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भीमा कोरेगांव हिंसा: घर में नजरबंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पांचों वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए कहा था कि असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे, तो वो फट सकता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 

सुप्रीम कोर्ट आज उन पांच विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुनवाई करेगा जिन्हें महाराष्ट्र पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों में छापेमारी कर गिरफ्तार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन पांचों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए उन्हें आज यानी 6 सितंबर तक घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया था।

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में 29 अगस्त को देश के कई शहरों में एक साथ छापे मारकर पांच वामपंथी विचारकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था, उनमें कवि और वामपंथी बुद्धिजीवी वरवर राव को हैदराबाद से, वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद से और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया था। इसके अलावा ठाणे से अरुण फरेरा और गोवा से बर्नन गोनसालविस को गिरफ्तार किया गया।

इन गिरफ्तारियों के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में इन पांचों कार्यकर्ताओं की रिहाई का अनुरोध किया गया था। साथ इन गिरफ्तारियों के मामले की स्वतंत्र जांच कराने की भी मांग की गई थी। 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पांचों वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए कहा था, "असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे, तो वो फट सकता है। लिहाजा अदालत आरोपियों को अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगाती है, तब तक सभी आरोपी घर में नजरबंद रहेंगे।”

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दूसरी तरफ महाराष्ट्र पुलिस ने दावा किया था कि उसके पास पांचों कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं कि गिरफ्तार आरोपियों के संबंध नक्सली संगठनों से हैं। इसी सिलसिले में महाराष्ट्र पुलिस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं और नक्सलियों के बीच आदान-प्रदान हुए कथित पत्रों को दिखाया था।

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