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बुलेट से भी तेज मोदी सरकार की निजीकरण की रफ्तार, रेलवे सेवाओं को नुकसान के बावजूद निजी हाथों में देना जारी

एक साथ तो नहीं लेकिन बारी-बारी विभिन्न मंडलों के बड़े स्टेशन के रिजर्वेशन, टिकट काउंटर, खानपान, वेटिंग हॉल, एनाउंसमेंट सिस्टम, डिस्प्ले बोर्ड, कोच गाइडेंस, क्लॉक रूम, प्लेटफॉर्म से कोच तक की देखरेख अधिकतर जगह निजी हाथों में दी जा चुकी है या दी जा रही हैं।

फोटोः GettyImages
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हम लोगों को ऑनलाइन रेलवे टिकट लेने की आदत हो गई है इसलिए शायद ध्यान नहीं जा पाया हो। कभी रेलवे स्टेशनों पर टिकट लेने जाएं, तो अंतर का अनुभव होगा। जैसे, गाजियाबाद रेलवे स्टेशन जाएं, तो विजय नगर साइड की एंट्री की तरफ टिकट घर दिखेगा। वहां टिकट वेन्डिंग मशीन है तो, पर खराब पड़ी दिखती है। यहां तीन काउंटर हैं जिनमें से दो प्रायः बंद ही रहते हैं। ट्रेन आने वाली हो, तो स्वाभाविक ही लंबी लाइन लग जाती है। लेकिन सामने 30 मीटर दूर सड़क की ओर नजर दौड़ाते ही समस्या का समाधान दिखता है। तीन रेल टिकट घर दिख जाते हैं। ये किसी ढाबा-होटल वगैरह के साथ हैं। वहां रिजर्वेशन टिकट के साथ-साथ जनरल टिकट भी मिलते हैं। वहां पहुंचिए, प्रति टिकट अधिक भुगतान कीजिए और दौड़कर प्लेटफॉर्म पर पहुंच जाइए। यहां अलग-अलग तरह के टिकट पर अलग-अलग कमीशन लगते हैं। दस रुपये के प्लेटफॉर्म टिकट पर दो रुपये अतिरिक्त लगते हैं। विभिन्न स्तरों पर रेलवे को इसी तरह प्राइवेट किया जा रहा है।

वैसे, रेल मंत्री अश्वविनी वैष्णव से लेकर रेलवे बोर्ड के सीईओ और चेयरमैन वीके त्रिपाठी तक रेलवे के निजीकरण से साफ इंकार कर रहे हैं। रेलवे बोर्ड के अपर महानिदेशक (जनसंपर्क) का भी कहना है कि रेलवे के निजीकरण की सिर्फ अफवाह है। लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। केवल चंद प्रोजेक्ट की बात छोड़ दें, तो रेलवे के निजीकरण की कोई प्लानिंग नहीं है। लेकिन रेल मंत्रालय ने वर्ष 2014 में ही प्रमुख रेल परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने और रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन के लिए बिबेक देबरॉय समिति का गठन किया था। इसने वर्ष 2015 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और रेल डिब्बों तथा इंजन के निजीकरण की सिफारिश की। इसके अलावा समिति ने बुनियादी ढांचे के लिए अलग कंपनी बनाने, रेलवे में भर्ती के सभी माध्यमों को सुव्यवस्थित करने, निचले स्तर पर विकेन्द्रीकरण की जरूरत के साथ ही माल और यात्री गाड़ियों को चलाने के लिए निजी क्षेत्र को भी मौका देने जैसी कई अहम सिफारिशें कीं।

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निजीकरण का खाका तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वालों में से एक- रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वीके यादव का अब भी कहना है कि ‘महज छिटपुट उदाहरणों’ के आधार पर निजीकरण की आलोचना गलत है। वह कहते हैं कि रेलवे में किसी को भी लूट की छूट नहीं है। किसी भी निजी सेवा प्रदाता को तय दरों से अधिक वसूली और मनमानी करने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है। चाहे वह आईआरसीटीसी के ठेकेदार और दूसरे सेवा प्रदाता हों या फिर स्टेशनों के स्टॉल संचालक- शिकायत मिलने पर रेलवे कड़ी कार्रवाई के साथ ही लगातार कई स्तर पर उनकी सेवाओं की मॉनिटरिंग करता है।

