अफगानिस्तान में घरों में इन दिनों एक ही शब्द मायने रख रहा है- खौफ। अफगानिस्तान हो या वहां से बाहर, आप किसी भी अफगान से पांच मिनट भी बात करें, तो वह कम-से-कम आधा दर्जन बार ‘डर’ और ‘भयभीत’ शब्द जरूर ही बोलेगा। जो बाहर रहे हैं, वे वहां रहे अपने परिवार वालों को लेकर ‘खौफजदा’ हैं।
लोग किसी भी तरह तालिबान के ‘कब्जे वाले’ अफगानिस्तान से किसी भी तरह निकल भागना चाह रहे हैं। कुछ के पास वीसा और एयर टिकट भी हैं लेकिन वे नहीं निकल पा रहे क्योंकि वहां से रेगुलर फ्लाइट नहीं हैं। तब भी वे कुछ तो भाग्यशाली हैं क्योंकि कई के पास तो वीसा और पासपोर्ट भी नहीं हैं- सरकारी कार्यालय बंद हैं और यात्रा के लिए दस्तावेज इकट्ठा करना तो लगभग असंभव ही है। लोग इस उम्मीद में अपने दोस्तों, परिचितों को मैसेज भेज रहे हैं कि शायद कहीं से कोई तिनका ही मिल जाए!
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भारत के एक विश्वविद्यालय में दाखिला पा चुकी काबुल की एक युवती खातिरा ने इस संवाददाता से फोन पर कहा, ‘मेरे पास वीसा और टिकट हैं। मैं एयरपोर्ट गई थी लेकिन वहां के हालात देखकर लौट आई। मेरा भारतीय वीसा सितंबर तक वैध है। अगर तब तक मुझे फ्लाइट न मिली, तो मैं नहीं जानती कि क्या होगा।’ उसने बताया कि काबुल में अधिकतर दुकानें बंद हैं और शहर के कई हिस्सों में बत्ती गुल है। सरकारी कार्यालय बंद हैं, इसलिए लोग नहीं जानते कि मदद के लिए किसे फोन करें। सच्चाई तो यह है कि इस वक्त यहां कोई सरकार नहीं है। उसने कहा, ‘सिर्फ सुपर मार्केट खुले हुए हैं और जिनके पास पैसे हैं, सिर्फ वही खाने को कुछ खरीद सकते हैं। मैं नहीं जानती कि गरीब लोग कैसे काम चला रहे होंगे।’
जो अफगानिस्तान में हैं, वही नहीं; जो बाहर हैं, वे भी तालिबान को लेकर भय में हैं। इस संवाददाता ने जिन अफगानों से बात की, उनमें से अधिकतर ने अपनी पहचान उजागर न होने देने का अनुरोध किया। अभी अमेरिका में रह रहे पत्रकार अरबाब (बदला हुआ नाम) ने कहा, ‘मेरे कई घरवाले काबुल में फंसे हुए हैं। मैं उनके लिए वीसा का इंतजाम करने में लगा हूं। किसी भी देश का। मैंने भारत में रह रहे अपने दोस्तों को भी एसओएस भेजा है।
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लेकिन लोग तालिबान से खौफजदा क्यों हैं जबकि वे ‘सुधरे जाने’ और लोगों के साथ बेहतर व्यवहार की बातें कर रहे हैं? वे यह भी कह रहे हैं कि पुरानी बातों पर वे मिट्टी डाल रहे हैं। अरबाब का कहना है कि ‘तालिबान नेता तो अच्छी-अच्छी बातें करते हैं लेकिन उनके मातहत लोग उसका पूरी तरह पालन नहीं करते। उनमें से अधिकतर पहाड़ी इलाकों के हैं जो युद्ध-जर्जर मंजर में ही पले-बढ़े हैं। वे रूखे हैं, उनकी विचारधारा कट्टर है और काबुल या अन्य शहरों में रहने वाले लोगों से बिल्कुल ही अलग हैं। अपने परिवारों की सुरक्षा के मद्देनजर हम इन लोगों पर यकीन नहीं कर सकते।’
लेकिन ये भी तो खबरें हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन बढ़ रहा है। इस पर अरबाब कहते हैं, ‘हो सकता है कि काफी सारे लोग, खास तौर से विभिन्न राज्यों में कुछ लोग उनका समर्थन करते हों। कुछ लोग चाह सकते हैं कि शरिया कानून लागू कर दिया जाए। लेकिन काबुल में रह रहे शिक्षित लोग, जो लोग दूसरे देशों में रह चुके हैं, वैसे लोग ऐसे किसी सख्त कानून को नहीं स्वीकार कर सकते जो किसी धार्मिक विचारधारा में लिपटी हुई हो।’
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तालिबान जिस तेजी से काबुल पहुंच गए, उससे यहां के लोगों के हाथ-पांव फूले हुए हैं। पढ़ी-लिखी और काम करने वाली औरतें सबसे अधिक खौफ में हैं क्योंकि तालिबान की पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था में वे सबसे ज्यादा निशाने पर हैं। नई दिल्ली में रह रहीं अफगान फिल्म मेकर शाजिया कहती हैं कि ‘यह दोजख जैसा है। हम जिंदा तो हैं लेकिन असली कयामत आने से पहले ही कयामत आ गई है। चारों ओर निराशा है। मेरा परिवार वहां से निकलने की कोशिश कर रहा था। किसी को अंदाजा नहीं था कि चीजें इतनी तेजी और इस तरह बदल जाएंगी। अब वे लोग आए हैं और मैं अपने परिवार को लेकर चिंता में हूं।’ वह चिंता क्या है? शाजिया ने कहा, ‘इन लोगों का जब 1996-2001 में शासन था, तब के बारे में हम लोगों ने बहुत कुछ पढ़ा-सुना है। अगर वैसा फिर होता है, तो उसके बारे में सोचकर ही कंपकपी छूट जा रही है।’ उन्होंने कहा, ‘अभी 15 दिनों पहले ही बदख्शान में तालिबानियों ने एक परिवार पर अपनी 12 साल की बच्ची की शादी एक तालिबानी से करने का दबाव डाला। उनके लिए 12 साल से ज्यादा उम्र की बच्ची किसी बुड्ढे के साथ शादी के लिए मुनासिब है। यह घिनौना और डरावना है।’
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खतीरा बताती हैं कि ‘जिस दिन तालिबानी काबुल में घुसे, मैं कुछ काम से घर से बाहर निकली थी। सड़कों पर मिले पुलिस वाले और सैनिक भीअपनी जान को लेकर डरे हुए थे। उनमें से तो कुछ आम लोगों से सादे कपड़े मांग रहे थे ताकि उसे पहन लें और उनकी पहचान उजागर न हो।’ वह कहती हैं कि ‘तालिबान लड़ाकों के लंबे-लंबे बाल हैं और वे खूंखार दिखते हैं। आप उन पर नजर भी नहीं टिका सकते। हमारे सैनिक और पुलिस वाले साफ-सुथरे तो दिखते थे। ये तो खौफनाक हैं।’
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