सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त करने के खिलाफ अखिल भारतीय दिशा-निर्देश बनाने पर विचार किया और संबंधित पक्षों को दो सप्ताह के भीतर अपने सुझाव रखने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अनधिकृत निर्माण को भी “कानून के अनुसार” ध्वस्त किया जाना चाहिए और राज्य के अधिकारी सजा के तौर पर आरोपी की संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकते।
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पीठ ने टिप्पणी की कि न केवल आरोपी का, बल्कि दोषी के घर का भी ऐसा हश्र नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसका इरादा अनधिकृत संरचनाओं को संरक्षण न देने का है। पीठ में न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन भी शामिल हैं।
मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पक्षकारों से दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव रिकॉर्ड पर रखने को कहा। इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए केंद्र के दूसरे सबसे बड़े विधि अधिकारी सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि किसी अचल संपत्ति को सिर्फ इसलिए नहीं ध्वस्त किया जाना चाहिए क्योंकि उसके मालिक/कब्जाधारी पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप है।
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एसजी मेहता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में राज्य प्राधिकारियों ने उल्लंघनकर्ताओं द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं देने के बाद नगरपालिका कानून के अनुसार कार्रवाई की। शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि अप्रैल 2022 में दंगों के तुरंत बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी में कई लोगों के घरों को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया था कि उन्होंने दंगे भड़काए थे।
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इसी लंबित मामले में विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ कई आवेदन दायर किए गए थे। याचिका में कहा गया है कि अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते और इस तरह की तोड़फोड़ से आवास के अधिकार का उल्लंघन होता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है।
इसके अलावा याचिका में ध्वस्त किए गए मकानों के पुनर्निर्माण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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