यादव इस बात पर जोर देते हैं कि संरक्षा और सुरक्षा तथा सामान्य सुविधाओं को अलग-अलग तरीके से देखना चाहिए। स्टेशनों पर बेहतर सुविधाओं के लिए उनका पुनर्विकास जरूरी है। स्टेशनों पर कुछ सेवाओं को बेहतर करने के लिए उन्हें ठेके पर दिया जाना जरूरी है। इसी तरह, जब कुछ ट्रेनें निजी क्षेत्र को मिल जाएंगी, तो लोगों को विशिष्ट सुविधाएं मिल सकेंगी।

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यादव की बातों का अंतिम सिरा ही वह बिंदु है जिससे लगता है कि रेलवे का निजीकरण किस तरह किया जा रहा है और उसका आम आदमी पर क्या असर हो रहा है। अभी एक सज्जन दिल्ली जाने के लिए ट्रेन में सवार होने वाराणसी स्टेशन पहुंचे। 7-8 साल पहले हर स्टेशन पर 15 रुपये में पूड़ी-सब्जी वाली जनता थाली मिलती थी। किसी आदमी का इसमें पेट भले न भरे, वह दो थालियों से तो पेट भर ही लेता था। लगभग हर जगह वह बंद कर दिया गया है।

एक साल पहले तक वाराणसी के एक नंबर प्लेटफॉर्म पर पेट भरने लायक 70 रुपये की थाली मिल जाती थी। अब उसे भी बंद कर दिया गया है। अब वहां एक्जीक्यूटिव लाउंज नाम देकर एक होटल खुल गया है। उसमें प्रवेश करने और एक घंटे तक कुर्सी पर बैठने के लिए 70 रुपये लगते हैं। इससे ज्यादा समय होने पर फिर 70 रुपये की पर्ची कटवानी पड़ती है। खाने का बिल अलग से। एक थाली की कीमत 250 रुपये है। अंदर पढ़ने के लिए चार किताबें भी मिल जाती हैं। इनमें से तीन किताबें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीवनी हैं। सोचिए, तीन-चार लोग एक साथ हैं, तो उन्हें कितने पैसे लगेंगे।

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मुंबई में दैनिक मजदूरी करने वाले बाराबंकी के सुरेश को ही लें। वह बाराबंकी से लखनऊ बस या ट्रेन से पहुंच जाते हैं। कोविड काल में चली स्पेशल ट्रेनों में तो अनाप-शनाप किराये वसूले गए, पर नियमित चलने वाली ट्रेनों का किराया पिछले 8 साल में सामान्य गति से ही बढ़ा है। पर खान-पान सेवा निजी हाथों में दे दिए जाने से उन्हें इस पर लगभग तीन गुना खर्च करना पड़ रहा है- दो बार नाश्ते पर 160 रुपये और डिनर पर 120 रुपये।

निजी क्षेत्र भी तौल रहा

ट्रेनों को निजी क्षेत्र में देने की योजना अभी सिरे नहीं चढ़ पाई है क्योंकि निजी क्षेत्र ने अभी इसे आकर्षक निवेश नहीं पाया है। भारत गौरव ट्रेन योजना के तहत प्राइवेट कंपनियों को ट्रेन चलाने का जिम्मा सौंपा जाना था। इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) ने बीच का एक रास्ता तो निकाला, पर वह भी सफल नहीं हो पाया। आईआरसीटीसी ने अलग-अलग दिन स्पेशल ट्रेन के लिए बिड निकाला लेकिन उसमें भी एक दिन के लिए बुकिंग हो पाई, दूसरे दिन के लिए पर्याप्त बुकिंग ही नहीं हो पाई।

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एक ट्रेन दिल्ली से अयोध्या होते हुए जनकपुर तक चलाई गई थी। दिल्ली-अयोध्या-नेपाल के जनकपुर धाम टूरिस्ट ट्रेन 22 जून को चलाई गई थी। ट्रेन और इसमें बैठे यात्रियों का अयोध्या, वाराणसी, जनकपुरधाम में पर्यटन मंत्री से लेकर बीजेपी के नेताओं द्वारा स्वागत किया गया। रामायण सर्किट सीरीज की यह ट्रेन 24 अगस्त को भी प्रस्तावित थी। लेकिन यात्रियों की संख्या पर्याप्त नहीं होने से ट्रेन को रद्द करना पड़ा। टूर प्लानर बासुकी नाथ का कहना है कि ‘इस ट्रेन में एक यात्री को 62,200 रुपये देना होता है जो काफी अधिक है। तीर्थ यात्रा कोई अकेले नहीं करना चाहता। ग्रुप में इस रूट पर काफी कम रुपये में पैकेज प्लान हो रहा है।’ असल में, पैलेस ऑन व्हील्स-जैसी सुविधा वाली ट्रेन का उपयोग भी सब कोई नहीं कर सकता।

