मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों विवादित कृषि कानूनों पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने इसके साथ ही अब इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी में कुल चार लोग शामिल होंगे, जिनमें भारतीय किसान यूनियन के जितेंद्र सिंह मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी (कृषि विशेषज्ञ) और अनिल शेतकारी शामिल हैं।
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इससे पहले सुनवाई के दौरान कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले वकील एमएल शर्मा ने अदालत को बताया था कि किसानों ने कहा है कि वे अदालत द्वारा गठित किसी भी समिति के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे। किसानों का कहना है कि ये रद्द ही होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा था कि हम कानूनों की वैधता के बारे में चिंतित हैं और विरोध से प्रभावित नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के बारे में भी। सीजेआई ने कहा कि हम अपने पास मौजूद शक्तियों के अनुसार, समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि शक्तियों में से एक है कि हम कानून को निलंबित करें और एक समिति बनाएं।
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सीजेआई ने आगे कहा, “यह समिति हमारे लिए होगी। आप सभी लोग जो इस मुद्दे को हल करने की उम्मीद कर रहे हैं। इस समिति के समक्ष जाएंगे। यह एक आदेश पारित नहीं करेगा या आपको दंडित नहीं करेगा, यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।”
सीजेआई ने आगे कहा, “यह समिति हमारे लिए होगी। आप सभी लोग जो इस मुद्दे को हल करने की उम्मीद कर रहे हैं। इस समिति के समक्ष जाएंगे। यह एक आदेश पारित नहीं करेगा या आपको दंडित नहीं करेगा, यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। समिति इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हम कानूनों को निलंबित करने की योजना बना रहे हैं लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं।” समिति इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हम कानूनों को निलंबित करने की योजना बना रहे हैं लेकिन अनिश्चित काल के लिए नहीं।”
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किसानों के वकील एमएल शर्मा ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा कि किसान कह रहे हैं कि कई लोग चर्चा के लिए आए थे, लेकिन मुख्य व्यक्ति, प्रधानमंत्री नहीं आए। इस पर सीजेआई ने कहा कि हम प्रधानमंत्री को जाने के लिए नहीं कह सकते हैं, वह इस मामले में पक्षकार नहीं हैं।
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इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के उस आवेदन पर नोटिस जारी किया जिसमें गणतंत्र दिवस पर किसानों के विरोध में प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने की मांग की गई थी।
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याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कानूनों के कार्यान्वयन को राजनीतिक जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे विधानों पर व्यक्त चिंताओं की एक गंभीर परीक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए।
किसानों को खालिस्तानी कहने पर सीजेआई ने कहा कि हमारे सामने एक आवेदन है जो कहता है कि एक प्रतिबंधित संगठन है जो इस विरोध प्रदर्शन को मदद कर रहा है। क्या अटॉर्नी जनरल इसे स्वीकार करते हैं? इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हमने कहा है कि खालिस्तानियों ने विरोध प्रदर्शनों में घुसपैठ की है।
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