दलितों-वंचितों के लिए जो लोग आवाज उठा रहे हैं, उन्हें प्रताड़ित करने और जेल में बंद रखने की रणनीति के तहत 5 कार्यकर्ताओं को भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया गया है। इसमें भी खासतौर से नागपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता और दलित समुदाय के प्रतिनिधि सुरेंद्र गाडलिंग को जिस तरह से पकड़ा गया और अदालत में पेश किए बिना मजिस्ट्रेट के घर पर पेश कर पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया, उसने वकीलों में गहरा असंतोष-आक्रोश पैदा किया है। उन्हें अविलंब रिहा करने की मांग को लेकर आज दिल्ली में इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स (आईएपीएल) ने संवाददाता सम्मेलन किया। उधर, नागपुर में वकीलों द्वारा भी इस गिरफ्तारी पर आक्रोश व्यक्त करने की खबरें हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता और आईएपीएल की उपाध्यक्ष सुधा भारद्वाज ने कहा कि केंद्र सरकार के इशारे पर ये गिरफ्तारियां की गई हैं, ताकि खौफ का माहौल बनाया जाए। वकील सुरेंद्र गाडलिंग, जो लंबे समय से नागपुर में दलितों और वंचितों के ऊपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं, जिन्होंने खैरलांजी से लेकर साईंबाबा के केस को पूरी बहादुरी से लड़ा, उन्हें गिरफ्तार करके दलित समुदाय के साथ-साथ न्याय के लिए लड़ने वाले तबके को यह संदेश दिया गया है कि अगर कोई सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगा तो उसका यही हश्र होगा। सुधा ने बताया कि अधिवक्ता गाडलिंग महाराष्ट्र के लोकल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट में पिछले 25 सालों से क्रिमिनल और सिविल मामलों को लड़ रहे हैं। उनकी पूरे इलाके में बहुत साख है और इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया गया है। सिर्फ वही नहीं, बाकी जो लोग गिरफ्तार किए गए हैं उनका भी मामला ऐसा ही है। प्रो. शोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष हैं और बेहद प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी है। सुधीर धावले मराठी दलित कवि हैं और विद्रोही पत्रिका के संपादक हैं और दमन की तमाम घटनाओं के खिलाफ मुखर आवाज है। रोमा विल्सन कैदियों के अधिकारों को लेकर लंबे समय से सक्रिय हैं। महेश राउत विस्थापन के खिलाफ उठी आवाजों में अलग जगह रखते हैं। इन तमाम लोगों को भीमा कोरेगांव के मामले से जोड़ कर गिरफ्तार करना एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।
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सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील नित्या ने कहा कि चुनावों से पहले केंद्र और राज्य सरकार तमाम आंदोलनों को दमन कर एक संदेश देना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी विचारधारा में विश्वास रखना अपराध नहीं है, फिर भी सीधे-सीधे वकील को ही गिरफ्तार किया गया है। इस मौके पर पीयूसीएल के रविकिरन जैन, प्रगतिशील महिला संगठन की पूनम और वरिष्ठ अधिवक्ता पीके पंचोली ने भी इस मांग का समर्थन किया कि सुरेंद्र गाडलिंग को तत्काल रिहा किया जाए।
इस बाबत सांसद और सीपीआई के नेता डी राजा ने बताया कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की यह नई प्रवृत्ति है कि तमाम आंदोलनों को बदनाम करने के लिए या तो उसे असामाजिक आंदोलन या फिर माओवादी-नक्सली आंदोलन घोषित करती है। दरअसल, मोदी सरकार और महाराष्ट्र सरकार दलितों के उभार से डर गई है और अब बदले की कार्रवाई पर उतर आई है।
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