राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को टिकट देने की वजह बताएं और इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड भी करें। इसके लिए कोर्ट ने 48 घंटे की डेडलाइन भी तय की है। कोर्ट ने साथ में यह भी कहा कि
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सियासी दलों को वेबसाइट, न्यूजपेपर और सोशल मीडिया पर यह बताना होगा कि उन्होंने ऐसे उम्मीदवार क्यों चुनें जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि इस आदेश का पालन न होने पर राजनीतिक दलों को अदालत की अवमानना झेलनी होगी। चुनाव आयोग इस आदेश का अमल न करने पर पार्टी के खिलाफ अवमानना याचिका कोर्ट में दायर करेगा।
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कई याचिकाकर्ताओं में से बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह राजनीतिक दलों पर दबाव डाले कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न दें। ऐसा होने पर आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे।
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जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर सिर्फ मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि 2 वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किए जाने की तारीख से 6 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
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