सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार से लोकपाल की नियुक्ति के संभावित नामों का सुझाव देने के लिए एक खोज समिति गठित करने के लिए उठाए गए सभी आवश्यक कदमों के संबंध में 'सभी विवरण' सौंपने के लिए एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति आर. भानुमती और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र द्वारा दाखिल हलफनामे को 'अपर्याप्त' बताते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को चार सप्ताह में सभी विवरणों के साथ एक नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
सुनवाई के प्रारंभ में महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि चयन समिति ने बैठक में खोज समिति गठित करने का फैसला किया और अगली बैठक में वे खोज समिति के लिए नाम सुझाएंगे।
वेणुगोपाल ने कहा कि प्रक्रिया में समय लगेगा, क्योंकि खोज समिति में शामिल किए जाने वालों को कानून, वित्त, भ्रष्टाचार से लड़ने और अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि खोज समिति के नामों को अंतिम रूप देने के बाद खुफिया ब्यूरो द्वारा उसकी समीक्षा की जाएगी और यह एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।
उन्होंने अदालत से कहा कि खोज समिति के 50 प्रतिशत सदस्यों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों से संबंधित होना होगा।
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अदालत में एनजीओ 'कॉमन कॉज' की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए लोकपाल की नियुक्ति करने के लिए विधायी जनादेश को पूरा करने में केंद्र द्वारा कदम पीछे खींचने का आरोप लगाते हुए अदालत को बताया कि पिछले साढ़े चार सालों में प्रतिष्ठित न्यायविद श्रेणी में चयन समिति के पास केवल वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी हैं।
उन्होंने कहा कि अदालत के पास उपलब्ध विकल्प में या तो उन लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए, जो लोग लोकपाल की नियुक्ति को लटकाने के लिए जिम्मेदार हैं, या फिर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक खोज समिति नियुक्ति करे और उसके सुझाए गए नामों में से एक लोकपाल नियुक्त करे।
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