अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर में मंदिर निर्माण शुरू होने पर वहां मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने और पुरातत्व विभाग की निगरानी में नए सिरे से खुदाई करवाने की मांग वाली याचिकाओं को आज सुप्रीम कोर्ट ने अगंभीर करार देते हुए खारिज कर दिया। याचिका से नाराज शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं में से दो पर एक-एक लाख रुपये का हर्जाना भी लगा दिया।
सम्यक विश्व संघ नाम की संस्था और डॉ अंबेडकर बोधिकुंज फाउंडेशन के कुछ सदस्यों ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए जमीन समतल किए जाने के दौरान मिली कलाकृतियों के बौद्ध संस्कृति से जुड़े होने का दावा करते हुए यह याचिका दाखिल की थी। याचिकाओं में कहा गया था कि 11 मई को जगह समतल करने के दौरान कई पुरानी कलाकृतियां मिली हैं, जो बौद्ध धर्म से जुड़ी मालूम पड़ती हैं।
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याचिका में आगे कहा गया कि रामजन्मभूमि ट्रस्ट ने भी स्वीकार किया है कि क्षेत्र में कई कलाकृतियां हैं, जिसे संरक्षित करने की जरूरत है। इसलिए, उन सबको संरक्षित करने के साथ ही उन पर विस्तृत शोध की जरूरत है, ताकि पता चले कि उनका इतिहास क्या है। इसके लिए जगह की नए सिरे से खुदाई के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को आदेश दिया जाए और खुदाई के दौरान याचिका दायर करने वाली संस्था के सदस्यों को भी वहां मौजूद रहने की अनुमति दी जाए।
मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर हैरानी जताई और कहा कि याचिका के पीछे कोई ठोस आधार मालूम नहीं पड़ता है। इस पर याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि हम तो वहां मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं। कोर्ट को इस पर आदेश देना चाहिए।
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इस पर भड़कते हुए न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने याचिका की सीबीआई जांच करवाने की चेतावनी देते हुए कहा कि याचिका देख कर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुक्ति पाने के लिए ऐसी याचिका की आड़ ली जा रही है। याचिकाकर्ताओं को फटकारते हुए पीठ ने कहा कि आप कहना चाह रहे हैं कि अयोध्या मामले में अदालत के फैसले को कोई नहीं मान रहा है और कोई इसपर कार्रवाई नहीं करेगा। कोर्ट ने अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर भी सवाल किया और कहा कि यह एक बेहद अगंभीर याचिका है और सुनवाई के लायक नहीं है।
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इस दौरान सुनवाई में केंद्र की तरफ से मौजूद सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि कोर्ट को इस तरह की याचिका दायर करने के लिए हर्जाना वसूलना चाहिए। इस पर फौरन सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने दोनों याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का हर्जाना लगा दिया और 1 महीने के भीतर इसका भुगतान करने का आदेश दिया।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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