विभिन्न तबकों के बीच सद्भाव के लिहाज से अमूमन शांत समझे जाने वाले पूर्वोत्तर इलाके में अब सांप्रदायिक सद्भाव की दीवार टूटती नजर आ रही है। हाल में असम और मेघालय की राजधानी शिलांग में सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों ने जहां दो युवकों की जान ले ली, वहीं पूरब का स्कॉटलैंड कहा जाने वाला मेघालय हिंसा के चलते कोई एक सप्ताह तक सुर्खियों में रहा। असम में बच्चा चोर होने के संदेह में पिटाई से दो असमिया युवकों की मौत के बाद असम पुलिस ने सोशल मीडिया पर निगरानी शुरू कर दी है और आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने या अफवाह फैलाने वालों की धरपकड़ शुरू कर दी है। असम सरकार और पुलिस के कड़े रुख से दूसरे राज्य भी सबक ले सकते हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने अब भीड़ द्वारा पिटाई की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा कानून बनाने की मांग भी उठाई है.
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अंधविश्वासों व कुप्रथाओं को दूर करने के लिए अब जागरुकता अभियान शुरू करने की जरूरत है। कुछेक सरकारों ने इसकी पहल भी की है। दरअसल असम में बच्चा चुराने वालों की कहानियां सामाजिक ताने-बाने में रची-बसी हैं। लोग दशकों से बच्चों को डराने या अनुशासित करने के लिए इन कहानियों का इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया की बढ़ती पहुंच ने इन कहानियों को एक नया आयाम दे दिया है। यही वजह है कि ऐसी अफवाहें फैलने के बाद मारपीट की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं.
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असम के आदिवासी-बहुल कारबी आंग्लांग जिले में बीते सप्ताह बच्चा चोर होने के संदेह में भीड़ ने दो लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। साउंड इंजीनियर नीलोत्पल दास और एक व्यापारी अभिजीत नाथ शुक्रवार की रात लगभग आठ बजे पंजारी कछारी गांव में देखे गए थे। पुलिस का कहना है कि बच्चा चोर होने के संदेह में गांव वालों ने उनकी काले रंग की स्कॉर्पियो कार को घेर लिया और दोनों को बाहर निकाल कर पीटने लगे। इससे उनकी मौत हो गई।
सोशल मीडिया पर इस पिटाई का वीडियो भी वायरल हो गया है। इसमें नीलोत्पल दास हमलावरों से गिड़गिड़ाते हुए कहता नजर आ रहा है कि वह भी असमिया है। उसकी पिटाई व हत्या नहीं की जाए। वह अपनी मां व पिता का नाम भी बता कर खुद को छोड़ने की गुहार लगाता नजर आ रहा है। बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर इलाके में बच्चा चोरों के सक्रिय होने की अफवाहें फैल रही थीं। इस घटना के बाद असमिया समाज में कारबी समुदाय के खिलाफ भारी नाराजगी है। इन हत्याओं के विरोध में राजधानी गुवाहाटी में निकले जुलूसों के दौरान कारबी युवकों पर पथराव की भी घटना हुई।
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पुलिस की कड़ाई के बावजूद बीते एक सप्ताह के दौरान ऐसी कम से कम आधा दर्जन नई घटनाएं हो चुकी हैं। वह भी उस स्थिति में जब पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के एक अधिकारी को सोशल मीडिया की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है। इसके साथ ही आपत्तिजनक पोस्ट करने के मामले में लगभग चार दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। वैसे, असम में ऐसी घटनाएं कोई नई नहीं हैं। साल भर पहले कामरूप जिले में पंजाब के दो सिखों की भी बच्चा चोर होने के संदेह में पिटाई की गई थी। जुलाई, 2016 में निचले असम के चिरांग, दरंग, बक्सा और शोणितपुर जिलों में बच्चा चोर होने के संदेह में हिंसा की घटनाओं में चार लोगों की मौत हो गई थी।
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मेघालय में बीते दिनों एक मामूली विवाद सोशल मीडिया पर फैली अफवाह के चलते बड़े विवाद में बदल गया। इसके चलते एक सप्ताह तक राजधानी शिलांग अशांत रहा। पंजाबी तबके की एक युवती से छेड़छाड़ की कथित घटना के बाद कुछ लोगों ने खासी तबके के बस के खलासी की पिटाई कर दीय़ उसके बाद शाम तक सोशल मीडिया पर उसकी मौत की खबरें वायरल हो गईं। उसके बाद खासी समुदाय के लोगों ने पंजाबियों के मोहल्ले पर धावा बोल दिया। इस हिंसा के चलते शिलांग में रात का कर्फ्यू अब भी जारी है। सरकार ने 12 दिनों तक इंटरनेट सेवाओं पर भी पाबंदी लगा दी थी। अब भी हालत पूरी तरह सामान्य नहीं हो सके हैं। खासी व पंजाबी समुदाय के बीच अब भी भारी तनाव है.
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लेकिन क्या इन घटनाओं के लिए सिर्फ सोशल मीडिया ही जिम्मेदार है? गुवाहाटी स्थित कॉटन विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रदीप आचार्य कहते हैं, "इसकी जड़ें सामाजिक ताने-बाने और दशकों से समाज में कायम कुसंस्कारों में छिपी हैं।"
राज्य में बाल तस्करी के बढ़ते मामलों ने भी इन घटनाओं को बढ़ावा दिया है। 2015 में यहां बच्चों की तस्करी के 1,494 मामले सामने आए थे। बाल अधिकार कार्यकर्ता मिगेल दास कहते हैं, "असम में बच्चों की तस्करी की समस्या काफी गंभीर है। इसी वजह से बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह फैलने के बाद लोग इलाके में किसी अजनबी को देखते ही उसके साथ मार-पीट पर उतारू हो जाते हैं।"
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समाज विज्ञानी सुदीप भुइयां कहते हैं, "हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में वृद्धि से साफ है कि न्याय व्यवस्था से लोगों का भरोसा खत्म हो रहा है। अब इस हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए एक कड़ा कानून जरूरी है।" 2013 में ऐसी ही एक घटना में झंकार सैकिया नामक एक युवक की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उसके परिवार को अब तक न्याय नहीं मिला है। उसके हत्यारे जमानत पर बाहर घूम रहे हैं। भुइयां का कहना है कि अब इन घटनाओं पर रोकथाम के लिए एक कड़ा कानून बनाना जरूरी हो गया है। महज सोशल मीडिया पर निगरानी से खास फायदा नहीं होगा। इसके साथ ही खासकर ग्रामीण इलाकों में जागरुकता अभियान चलाना जरूरी है।
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