साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और बेटी समेत उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की सजा खत्म होने से पहले रिहाई की इजाजत देने वाले गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार 8 जनवरी को अपना फैसला सुनाएगा।
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शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की विशेष पीठ 8 जनवरी को मामले में अपना फैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2023 में 15 अगस्त, 2022 को राज्य की छूट नीति के तहत 11 दोषियों को रिहा करने की गुजरात सरकार की कार्रवाई की वैधता के सवाल पर सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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सुनवाई के दौरान केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने सजा में छूट के आदेश के खिलाफ सीपीआई-एम नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि जब पीड़िता ने स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाया है, तो दूसरों को इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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साथ ही, दोषियों ने दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार है और इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती। दूसरी ओर, एक जनहित याचिका वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी थी कि छूट के आदेश 'कानून की दृष्टि से खराब' हैं और 2002 के दंगों के दौरान बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया "मानवता के खिलाफ अपराध" था। जयसिंह ने कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले में देश की अंतरात्मा की आवाज झलकेगी।
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