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DU में स्थायी के बजाए गेस्ट टीचर्स रखने के आदेश पर भड़के शिक्षक, विश्वविद्यालय को डिसमेंटल करने का प्रयास बताया

विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 25 जनवरी को इस बाबत एक पत्र जारी किया गया है। इसका विरोध कर रहे शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय में छात्रों को पूर्णकालिक शिक्षकों की आवश्यकता है। स्थाई शिक्षक न होने से विश्वविद्यालय और छात्रों दोनों का नुकसान हो रहा है।

फोटोः IANS
फोटोः IANS 

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई फैकल्टी और स्कॉलर शिक्षा मंत्रालय का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। इसका कारण यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने विभिन्न कॉलेजों के प्रिंसिपल से कहा है कि कॉलेजों में स्वीकृत और रिक्त शिक्षण पदों पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। शिक्षक संगठनों ने प्रशासन के इस निर्देश को पूरी तरह से अवैध और अस्वीकार्य बताया है। इस निर्णय से नाराज शिक्षकों का कहना है कि यह दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन की एक और खतरनाक पहल है। डीयू के कॉलेजों में स्वीकृत पदों के विरुद्ध एडहॉक नियुक्ति व्यवस्था अभी भी कायम है। जब तक स्थायी न हो, तो एडहॉक नियुक्ति की जाती रही है।

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डीयू एकेडमिक काउंसिल के सदस्य रहे राजधानी कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर देव कुमार ने कहा कि अब विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से एडहॉक के बदले गेस्ट टीचर्स रखने का निर्देश कॉलेज प्राचार्यों को दिया गया है। यानी एडहॉक के बदले गेस्ट टीचर। एडहॉक टीचर को यूजीसी का पूर्ण वेतनमान दिया जाता है जबकि गेस्ट को प्रति कक्षा 1500 रुपया दिया जाता है। यानी गेस्ट टीचर को महीने में 25-30 हजार रुपए से अधिक नहीं दिया जाता।

प्रोफेसर देव कुमार ने कहा कि यह एक तरह से गेस्ट टीचर्स के बहाने वेतन कटौती की ओर एक और कदम है। दूसरी ओर गेस्ट टीचर उदासीन हो जाता है। वह विद्यार्थी को उतना ही समय देता है जितने घंटे की उसकी कक्षा निर्धारित की जाती है। इससे शिक्षण की गुणवत्ता को भारी नुकसान होगा।

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दिल्ली विश्ववविद्यालय के शिक्षक संगठन डीटीएफ ने भी इस पहल कदमी का विरोध किया है। शिक्षक संगठन का कहना है कि यह देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालय 'डीयू' को एक तरह से डिसमेंटल करने का प्रयास है। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब का कहना है कि कॉलेजों में रिक्त एवं स्वीकृत शिक्षण पदों को अतिथि शिक्षण पदों में परिवर्तित करने के किसी भी प्रयास को सिरे से खारिज कर दिया जाना चाहिए।

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प्रोफेसर आभा देव ने कहा कि शिक्षकों की पूर्णकालिक नौकरी छीनना निंदनीय है। 4 वर्षीय अंडरग्रैजुएट पाठ्यक्रम और एबीसी नियमों के कार्यान्वयन की तैयारी के इस प्रयास का डूटा द्वारा विरोध किया जाना चाहिए। डूटा को सभी नियुक्तियों में सरकार के कानूनों के अनुसार आरक्षण का सख्ती से पालन करने के लिए संघर्ष का नेतृत्व करना चाहिए।

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गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 25 जनवरी को इस बाबत एक पत्र जारी किया गया है। इसी पत्र के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों को पूर्णकालिक शिक्षकों की आवश्यकता है। स्थाई शिक्षक न होने से विश्वविद्यालय एवं छात्रों दोनों का ही नुकसान हो रहा है।

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