देश की जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो अलग से एक जमानत कानून लाने पर विचार करे। अदालत ने कहा कि लोकतंत्र पुलिस तंत्र जैसा नहीं लगना चाहिए क्योंकि दोनों धारणात्मक तौर पर ही एक दूसरे के विरोधी हैं।
अदालत ने बताया कि गिरफ्तारी अपने आप में एक कठोर कदम है जिसका कम ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पुलिस अफसर को सिर्फ इसलिए किसी को गिरफ्तार कर लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए। गिरफ्तारी की कुछ शर्तें होती हैं और उनका पूरा होना आवश्यक है।
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अदालत ने आम लोगों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में अदालतों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि अदालतें इस स्वतंत्रता की "लोकपाल" हैं और उसका "पूरे उत्साह से" संरक्षण करना उनका "पावन कर्तव्य" है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि देश की जेलों में कुल कैदियों में से कम से कम दो तिहाई विचाराधीन कैदी हैं, जिनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनकी गिरफ्तारी की कोई जरूरत नहीं थी। अदालत ने यह भी कहा कि ये ना सिर्फ गरीब और अनपढ़ हैं, बल्कि इनमें महिलाएं भी हैं।
अदालत ने कहा कि भारत की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 और 41ए में गिरफ्तारी की पूरी प्रक्रिया बताई गई है और पुलिस अफसरों को इन धाराओं का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा कि वो ऐसे अफसरों के खिलाफ कड़ी करवाई करें जो इन धाराओं का अनुपालन किए बिना गिरफ्तारी करते हैं. कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी कहा कि इन धाराओं के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए वो स्थायी आदेश जारी करें।
अदालत ने कहा कि ब्रिटेन समेत कुछ देशों में जमानत के लिए अलग से कानून है। अदालत ने केंद्र सरकार से उसी तर्ज पर एक कानून भारत में भी लाने पर विचार करने के लिए कहा।
इसके अलावा अदालत ने उच्च अदालतों से कहा कि वो अपने अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे विचाराधीन कैदियों का पता लगाएं जिनकी गिरफ्तारी में सीआरपीसी में दी गई शर्तों का पालन नहीं हुआ और उनकी रिहाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और उच्च अदालतों को निर्देश दिया कि सभी दिशानिर्देशों पर चार महीनों के अंदर हलफनामा या स्थिति रिपोर्ट दायर करें।
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सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों से कहा कि वो ऐसे अफसरों के खिलाफ कड़ी करवाई करें जो इन धाराओं का अनुपालन किए बिना गिरफ्तारी करते हैं. कोर्ट ने राज्य सरकारों से भी कहा कि इन धाराओं के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए वो स्थायी आदेश जारी करें।
अदालत ने कहा कि ब्रिटेन समेत कुछ देशों में जमानत के लिए अलग से कानून है। अदालत ने केंद्र सरकार से उसी तर्ज पर एक कानून भारत में भी लाने पर विचार करने के लिए कहा।
इसके अलावा अदालत ने उच्च अदालतों से कहा कि वो अपने अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे विचाराधीन कैदियों का पता लगाएं जिनकी गिरफ्तारी में सीआरपीसी में दी गई शर्तों का पालन नहीं हुआ और उनकी रिहाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और उच्च अदालतों को निर्देश दिया कि सभी दिशानिर्देशों पर चार महीनों के अंदर हलफनामा या स्थिति रिपोर्ट दायर करें।
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सर्वोच्च अदालत की यह टिप्पणी और ये निर्देश ऐसे समय में आए हैं जब देश के कई कोनों में गिरफ्तारी के कई मामलों का विरोध हो रहा है। फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज' के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने उनके एक ट्वीट के खिलाफ शिकायत आने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उनके खिलाफ विदेशी चंदा लेने, सबूत मिटाने और आपराधिक षडयंत्र करने जैसे आरोप लगा दिए। उसके बाद जुबैर के खिलाफ उनके एक और ट्वीट को उत्तर प्रदेश में एक अलग मामला दायर दिया गया। इस मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली हुई है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में भारत की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे, जिनमें 3,71,848 यानी करीब 76 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे। इनमें से करीब 68 प्रतिशत या तो अशिक्षित थे या स्कूल छोड़ चुके थे।
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