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मोदी सरकार को बड़ा झटका, चुनावी बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, बताया असंवैधानिक

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के साल 2017 के फैसले को पलटते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक माना है। SC ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है। सीजेआई ने कहा यह सर्वसम्मत फैसला है। भारत सरकार साल 2017 में ये कानून लेकर आई थी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि दो मत है लेकिन दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं।

कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में लोगों को जानने का अधिकार है। कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए।

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सीजेआई ने कहा है कि क्या 19(1) के तहत सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस अदालत ने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में जानकारी के अधिकार को मान्यता दी और यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सहभागी लोकतंत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाने तक जाता है।

सीजेआई ने कहा कि क्या आरटीआई के तहत राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग भी आएगी? ये सवाल हमारे समक्ष था? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है। सीजेआई ने कहा कि हमारी राय है कि कम से कम इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के अन्य माध्यमों से योगदान अन्य प्रतिबंधात्मक साधन हैं। इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है।

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फैसला सुनाते हुए CJI ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी उजागर न करना मकसद के विपरीत है। एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक की जानकारी सार्वजानिक करनी होगी। एसबीआई को ये जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। EC इस जानकारी को साझा करेगा। SBI को तीन हफ्ते के भीतर ये जानकारी देनी होगी।

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इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होते हैं?

साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई। इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे। भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं।

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