकों को रवाना करते वक्त श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अरदास की और हरी झंडी दिखाई।

ज्ञानी हरप्रीत सिंह कहते हैं, "किसानों, ग्रामीणों और आम लोगों ने गेहूं दान अभियान में दिल खोलकर शिरकत की है। महज अमृतसर के श्री दरबार साहिब में 35 हजार क्विंटल गेहूं प्रतिवर्ष लंगर में लगता है और अब कोरोना के संकट काल में इसमें बेइंतहा इजाफा हुआ है। तख्त श्री दमदमा साहिब में 1500 क्विंटल, बठिंडा के तलवंडी साबो गुरुद्वारे में 1000 क्विंटल गेहूं की खपत होती है। अब गुरुद्वारों को पूरा साल गेहूं खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। संक्रमण के खौफ में संगत गुरुद्वारों में नहीं आ रही, लेकिन वहां जरूरतमंदों के लिए लंगर नियमित रूप से तैयार करके वितरित किया जा रहा है।"

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा संचालित तमाम गुरुद्वारे एक साल के लिए आत्मनिर्भर हो गए हैं। जबकि छोटे गुरुद्वारों को भी किसान खुलकर गेहूं दान दे रहे हैं। आलम यह है कि ग्रामीण हलकों में हर गांव से बारी-बारी गेहूं जमा किया जा रहा है। गुरुद्वारों से लाउडस्पीकर के जरिए ‘गेहूं दान’ की अपील हो रही है। एक वाहन खड़ा कर दिया जाता है और उसमें लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार गेहूं डाल देते हैं।

इतिहास के जानकारों के अनुसार कई सदियां पहले आए किसी संकट के समय इस तरह से 'गेहूं दान' की गुहार लगाकर गेहूं इकट्ठा किया जाता था। तब बैल गाड़ियों आदि का इस्तेमाल होता था। पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका कहते हैं, "संकट ने परंपरा की वापसी करवा दी है।"

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