उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के उस फैसले को बुधवार को खारिज कर दिया जिसमें उसने संकटग्रस्त शिक्षा प्रौद्योगिकी कंपनी बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एनसीएलएटी के उस आदेश को भी पलट दिया, जिसमें बायजू को भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान को मंजूरी दी गई थी।
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न्यायालय ने क्रिकेट बोर्ड को 158.9 करोड़ रुपये की निपटान राशि कर्जदाताओं की समिति के पास जमा करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि अमेरिकी कंपनी ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी ऋणदाता होने के नाते एनसीएलटी, एनसीएलएटी और उच्चतम न्यायालय में कॉरपोरेट दिवाला कार्यवाही से संबंधित मामलों में प्रभावित पक्ष के रूप में हस्तक्षेप करने का अधिकार रखती है।
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शीर्ष अदालत ने दिवाला अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी को अपनी अंतर्निहित शक्तियों का सहारा लेकर बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को रोकने से जुड़े नियमों का उल्लंघन करने के लिए फटकार लगाई।
पीठ ने कहा, ‘‘ एनसीएलएटी को डाकघर नहीं माना जा सकता जो कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में पक्षों द्वारा प्रस्तुत वापसी आवेदन पर महज मुहर लगा देता है।’’
न्यायालय ने कहा कि प्रक्रिया वापस लेने संबंधी याचिका आईआरपी (दिवाला समाधान पेशेवर) द्वारा पेश की जानी चाहिए थी, न कि कॉरपोरेट देनदार या अन्य पक्षों द्वारा। मौजूदा परिस्थितियों में एनसीएलएटी ने विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग उचित नहीं था।
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पीठ ने कहा, ‘‘‘ जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल कानूनी प्रावधानों को खत्म करने के लिए नहीं किया जा सकता ... ’’
पीठ ने एनसीएलएटी के आदेश के खिलाफ अमेरिकी कंपनी ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की याचिका पर गौर करते हुए अपना फैसला सुनाया।
न्यायालय ने आदेश दिया कि 158 करोड़ रुपये की राशि, उस पर अर्जित ब्याज (यदि कोई हो) सहित, जो 14 अगस्त के आदेश के अनुसार एक अलग एस्क्रो खाते में रखी गई है...बीसीसीआई को उसे ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) के पास जमा कराने का निर्देश दिया जाता है।
पीठ ने कहा कि इसके अलावा सीओसी को निर्देश दिया जाता है कि वह आगे की कार्यवाही तक राशि को एक अलग खाते में रखे तथा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण के आगे के निर्देशों का पालन करें।
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एनसीएलएटी ने दो अगस्त को भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के बाद बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को बंद करने का आदेश दिया था। यह फैसला बायजू के लिए बड़ी राहत लेकर आया, क्योंकि इसने प्रभावी रूप से इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को फिर से नियंत्रक स्थिति में ला दिया था।
हालांकि, यह राहत थोड़े समय की रही क्योंकि बायजू को झटका देते हुए शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को एनसीएलएटी के फैसले पर रोक लगा दी थी।
मामला बीसीसीआई के साथ एक प्रायोजन सौदे से संबंधित 158.9 करोड़ रुपये के भुगतान में बायजू की चूक से जुड़ा है।
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