इसी तरह आईआरसीटीसी ने 20 फरवरी, 2020 को वाराणसी से इंदौर के बीच प्राइवेट ट्रेन महाकाल एक्सप्रेस शुरू की। कोरोना काल के पहले ही यह ट्रेन लगातार काफी घाटे में थी। कोरोना काल के बाद आईआरसीटीसी ने इस ट्रेन के संचालन को लेकर हाथ खड़े कर दिए जिससे मजबूर होकर महाकाल एक्सप्रेस अब रेलवे को चलानी पड़ रही है। नॉर्दर्न रेलवे मेन्स यूनियन के मंडल मंत्री आरके पाण्डेय का कहना है कि रेलवे बोर्ड के अफसरों का एक तबका दबी जुबान से अब महाकाल एक्सप्रेस-जैसा दूसरी ट्रेनों का हश्र होने की आशंका जता रहा है। वैसे, देश में तेजस एक्सप्रेस के नाम से नई दिल्ली- लखनऊ और अहमदाबाद-मुंबई सेंट्रल- दो ट्रेनें कॉरपोरेट समूहों द्वारा पिछले तीन साल से चलाई जा रही हैं। रेलवे को इससे अभी तक 58 करोड़ रुपये का घाटा हो चुका है। आईआरसीटीसी रेलवे का उपक्रम होने की वजह से बड़ी मुश्किल से ये दो निजी ट्रेनें चला रहा है। ऐसे में, वर्ष 2026 तक 109 रूटों पर 151 प्राइवेट ट्रेन चलाने और 30 हजार करोड़ के निवेश के दावे के पूरा होने पर सवाल लगना उचित ही है।

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यही हाल कुछ चुनिंदा स्टेशनों को वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए निजी निवेश को आकर्षित करने की योजना का है। इसके तहत भोपाल का हबीबगंज पहला प्राइवेट स्टेशन तैयार हो गया। नई दिल्ली स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए बहुत प्रयास किए गए लेकिन बड़ी कंपनियों ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का यह मॉडल परवान नहीं चढ़ सका। रेल लैंड डेवलेपमेंट अथॉरिटी (आरएलडीए) भी स्टेशन को विकसित करने से पीछे हट गया है। मजबूरन सरकार को इंजीनियरिंग प्रोक्ययोरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) मॉडल लागू करना पड़ा है, यानी स्टेशनों को खुद डेवलप करने का काम। अब लखनऊ और कानपुर सहित कई प्रमुख स्टेशनों का पुनर्विकास ईपीसी मॉडल पर किया जाएगा।

इन्हीं सब स्थितियों पर लखनऊ में रेलवे मजदूर यूनियन के मंडल मंत्री अजय कुमार वर्मा का कहना है कि ‘ट्रेनों और व्यवस्था को प्राइवेट हाथों में दिए जाने का हश्र सामने है। न तो ट्रेनें फायदे में हैं, न ही रेलवे स्टेशन की व्यवस्थाएं ठीक हैं। सरकार लाभ-हानि के लिए नहीं होती। इसे सभी को समझना होगा।’ ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के केन्द्रीय महामंत्री शिव गोपाल मिश्र भी कहते हैं कि जब तक संपूर्ण रेलवे का स्वामित्व केन्द्र सरकार के पास है, तब तक ही यात्रियों को कम किराये में सफर करने की सुविधा मिलती रहेगी क्योंकि अभी रेलवे 100 रुपये के टिकट पर औसतन 57 रुपये किराया लेकर ही 43 फीसदी छूट सभी यात्रियों को दे रही है।

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मिश्र कहते हैं कि यह हानि-लाभ की परवाह किए बगैर देश भर में कनेक्टिविटी देने पर रेलवे के जोर की वजह से है। रेलवे के निजीकरण से यह कतई संभव नहीं हो पाएगा क्योंकि निजी उद्यमों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना होता है। आम नागरिकों को मिलने वाले रेल अधिकारों के हकों की लड़ाई लड़ने वाली मध्य प्रदेश अप-डाउनर एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अरुण अवस्थी कुछ माह पूर्व ही रेल राज्यमंत्री राव साहेब पाटिल दानवे से मिले थे और उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान बंद की गई छूट को बहाल करने के साथ-साथ निजीकरण पर आपत्ति दर्ज कराई थी।

(नवजीवन के लिए टी एन मिश्र की रिपोर्ट के संतोष और पूजा के इनपुट के साथ)

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