कोरोना संकट की शुरुआत से लेकर अब तक देश के अन्य राज्यों से प्रवासी मजदूरों का बिहार लौटना एक तरफ जहां जारी है, वहीं शुरुआत में आए प्रवासी मजदूर अब फिर से दूसरे राज्यों की ओर वापस जाने लगे हैं। सरकार ने भले ही इन मजदूरों को रोजगार देने का वादा किया हो, लेकिन इन मजदूरों को सरकार पर भरोसा नहीं है। इसलिए ये रोजगार की आस में अन्य राज्यों की ओर लौटने लगे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक बिहार के कोसी, मिथिलांचल और चंपारण के इलाकों में पंजाब और हरियाणा से रोज 50 से लेकर 100 से भी अधिक बसें पहुंच रही हैं और फिर यहां से मजदूरों को अपने साथ धान रोपनी के लिए ले जा रही हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्यों की छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों में काम करने के लिए भी बड़ी संख्या में मजदूर बिहार से जा रहे हैं। मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और मीनापुर प्रखंड से रोजाना मजदूर बाहर जा रहे हैं।
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लुधियाना के एक गांव में काम करने वाले और मीनापुर के रहने वाले राकेश यादव ने कहा, "अभी धान रोपाई का मौसम चल रहा है, इसलिए हम जा रहे हैं। बिहार में लंबे समय तक अगर रहेंगे तो खाएंगे क्या। यहां ज्यादा दिन तक रहना मुश्किल है।"
कोयली पंचायत के मुखिया अजय कुमार सहनी भी कहते हैं कि लोग यहां से पंजाब के खेतों में काम करने के लिए लौट रहे हैं। मेरी पंचायत से 2,000 से अधिक लोग जहां से आए थे, वहां लौट गए हैं। यहां आने के बाद भी ये लोग वहां के लोगों के संपर्क में थे।
इधर, गोपालगंज से भी मजदूरों का पलायन जारी है। दरअसल, कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों में काम कर रहे मजदूर परेशान होकर अपने घर लौट आए थे। इन मजदूरों ने शायद यह सोचा था कि अब अपने गांव में ही कोई काम करके परिवार का भरण-पोषण कर लेंगे, लेकिन वैसी कोई स्थिति यहां दिख नहीं रही है।
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गोपालगंज के जिला परिवहन पदाधिकारी प्रमोद कुमार भी मानते हैं कि अन्य राज्यों से बसें आ रही हैं और यहां से मजदूरों को ले जा रही हैं। उन्होंने कहा, "बलथरी चेक पोस्ट पर रोजाना एक सौ से डेढ़ सौ बसें पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से आ रही हैं। हमने पता किया तो बस वालों ने बताया कि वे लोग बिहार के विभिन्न जिलों से मजदूरों को लेकर जाने के लिए आए हैं। खाली बसें बिहार में प्रवेश कर रही हैं और मजदूरों को साथ लेकर बॉर्डर पार कर रही हैं।"
वैसे, वापस जाने वाले मजदूरों को कोरोना का डर भी सता रहा है, लेकिन क्या करें। रोजगार भी जरूरी है। अररिया के रहने वाले मोहम्मद रूस्तम पंजाब जा रहे हैं। वे कहते हैं, "कोरोना का डर तो है, लेकिन यहां रहकर पेट कैसे भरेगा? हम पति-पत्नी के अलावे दो बच्चे और माता-पिता हैं। गांव में रहकर करेंगे क्या, कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?"
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वहीं राज्य के उद्योग मंत्री श्याम रजक का कहना है कि सरकार लोगों को रोजगार देने के लिए कृतसंकल्पित है। वे कहते हैं, "कुशल मजदूरों का डाटा तैयार करवाया जा रहा है, जिनमें बढ़ई, पलंबर, लेथ, वेल्डिंग मशीन, मोटर मैकेनिक, राजमिस्त्री, गारमेंट और सर्विस जैसे अन्य सेक्टर के कामगार शामिल हैं। इसके आधार पर निवेशकों को बताया जा सकेगा कि किस सेक्टर में राज्य में कितने कुशल या अर्द्धकुशल कामगार हैं। उसी आधार पर रोजगार दिया जाएगा।"
इधर, विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर हमलावर है। प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व सचिव ललन कुमार कहते हैं कि सरकार ने कोरोना के संकट के प्रारंभिक दौर से ही लोगों को अपनी किस्मत पर छोड़ दिया है। सरकार प्रवासी मजूदरों को रोजगार देने के मामले में भी सिर्फ 'चहेरा' चमका रही है। उन्होंने कहा, "भागलपुर में अन्य प्रदेशों से लौटे लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। सरकार केवल 'लफ्फाजी' कर रही है। रोजगार की बात छोड़ दीजिए, गांवों में लोगों के दो टाइम खाने पर भी आफत है।"
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