झारखंड के चर्चित कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला में दिल्ली की एक विशेष सीबीआई अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के दामाद विजय जोशी के साथ पूर्व कोयला सचिव एसची गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु और निजी कंपनी विनी आयरन एवं स्टील उद्योग लिमिटेड (वीआइएसयूएल) को आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 409 (सरकारी कर्मियों द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के तहत दोषी ठहराया है। इस मामले में सजा का ऐलान 14 दिसंबर को किया जाएगा।
सीबीआई अदालत का यह फैसला विनी आयरन एंड स्टील उद्योग लिमिटेड (वीआइएसयूएल) को झारखंड का राजहरा उत्तरी कोयला ब्लॉक आवंटित किए जाने के मामले में आया है। हालांकि, विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने मामले के चार अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है। इनमें विसुल के निदेशक वैभव तुलस्यान, दो लोकसेवक बसंत कुमार भट्टाचार्य और बिपिन बिहारी सिंह और चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन कुमार तुलस्यान शामिल हैं।
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मधु कोड़ा के साथ दोषी ठहराए गए विजय जोशी तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के दामाद हैं। बनवारी लाल पुरोहित इससे पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वह राम मंदिर आंदोलन के समय बीजेपी से जुड़े थे। पुरोहित तमिलनाडु से पहले 2016 में असम के राज्यपाल रह चुके हैं।
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पुरोहित के दामाद विजय जोशी को कोड़ा का बेहद करीबी माना जाता है। बताया जाता है कि जोशी को काला धन को सफेद करने में महारत हासिल है। यह काम वह फर्जी कंपनियों और विदेशी कंपनियों में निवेश के जरिये करता है। इस तरह के आरोपों में प्रवर्तन निदेशालय में भी जोशी के खिलाफ मामला चल रहा है, जिसमें चार्जशीट फाइल हो चुकी है। प्रवर्तन निदेशालय की चार्जशीट में जोशी को फर्जी कंपनियों के माध्यम से 169. 9 2 करोड़ रुपये की धनराशि विदेश भेजने का दोषी पाया गया है। ईडी ने 2011 में जोशी के खिलाफ एक आरोपपत्र दायर कर दिया था।
मधु कोड़ा के करीबी विनोद सिंह द्वारा विजय जोशी को रामगढ़ स्थित इंडिया आसही ग्लास कंपनी का प्रबंध निदेशक बनाया गया था। बाद में जोशी विनी आयरन और स्टील उद्योग के प्रवर्तक बना दिए गए। यह कंपनी कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई द्वारा आरोपी बनाई गई पांच कंपनियों में से एक है। आरोप है कि 18.95 लाख रुपये की पूंजी वाली इस कंपनी ने झारखंड में 880.64 करोड़ रुपये के निवेश से एकीकृत इस्पात मिल लगाने का दावा करते हुए 14 सितंबर, 2006 को राज्य सरकार के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद इसे साल 2010 में एक कोयला ब्लॉक और एक लौह अयस्क ब्लॉक आवंटित कर दिया गया। हालांकि, झारखंड में इस कंपनी की प्रस्तावित परियोजना में एक इंच की भी प्रगति नहीं हुई है।
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सीबीआई ने कोड़ा, जोशी, गुप्ता और अन्य पर विसुल को गलत तरीके से कोयला ब्लॉक आवंटित करने का दोषी पाया था। सीबीआई के अनुसार विसुल ने 8 जनवरी, 2007 को राजहरा उत्तरी कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन किया था। हालांकि, झारखंड सरकार और इस्पात मंत्रालय ने इस मामले की सिफारिश नहीं की थी, बल्कि एक अनुवीक्षण समिति ने कंपनी को ब्लॉक आवंटित किए जाने की सिफारिश की। जांच एजेंसी ने कहा था कि अनुवीक्षण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष एच सी गुप्ता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस तथ्य को छुपाया कि झारखंड ने कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए विसुल की सिफारिश नहीं की है। मनमोहन सिंह उस समय कोयला मंत्रालय का भी प्रभार संभाल रहे थे। इसके बाद ये सभी आरोपी विसुल को अवैध तरीके से कोल ब्लॉक आवंटित कराने में सफल हो गए।
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