कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य नेताओं ने सोमवार को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी और आधुनिक भारत के निर्माण में उनके योगदान को याद किया। वर्ष 1889 में जन्मे नेहरू भारत के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे। वह अगस्त 1947 से मई 1964 तक प्रधानमंत्री रहे। 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया।
सोनिया गांधी और खड़गे ने 'शांति वन' पहुंचकर नेहरू की समाधि पर पुष्प अर्पित किए। खड़गे ने 'एक्स' पर पोस्ट किया, ‘‘आधुनिक भारत के शिल्पकार, भारत को वैज्ञानिक, आर्थिक, औद्योगिक व विभिन्न क्षेत्रों में आगे ले जाने वाले, लोकतंत्र के समर्पित प्रहरी, स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री व हमारे प्रेरणास्रोत, पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के अतुलनीय योगदान के बिना भारत का इतिहास अधूरा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ “हिन्द के जवाहर” की पुण्यतिथि पर उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।’’
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उन्होंने लिखा, ‘‘पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा था कि देश की रक्षा, देश की उन्नति, देश की एकता ये हम सबका राष्ट्रीय धर्म है। हम अलग-अलग धर्म पर चलें, अलग-अलग प्रदेश में रहें, अलग भाषा बोलें, पर उससे कोई दीवार हमारे बीच खड़ी नहीं होनी चाहिए। …सब लोगों को उन्नति में बराबर का मौका मिलना चाहिए।’’ खड़गे का का कहना है कि आज भी कांग्रेस पार्टी उसी “न्याय” के रास्ते पर चल रही है।
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राहुल गांधी ने 'एक्स' पर पोस्ट किया, ‘‘आधुनिक भारत के शिल्पकार, देश के प्रथम प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन - स्वतंत्रता आंदोलन, लोकतंत्र स्थापना, धर्मनिरपेक्षता और संविधान की नींव रखते हुए भारत निर्माण के लिए समर्पित किया। उनके मूल्य सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।’’
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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने नेहरू को याद करते हुए कहा, ‘‘22 मई, 1964 को नेहरू ने सामान्य रूप से लगभग हर महीने होने वाली प्रेस वार्ता की थी। उस वार्ता के अंत में उनसे जब उत्तराधिकार के बारे में पूछा गया तब उन्होंने मजाक में जवाब दिया था: ‘मेरा जीवन इतनी जल्द खत्म होने वाला नहीं है’।’’
रमेश के मुताबिक, ‘‘नेहरू अपने असाधारण और कई तरह का इतिहास रचने वाले जीवन के दौरान बुद्ध के जीवन और उनके संदेशों से गहराई से प्रभावित थे। उनका अध्ययन कक्ष और शयनकक्ष बुद्ध के प्रति उनके आकर्षण का प्रमाण है। आश्चर्यजनक रूप से पृथ्वी पर उनका अंतिम दिन बुद्ध पूर्णिमा के दिन था और उन्होंने अपना अंतिम पत्र एक बौद्ध भक्त को लिखा था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नेहरू के इतिहास को पढ़ने और प्राचीनता को भारत के नए गणतंत्र के साथ जोड़ने की उनकी इच्छा ने उन्हें बुद्ध के सबसे महान प्रचारक सम्राट अशोक की दो विरासतों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया - राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र और भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति।’’
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