क्या अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए होने वाला सेंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट छात्रों के जीवन में कोई बड़ा बदलाव लाने वाला है। खासतौर पर ऐसे स्कूली छात्र जो अभी 12वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं। यहां कई मुद्दों पर देश भर के शिक्षाविदों की एक राय है लेकिन सीयूईटी को लागू करने को लेकर देश भर के शिक्षाविदों की राय कुछ मसलो पर बंटी हुई है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फैसला किया है कि देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए एक सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी। यूजीसी का कहना है कि यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) शिक्षा के 'समानीकरण' की दिशा में एक बड़ा कदम है। यूजीसी ने कहा कि इस टेस्ट के जरिये देश भर के सभी छात्रों को समान अवसर उपलब्ध होंगे। अलग-अलग शिक्षा बोर्ड और राज्य सरकारों के बोर्ड पर 12वीं कक्षा में अंक देने के अलग-अलग मानदंड अपनाने के आरोप लगते रहे हैं।
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देश के सबसे बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय डीयू में केरल के छात्रों को मिले दाखिलों को लेकर मौजूदा शैक्षणिक सत्र में कई दिन तक बड़ा विवाद चला। कई छात्रों का कहना था कि केरल बोर्ड द्वारा अंक प्रदान करने में उदारता दिखाई गई है जिसके कारण वहां के छात्र अधिक अंक लाकर दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला पाने में कामयाब रहे।
प्रसिद्ध शिक्षाविद सीएस कांडपाल का कहना है कि नया कॉमन एंट्रेंस टेस्ट इस प्रकार के सभी विवादों को विराम देने में सक्षम है। इससे भी बड़ी बात यह है कि अब छात्रों पर स्कूल में पढ़ाई के दौरान 99 से 100 फीसदी अंक लाने का दबाव नहीं रहेगा। गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कॉलेजों में 100 प्रतिशत कटऑफ के आधार पर दाखिले प्रदान किए जाते रहे हैं। कांडपाल के मुताबिक छात्रों पर ऐसी कटऑफ के कारण ही बहुत अधिक दबाव रहता है और हजारों छात्र 90 प्रतिशत से अधिक अंक लाने के उपरांत भी अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं होते।
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हालांकि दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर हंसराज सुमन का कहना है कि नया कॉमन एंट्रेंस टेस्ट शिक्षा के व्यवसायीकरण को तेजी से बढ़ावा देगा। इस एंट्रेंस टेस्ट में पास करवाने के नाम पर नए कोचिंग सेंटर खुलेंगे। इन कोचिंग सेंटर में लाखों रुपए फीस लेकर छात्रों को कॉलेजों में दाखिले के लिए कोचिंग दी जाएगी। इससे ऐसे छात्र पीछे छूट जाएंगे जो कि समाज के कमजोर तबकों से आते हैं। साथ ही कॉलेजों जैसी मूल शिक्षा के लिए भी देश भर में कोचिंग सेंटर का बोलबाला होगा।
शिक्षाविद जी एल अग्रवाल इस तथ्य को पूरी तरह खारिज करते हैं। अग्रवाल का कहना है कि कोचिंग सेंटर का डर दिखाकर एक नए और सकारात्मक बदलाव को रोका नहीं जा सकता है। अग्रवाल का कहना है कि देशभर में पहले से ही स्कूली शिक्षा से जुड़े लाखों कोचिंग सेंटर मौजूद है, जहां दूसरी तीसरी कक्षा से ही होम ट्यूशन से लेकर ऑनलाइन ट्यूशन तक उपलब्ध है। लेकिन यह स्कूली शिक्षा का कोई अनिवार्य अंग नहीं है और इससे स्कूली शिक्षा का तंत्र प्रभावित भी नहीं होता है।
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दिल्ली विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य और सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अशोक अग्रवाल का कहना है कि नए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की प्रक्रिया से केंद्रीय विश्वविद्यालय से जुड़े कॉलेजों में दाखिला लेना एक उतनी ही जटिल और बड़ी प्रक्रिया बन जाएगी जिस प्रकार की एमबीबीएस के लिए नीट या फिर इंजीनियरिंग के लिए जेईई टेस्ट पास करना होता है।
विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए मॉक टेस्ट जैसी सुविधाओं की मांग भी अभी से शुरू हो गई है। अभी तक नीट और जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मॉक टेस्ट आयोजित किए जाते रहे हैं। हालांकि अब एबीवीपी ने यूजीसी से मांग की है कि एनटीए द्वारा कॉलेजों में प्रवेश परीक्षा के लिए भी मॉक टेस्ट शुरू कराए जाएं ताकि छात्रों को परीक्षा के स्वरूप को समझने में आसानी हो सके।
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दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल में जब कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का प्रस्ताव रखा गया तो वहां कई सदस्यों द्वारा इसपी का मुखर विरोध किया गया। काउंसिल की बैठक में नौ सदस्य इस नए प्रावधान के विरोध में थे लेकिन बहुमत के आधार पर विश्वविद्यालय एकेडमिक काउंसिल ने इस प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया।
हालांकि शिक्षकों के इस विरोध के बीच छात्रों के एक बड़े समूह ने एंट्रेंस टेस्ट के जरिये स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिला दिए जाने के निर्णय का स्वागत किया है। वहीं छात्र संगठन एबीवीपी का मत है कि सीयूसीईटी के लागू होने से दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए सभी राज्यों से आने वाले छात्रों को समान अवसर मिलेगा और दाखिला प्रक्रिया भी आसान होगी। छात्र संगठन के मुताबिक अलग-अलग परीक्षा बोर्ड की मूल्यांकन पद्धति में अंतर होने के कारण बोर्ड परीक्षा के प्राप्तांको से जो भिन्नता उत्पन्न होती थी,वह भी इस एंट्रेंस टेस्ट के माध्यम से दूर होगी।
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उधर यूजीसी का कहना है कि कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कॉमन एंट्रेंस टेस्ट में प्रदर्शन के आधार पर भारत भर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा। यूजीसी का यह भी कहना है कि समान अवसर प्रदान करने की मंशा से 13 भाषाओं हिंदी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, उड़िया, असमिया, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी में यह परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी, जिससे भी सभी क्षेत्र और वर्गों के छात्रों को समान अवसर उपलब्ध हो सकेंगे।
यूजीसी के अनुसार कॉलेजों में अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों हेतु आवेदन प्रक्रिया अप्रैल 2022 के पहले सप्ताह में शुरू होगी। जुलाई 2022 के पहले सप्ताह में प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाएगी। इन परीक्षाओं के लिए एग्जाम का पैटर्न इस प्रकार का रखा गया है जिसमें बहुविकल्पीय प्रश्न एमसीक्यू होंगे। यह परीक्षा दो शिफ्ट में आयोजित की जाएगी। पहली शिफ्ट में, उम्मीदवार अपनी पसंद की एक भाषा और अपने पाठ्यक्रम के आधार पर दो विषयों के साथ सामान्य परीक्षा देंगे। वहीं, दूसरी शिफ्ट में, छात्र शेष चार डोमेन-स्पेसिफिक विषयों के साथ-साथ फ्रेंच, अरबी, जर्मन आदि वैकल्पिक भाषा की परीक्षा देंगे। कॉमन एंट्रेंस टेस्ट कि यह पूरी परीक्षा एनसीईआरटी परीक्षा के कक्षा 12वीं के सिलेबस पर आधारित होगी।
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